हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय प्रहर में मनुष्य परमेश्वर के सिमरन को विस्मृत कर देता है। अर्थात्-जब प्राणी गर्भ से बाहर आता और जन्म लेता है तो गर्भ में की गई प्रार्थना को भूल जाता है।
हे मेरे वणजारे मित्र ! फिर, एक नवजात शिशु के रूप में, उस बालक को प्रेमपूर्वक परिजनों द्वारा हाथों-हाथ ऐसे घुमाया जाता है जैसे कि वह अपनी माँ यशोदा के घर में छोटे भगवान् कृष्ण हों।
हे मेरे वणजारे मित्र ! परिवार के समस्त लोग नश्वर प्राणी उस बच्चे को उछालते-खेलाते हैं और माता मोह-वश उसे अपना पुत्र कहकर बड़ा मान करती है।
हे मेरे अज्ञानी एवं मूर्ख मन ! परमात्मा को स्मरण कर। अंतकाल में उस परमेश्वर के सिवा तेरा कोई साथी नहीं होना।
कोई भी गंभीरतापूर्वक अपना ध्यान ईश्वर पर केंद्रित नहीं करता है जिसने इस शरीर को रचा है और इसे जीवन प्रदान किया है।
गुरु नानक जी कहते हैं कि रात्रि के द्वितीय प्रहर में भाव गर्भ योनि से निकल कर जन्म लेते ही प्राणी परमेश्वर का ध्यान भुला देता है ॥२॥
हे वणजारे मित्र ! नाम के व्यापारी,जीवन रूपी रात्रि के तृतीय प्रहर में प्राणी का मन, धन-यौवन (स्त्री-यौवन) में केन्द्रित हो जाता है।
वह हरि-नाम का चिंतन नहीं करता, जिसके द्वारा वह संसार-बंधन से मुक्ति पा सकता है।
माया के वशीभूत होकर मनुष्य इतना भ्रमित हो जाता है कि उसे भगवान् का नाम भी स्मरण नहीं रहता।
वह सांसारिक आसक्ति में तल्लीन और यौवन में मदमस्त इस अमूल्य जीवन को व्यर्थ ही गंवा देता है।
वह न तो धर्मानुसार आचरण करता है और न ही शुभ कर्मों के साथ मैत्री बनाता है।
गुरु जी कहते हैं कि हे नानक ! मनुष्य का जीवन रूपी तृतीय प्रहर भी धन-दौलत एवं युवावस्था के सुखों में केन्द्रित रहता है॥३॥
हे वणजारे मित्र ! नाम के प्यारे, जीवन रूपी रात्रि के चौथे प्रहर (वृद्धावस्था) में जीवन-रूपी कृषि को काटने के लिए यमदूत उपस्थित हो जाते हैं अर्थात् वृद्धावस्था को प्राप्त देहि एक परिपक्व फसल काल के हाथों कटने को तैयार हो जाती है।
हे वणजारे मित्र ! जब यमदूत उसको पकड़कर चल देते हैं तो उस गोपनीय स्थान के विषय में कोई नहीं जानता जिन्हें जँहा प्राणों को ले जाया जाता है।
जब यमदूत प्राणी को पकड़कर ले गए तो परमेश्वर की आज्ञा का रहस्य कोई नहीं समझ सका।
तब तुम्हारा सारा रोना-धोना झूठा हो जाता है। एक पल में तुम अजनबी हो जाते हो।
आगामी लोक में प्राणी को वही उपलब्धि होती है, जिसमें उसने चित्त एकाग्र किया होता है।
गुरु नानक देव जी कहते हैं कि हे नानक ! जीवन रूपी चौथे प्रहर में मृत्यु के दानव ने तुम पर ऐसे अधिकार कर लिया है जैसे किसी किसान ने परिपक्व फसल काट ली हो। ॥४॥१॥
श्रीरागु महला १ ॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! नाम के व्यापारी, जीवन रूपी रात्रि के प्रथम प्रहर में जीव बेपरवाह होता है और एक बालक के समान अपरिपक्व बुद्धि वाला होता है।
हे मेरे व्यापारी मित्र, तुम दूध पीते हो और तुम्हें इतना प्यार से दुलारा जाता है।
माता-पिता अपने बच्चे से बहुत प्यार करते हैं, लेकिन माया में सभी भावनात्मक लगाव में फंसे रहते हैं।
हाँ, माँ और पिता अपने बालक से अत्यधिक प्रेम करते हैं और इसी तरह, पूरा ब्रह्मांड माया के वशीभूत होकर पीड़ित है।
संयोग और पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण प्राणी संसार में आता है और अब अपने पूर्व निर्धारित भाग्य के अनुसार कर्म कर रहा है।
राम नाम सिमरन के बिना मुक्ति नहीं हो सकती और द्वैत भाव में लीन रहने के कारण समूची सृष्टि का विनाश हो जाता है।
हे नानक ! प्राणी जीवन रूपी रात्रि के प्रथम प्रहर में जीव भक्तिपूर्वक भगवान् का नाम-सिमरन करके ही जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकता है।॥१॥
हे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के द्वितीय प्रहर में प्राणी यौवन की भरपूर मस्ती में मस्त रहता है।
हे वणजारे मित्र ! दिन-रात वह भोग-विलास में आसक्त रहता है और उस अज्ञानी को भगवान् का नाम याद ही नहीं आता।
राम नाम उसके हृदय में नहीं बसता। वह अन्यों रसों को ही मीठा समझता है।
हे झूठे मानव, किसी भी दिव्य ज्ञान, ध्यान या आत्म-अनुशासन के गुणों के बिना, तुम जन्म और मृत्यु के दौर में पीड़ित होते रहोगे।
वासना में डूबा व्यक्ति न केवल भक्ति-पूजा को भूल जाता है, बल्कि पवित्र स्थानों पर जाना, व्रत रखना, शरीर को साफ करना और धर्मपरायणता जैसे कर्मकांड भी नहीं करता है।
हे नानक, कोई व्यक्ति केवल ईश्वर के प्रेम और भक्तिपूर्ण पूजा के माध्यम से ही विकारों से मुक्त हो सकता है; शेष सब द्वैत (माया का प्रेम) की ओर ले जाता है।॥२॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! जीवन रूपी रात्रि के तृतीय प्रहर में शरीर-सरोवर पर हंस आ बैठते हैं अर्थात् प्राणी के सिर पर सफेद बाल पकने लगते हैं।