श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 92


ਐਸਾ ਤੈਂ ਜਗੁ ਭਰਮਿ ਲਾਇਆ ॥
ऐसा तैं जगु भरमि लाइआ ॥

हे प्रभु! आप ने ही इस जगत् को अधिक भ्रम में डाला हुआ है।

ਕੈਸੇ ਬੂਝੈ ਜਬ ਮੋਹਿਆ ਹੈ ਮਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कैसे बूझै जब मोहिआ है माइआ ॥१॥ रहाउ ॥

हे प्रभु ! माया ने जगत् को अपने मोह में फँसाया हुआ है, फिर माया से ग्रसित जगत् आपके भेद को कैसे समझ सकता है? ॥१॥रहाउ॥

ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਛੋਡਿ ਬਿਖਿਆ ਰਸ ਇਤੁ ਸੰਗਤਿ ਨਿਹਚਉ ਮਰਣਾ ॥
कहत कबीर छोडि बिखिआ रस इतु संगति निहचउ मरणा ॥

कबीर जी कहते हैं कि हे प्राणी ! तू सांसारिक माया का विषय-रस त्याग दे, क्योंकि इनकी संगति से तुम निश्चित रूप से आध्यात्मिक मृत्यु को प्राप्त करोगे।

ਰਮਈਆ ਜਪਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ਅਨਤ ਜੀਵਣ ਬਾਣੀ ਇਨ ਬਿਧਿ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਤਰਣਾ ॥੨॥
रमईआ जपहु प्राणी अनत जीवण बाणी इन बिधि भव सागरु तरणा ॥२॥

हे नश्वर प्राणी ! तुम गुरु वचनों के माध्यम से राम नाम का भजन करो, क्योंकि वहीं अनन्त जीवनदायक वाणी है। इस विधि से तुम विकारों के भयानक सागर से पार हो जाओगे ॥२॥

ਜਾਂ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਲਾਗੈ ਭਾਉ ॥
जां तिसु भावै ता लागै भाउ ॥

जब भगवान् को उपयुक्त लगता है तो ही जीव का उससे प्रेम विकसित होता है।

ਭਰਮੁ ਭੁਲਾਵਾ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥
भरमु भुलावा विचहु जाइ ॥

उसके मन में से दुविधा में डालने वाले संदेह और भ्रम दूर हो जाते हैं ।

ਉਪਜੈ ਸਹਜੁ ਗਿਆਨ ਮਤਿ ਜਾਗੈ ॥
उपजै सहजु गिआन मति जागै ॥

फिर मन में सहज अवस्था उत्पन्न होने से उसके भीतर आध्यात्मिक ज्ञान प्रकाशित होता है।

ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ਅੰਤਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ॥੩॥
गुरप्रसादि अंतरि लिव लागै ॥३॥

गुरु की कृपा से अंतःकरण प्रभु के प्रेम से स्पर्शित हो जाता है। ||३||

ਇਤੁ ਸੰਗਤਿ ਨਾਹੀ ਮਰਣਾ ॥
इतु संगति नाही मरणा ॥

प्रभु के नाम पर मन स्थिर रहने से कोई आध्यात्मिक मृत्यु नहीं होती है।

ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਿ ਤਾ ਖਸਮੈ ਮਿਲਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥
हुकमु पछाणि ता खसमै मिलणा ॥१॥ रहाउ दूजा ॥

मनुष्य ईश्वर को समझने और उसकी आज्ञा का पालन करके ही उसे महसूस कर पाता है॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ ਕਾ ॥
सिरीरागु त्रिलोचन का ॥

श्रीरागु त्रिलोचन का ॥

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਮਨਿ ਆਗਲੜਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜਰਾ ਮਰਣੁ ਭਉ ਵਿਸਰਿ ਗਇਆ ॥
माइआ मोहु मनि आगलड़ा प्राणी जरा मरणु भउ विसरि गइआ ॥

हे प्राणी ! तेरे मन में मोह-माया की इतनी आसक्ति है कि तुझे बुढ़ापा और मृत्यु का भय भी भूल गया है।

ਕੁਟੰਬੁ ਦੇਖਿ ਬਿਗਸਹਿ ਕਮਲਾ ਜਿਉ ਪਰ ਘਰਿ ਜੋਹਹਿ ਕਪਟ ਨਰਾ ॥੧॥
कुटंबु देखि बिगसहि कमला जिउ पर घरि जोहहि कपट नरा ॥१॥

हे कपटी मानव ! तुम अपने परिवार को देखकर कमल के फूल के समान खिलते हो। परन्तु तुम औरों के घरों को बुरी दृष्टि से देखते हो॥१॥

ਦੂੜਾ ਆਇਓਹਿ ਜਮਹਿ ਤਣਾ ॥
दूड़ा आइओहि जमहि तणा ॥

जब मृत्यु का शक्तिशाली दूत आएगा,

ਤਿਨ ਆਗਲੜੈ ਮੈ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
तिन आगलड़ै मै रहणु न जाइ ॥

उसकी अद्भुत शक्ति के सामने कोई टिक नहीं सकता।

ਕੋਈ ਕੋਈ ਸਾਜਣੁ ਆਇ ਕਹੈ ॥
कोई कोई साजणु आइ कहै ॥

मैं उनकी अद्भुत शक्ति के सामने टिक नहीं पाऊँगा।

ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਬੀਠੁਲਾ ਲੈ ਬਾਹੜੀ ਵਲਾਇ ॥
मिलु मेरे बीठुला लै बाहड़ी वलाइ ॥

"हे मेरे प्रियतम, मुझे अपने आलिंगन में ले लो!

ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਰਮਈਆ ਮੈ ਲੇਹਿ ਛਡਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलु मेरे रमईआ मै लेहि छडाइ ॥१॥ रहाउ ॥

हे मेरे प्रभु, कृपया मुझे बचा लो!" ||१||विराम||

ਅਨਿਕ ਅਨਿਕ ਭੋਗ ਰਾਜ ਬਿਸਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਪੈ ਅਮਰੁ ਭਇਆ ॥
अनिक अनिक भोग राज बिसरे प्राणी संसार सागर पै अमरु भइआ ॥

हे मेरे राम ! मुझे मिलो और माया के बन्धन से मुक्त करो ॥१॥ रहाउ ॥

ਮਾਇਆ ਮੂਠਾ ਚੇਤਸਿ ਨਾਹੀ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਓ ਆਲਸੀਆ ॥੨॥
माइआ मूठा चेतसि नाही जनमु गवाइओ आलसीआ ॥२॥

हे नश्वर प्राणी ! तूने विभिन्न प्रकार के भोग-विलासों एवं राजकीय शान-शौकत में पड़कर ईश्वर को विस्मृत कर दिया है तथा माया से लिप्त इस संसार सागर में तुम इसप्रकार रहते हो जैसे कि तुम अमर हो।

ਬਿਖਮ ਘੋਰ ਪੰਥਿ ਚਾਲਣਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਰਵਿ ਸਸਿ ਤਹ ਨ ਪ੍ਰਵੇਸੰ ॥
बिखम घोर पंथि चालणा प्राणी रवि ससि तह न प्रवेसं ॥

हे आलसी प्राणी ! माया से मोहित होकर तुम भगवान को याद नहीं करते और तूने अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ ही गंवा दिया है॥ २॥

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਤਬ ਬਿਸਰਿ ਗਇਆ ਜਾਂ ਤਜੀਅਲੇ ਸੰਸਾਰੰ ॥੩॥
माइआ मोहु तब बिसरि गइआ जां तजीअले संसारं ॥३॥

हे नश्वर, तुम माया के प्रति प्रेम के कारण अत्यंत अंधकारमय मार्ग पर चल रहे हो और उस मार्ग पर न तो सूर्य चमकता है और न ही चंद्रमा, तुम्हें उस मार्ग पर कभी भी होश नहीं आता भाव उस अंधकारमय पर तेरी बुद्धि को प्रकाशित करने के लिए न तो किसी सूर्य का प्रकाश है और न ही किसी चंद्रमा का प्रकाश।

ਆਜੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਪ੍ਰਗਟੁ ਭਇਆ ਹੈ ਪੇਖੀਅਲੇ ਧਰਮਰਾਓ ॥
आजु मेरै मनि प्रगटु भइआ है पेखीअले धरमराओ ॥

इस संसार से प्रस्थान करते हुए जीव माया के मोह को त्याग देता है, (तो फिर आप इसे अभी क्यों नहीं त्याग देते)?

ਤਹ ਕਰ ਦਲ ਕਰਨਿ ਮਹਾਬਲੀ ਤਿਨ ਆਗਲੜੈ ਮੈ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥੪॥
तह कर दल करनि महाबली तिन आगलड़ै मै रहणु न जाइ ॥४॥

अब मेरे मन में यह स्पष्ट हो गया कि (माया के प्रेम में डूबे रहने से) धर्मात्मा न्यायाधीश अर्थात् यमराज का सामना करना ही पड़ेगा;

ਜੇ ਕੋ ਮੂੰ ਉਪਦੇਸੁ ਕਰਤੁ ਹੈ ਤਾ ਵਣਿ ਤ੍ਰਿਣਿ ਰਤੜਾ ਨਾਰਾਇਣਾ ॥
जे को मूं उपदेसु करतु है ता वणि त्रिणि रतड़ा नाराइणा ॥

वहाँ यमराज के शक्तिशाली दूत बलवान लोगों का अपने हाथों से दलन करते हैं और मैं उनके समक्ष टिक नहीं पाऊँगा ॥४॥

ਐ ਜੀ ਤੂੰ ਆਪੇ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ਬਦਤਿ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨੁ ਰਾਮਈਆ ॥੫॥੨॥
ऐ जी तूं आपे सभ किछु जाणदा बदति त्रिलोचनु रामईआ ॥५॥२॥

हे नारायण ! जब कोई मुझे उपदेश करता है तो मुझे यूं लगता है कि जैसे तुम वनों में, खलिहानों में एवं घास के तृणों में भी विद्यमान हो।

ਸ੍ਰੀਰਾਗੁ ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕਾ ॥
स्रीरागु भगत कबीर जीउ का ॥

भक्त त्रिलोचन जी प्रार्थना करते हैं कि हे मेरे राम ! आप सर्वज्ञ हो भाव आप स्वयं ही सबकुछ जानते हो ॥ ५ ॥ २ ॥

ਅਚਰਜ ਏਕੁ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਪੰਡੀਆ ਅਬ ਕਿਛੁ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥
अचरज एकु सुनहु रे पंडीआ अब किछु कहनु न जाई ॥

श्री रागु भगत कबीर जीउ का ॥

ਸੁਰਿ ਨਰ ਗਣ ਗੰਧ੍ਰਬ ਜਿਨਿ ਮੋਹੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਮੇਖੁਲੀ ਲਾਈ ॥੧॥
सुरि नर गण गंध्रब जिनि मोहे त्रिभवण मेखुली लाई ॥१॥

हे पण्डित ! परमात्मा की माया के विषय की एक आश्चर्यजनक बात सुनो (जो मैंने अनुभव की है), परन्तु उसका अभी (पूरा) वर्णन नहीं किया जा सकता।

ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਅਨਹਦ ਕਿੰਗੁਰੀ ਬਾਜੈ ॥
राजा राम अनहद किंगुरी बाजै ॥

उसने देवते, मनुष्य, स्वर्ग के गण-गंधर्व सभी मोहित कर रखे हैं और उसने तीनों लोकों आकाश, पाताल एवं पृथ्वी को सांसारिक माया की डोर से बाँधा हुआ है। ॥१॥

ਜਾ ਕੀ ਦਿਸਟਿ ਨਾਦ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा की दिसटि नाद लिव लागै ॥१॥ रहाउ ॥

हे मेरे राम ! आपकी वीणा की एक निरंतर दिव्य धुन बज रही है, जिससे अनहद नाद उत्पन्न हो रहा है जो मेरे भीतर कंपन उत्पन्न करती है,

ਭਾਠੀ ਗਗਨੁ ਸਿੰਙਿਆ ਅਰੁ ਚੁੰਙਿਆ ਕਨਕ ਕਲਸ ਇਕੁ ਪਾਇਆ ॥
भाठी गगनु सिंङिआ अरु चुंङिआ कनक कलस इकु पाइआ ॥

आपकी कृपा-दृष्टि से भक्तजन इस दिव्य नाद में एकाग्रचित हो जाते है ॥१॥ रहाउ॥

ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਧਾਰ ਚੁਐ ਅਤਿ ਨਿਰਮਲ ਰਸ ਮਹਿ ਰਸਨ ਚੁਆਇਆ ॥੨॥
तिसु महि धार चुऐ अति निरमल रस महि रसन चुआइआ ॥२॥

नाम का अमृत संचय करने के लिए मेरा उन्नत मन भट्टी के समान है, वह विकारों को त्याग देता है और गुणों को मेरे स्वर्ण कुंड रूपी हृदय में रखता है(दशम द्वार पर मदिरा खींचने की भट्टी है, इड़ा-पिंगला दोनों नलकियाँ हैं और शुद्ध अन्तःकरण मदिरा भरने के लिए स्वर्ण-पात्र है।)अब मुझे भगवान् का अनुभव हो गया है।

ਏਕ ਜੁ ਬਾਤ ਅਨੂਪ ਬਨੀ ਹੈ ਪਵਨ ਪਿਆਲਾ ਸਾਜਿਆ ॥
एक जु बात अनूप बनी है पवन पिआला साजिआ ॥

उस पात्र में निर्मल हरि रस की धारा स्रवित होती है। यह बहने वाला हरि रस अन्यों रसों से श्रेष्ठ रस है ॥२॥

ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਮਹਿ ਏਕੋ ਜੋਗੀ ਕਹਹੁ ਕਵਨੁ ਹੈ ਰਾਜਾ ॥੩॥
तीनि भवन महि एको जोगी कहहु कवनु है राजा ॥३॥

एक बहुत ही सुंदर और आश्चर्यजनक बात हुई है, कि मैं अपनी हर सांस में भगवान् को इस तरह याद कर रहा हूँ जैसे कि मैंने अपनी श्वासों को नाम रूपी अमृत पीने के लिए प्याला बना लिया हो।

ਐਸੇ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਗਟਿਆ ਪੁਰਖੋਤਮ ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
ऐसे गिआन प्रगटिआ पुरखोतम कहु कबीर रंगि राता ॥

अब मैं तीनों लोकों में व्याप्त एक योगी सृष्टिकर्ता प्रभु की कल्पना कर रहा हूँ। हे पंडित! बताओ, उस प्रभु के अतिरिक्त इस जगत् का राजा अन्य कौन हो सकता है? ॥ ३॥

ਅਉਰ ਦੁਨੀ ਸਭ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨੀ ਮਨੁ ਰਾਮ ਰਸਾਇਨ ਮਾਤਾ ॥੪॥੩॥
अउर दुनी सभ भरमि भुलानी मनु राम रसाइन माता ॥४॥३॥

भगत कबीर जी कहते हैं कि मेरे अन्तर्मन में पुरुषोत्तम प्रभु का ऐसा ज्ञान प्रगट हो गया है कि मैं प्रभु के प्रेम में मग्न हो गया हूँ।


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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