श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 72


ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਲੋਚਦੇ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥
सुरि नर मुनि जन लोचदे सो सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ ॥४॥

सतगुरु ने मुझे उस प्रभु बारे बताया है जिस परमात्मा को पाने को देवता, मानव और ऋषि-मुनि कामना करते हैं। ॥४॥

ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੈਸੀ ਜਾਣੀਐ ॥
सतसंगति कैसी जाणीऐ ॥

सत्संगति किस प्रकार जानी जा सकती है?

ਜਿਥੈ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀਐ ॥
जिथै एको नामु वखाणीऐ ॥

एक प्रभु के नाम का वहाँ उच्चारण होता है।

ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਇ ਜੀਉ ॥੫॥
एको नामु हुकमु है नानक सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ ॥५॥

हे नानक ! हरिनाम ही ईश्वर की आज्ञा है, यह बात मुझे गुरु जी ने समझा दी है ॥५॥

ਇਹੁ ਜਗਤੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
इहु जगतु भरमि भुलाइआ ॥

यह संसार संदेह के कारण भ्रम भुलैया में पड़ा हुआ है।

ਆਪਹੁ ਤੁਧੁ ਖੁਆਇਆ ॥
आपहु तुधु खुआइआ ॥

हे प्रभु ! तुमने स्वयं ही प्राणियों के कर्मानुसार उन्हें भुलाया है।

ਪਰਤਾਪੁ ਲਗਾ ਦੋਹਾਗਣੀ ਭਾਗ ਜਿਨਾ ਕੇ ਨਾਹਿ ਜੀਉ ॥੬॥
परतापु लगा दोहागणी भाग जिना के नाहि जीउ ॥६॥

वे प्राणी जिनके भाग्य में परमात्मा का मिलन नहीं, वियोगिनी स्त्री के समान प्रतिदिन तड़पते रहते हैं। ॥६॥

ਦੋਹਾਗਣੀ ਕਿਆ ਨੀਸਾਣੀਆ ॥
दोहागणी किआ नीसाणीआ ॥

दुहागिन नारियों के क्या लक्ष्ण हैं?

ਖਸਮਹੁ ਘੁਥੀਆ ਫਿਰਹਿ ਨਿਮਾਣੀਆ ॥
खसमहु घुथीआ फिरहि निमाणीआ ॥

वे पति द्वारा उपेक्षित मान-रहित होकर भटकती रहती हैं।

ਮੈਲੇ ਵੇਸ ਤਿਨਾ ਕਾਮਣੀ ਦੁਖੀ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਇ ਜੀਉ ॥੭॥
मैले वेस तिना कामणी दुखी रैणि विहाइ जीउ ॥७॥

उन दुर्भाग्यशाली नारियों की वेश-भूषा मलिन होती है और प्रतिदिन तड़प-तड़प कर रात्रि बिताती हैं ॥७॥

ਸੋਹਾਗਣੀ ਕਿਆ ਕਰਮੁ ਕਮਾਇਆ ॥
सोहागणी किआ करमु कमाइआ ॥

सुहागिन ने आखिर क्या शुभ कर्म कमाया है?

ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
पूरबि लिखिआ फलु पाइआ ॥

उसे ईश्वर ने पूर्व जन्म के किसी उत्तम कर्म का फल प्रदान किया है।

ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਕੈ ਆਪਣੀ ਆਪੇ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ਜੀਉ ॥੮॥
नदरि करे कै आपणी आपे लए मिलाइ जीउ ॥८॥

अपनी कृपा-दृष्टि करके परमेश्वर उनको अपने साथ मिला लेता है ॥८॥

ਹੁਕਮੁ ਜਿਨਾ ਨੋ ਮਨਾਇਆ ॥
हुकमु जिना नो मनाइआ ॥

जिन जिज्ञासु प्राणियों ने परमात्मा के आदेश की पालना की है,

ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਵਸਾਇਆ ॥
तिन अंतरि सबदु वसाइआ ॥

वे गुरु का सच्चा उपदेश मन में धारण करते हैं।

ਸਹੀਆ ਸੇ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨ ਸਹ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ਜੀਉ ॥੯॥
सहीआ से सोहागणी जिन सह नालि पिआरु जीउ ॥९॥

ऐसी सखियाँ सत्यवती पत्नी हैं, जो अपने पिया के साथ अर्थात् प्रभु के साथ प्रीति करती हैं ॥९ ॥

ਜਿਨਾ ਭਾਣੇ ਕਾ ਰਸੁ ਆਇਆ ॥
जिना भाणे का रसु आइआ ॥

जो ईश्वर की इच्छानुसार प्रसन्नता अनुभव करती हैं,

ਤਿਨ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
तिन विचहु भरमु चुकाइआ ॥

उनके भीतर से संदेह निवृत्त हो जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਐਸਾ ਜਾਣੀਐ ਜੋ ਸਭਸੈ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ਜੀਉ ॥੧੦॥
नानक सतिगुरु ऐसा जाणीऐ जो सभसै लए मिलाइ जीउ ॥१०॥

हे नानक ! सतगुरु ऐसा दयालु है जो सभी को भगवान् के साथ मिला देता है ॥१०॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
सतिगुरि मिलिऐ फलु पाइआ ॥

वह सतगुरु से मिलन करके हरि-नाम रूपी फल प्राप्त कर लेता है।

ਜਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਅਹਕਰਣੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
जिनि विचहु अहकरणु चुकाइआ ॥

जो अपने अहंकार को नाश कर देता है,

ਦੁਰਮਤਿ ਕਾ ਦੁਖੁ ਕਟਿਆ ਭਾਗੁ ਬੈਠਾ ਮਸਤਕਿ ਆਇ ਜੀਉ ॥੧੧॥
दुरमति का दुखु कटिआ भागु बैठा मसतकि आइ जीउ ॥११॥

उसकी मंद-बुद्धि की पीड़ा निवृत हो जाती है और उसके मस्तक पर भाग्योदय हो जाता है ॥११॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀਆ ॥
अंम्रितु तेरी बाणीआ ॥

हे प्रभु ! तेरी वाणी अमृत समान है।

ਤੇਰਿਆ ਭਗਤਾ ਰਿਦੈ ਸਮਾਣੀਆ ॥
तेरिआ भगता रिदै समाणीआ ॥

यह तेरे भक्तों के मन में रमी हुई है।

ਸੁਖ ਸੇਵਾ ਅੰਦਰਿ ਰਖਿਐ ਆਪਣੀ ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਨਿਸਤਾਰਿ ਜੀਉ ॥੧੨॥
सुख सेवा अंदरि रखिऐ आपणी नदरि करहि निसतारि जीउ ॥१२॥

तुम्हारी सेवा में ही वास्तविक सुख की उपलब्धि है और अपनी कृपा-दृष्टि से तुम अपने भक्तों को भवसागर से पार कर देते हो ॥१२॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਜਾਣੀਐ ॥
सतिगुरु मिलिआ जाणीऐ ॥

सच्चा गुरु के साथ बैठक, किसी को पता नहीं आता है;

ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀਐ ॥
जितु मिलिऐ नामु वखाणीऐ ॥

इस बैठक से, एक को नाम मंत्र आता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝੁ ਨ ਪਾਇਓ ਸਭ ਥਕੀ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ਜੀਉ ॥੧੩॥
सतिगुर बाझु न पाइओ सभ थकी करम कमाइ जीउ ॥१३॥

यदि इस मिलन द्वारा ईश्वर के नाम का उच्चारण किया जाए।

ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਘੁਮਾਇਆ ॥
हउ सतिगुर विटहु घुमाइआ ॥

सतगुरु के बिना किसी को भी प्रभु प्राप्त नहीं हुआ। सारी दुनिया धर्म-कर्म करते-करते थक गई है ॥१३॥

ਜਿਨਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭੁਲਾ ਮਾਰਗਿ ਪਾਇਆ ॥
जिनि भ्रमि भुला मारगि पाइआ ॥

मैं अपने सतगुरु पर बलिहार जाता हूँ

ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜੇ ਆਪਣੀ ਆਪੇ ਲਏ ਰਲਾਇ ਜੀਉ ॥੧੪॥
नदरि करे जे आपणी आपे लए रलाइ जीउ ॥१४॥

जिसने मुझे माया-तृष्णा के भ्रमों से निकाल कर सद्मार्ग लगाया है।

ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥
तूं सभना माहि समाइआ ॥

यदि सतगुरु अपनी कृपा-दृष्टि करे तो यह मनुष्य को अपनी संगति में मिला लेता है ॥१४॥

ਤਿਨਿ ਕਰਤੈ ਆਪੁ ਲੁਕਾਇਆ ॥
तिनि करतै आपु लुकाइआ ॥

और फिर भी, निर्माता रहता है खुद को छुपा।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇਆ ਜਾ ਕਉ ਜੋਤਿ ਧਰੀ ਕਰਤਾਰਿ ਜੀਉ ॥੧੫॥
नानक गुरमुखि परगटु होइआ जा कउ जोति धरी करतारि जीउ ॥१५॥

ईश्वर ने अपनी ज्योति गुप्त रूप में मनुष्य के हृदय में रखी हुई है।

ਆਪੇ ਖਸਮਿ ਨਿਵਾਜਿਆ ॥
आपे खसमि निवाजिआ ॥

हे नानक ! जिस मनुष्य के हृदय में ईश्वर ने अपनी ज्योति रखी हुई हैं, ईश्वर गुरु के माध्यम से उस मनुष्य के हृदय में प्रगट हो जाता है। ॥१५॥

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੇ ਸਾਜਿਆ ॥
जीउ पिंडु दे साजिआ ॥

हे ईश्वर ! तुमने ही तन की मूर्ति गढ़कर

ਆਪਣੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖੀਆ ਦੁਇ ਕਰ ਮਸਤਕਿ ਧਾਰਿ ਜੀਉ ॥੧੬॥
आपणे सेवक की पैज रखीआ दुइ कर मसतकि धारि जीउ ॥१६॥

उसमें प्राणों का संचार करके मुझे पैदा किया है।

ਸਭਿ ਸੰਜਮ ਰਹੇ ਸਿਆਣਪਾ ॥
सभि संजम रहे सिआणपा ॥

भगवान् स्वयं अपने भक्त को अपनी पूरी सुरक्षा प्रदान करके उसके सम्मान की रक्षा करते हैं जैसे कि वह अपने दोनों हाथों को भक्त के मस्तक पर रख देते हैं। ॥१६॥

ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ॥
मेरा प्रभु सभु किछु जाणदा ॥

समूह अटकलें और चतुराईयाँ किसी काम नहीं आती।

ਪ੍ਰਗਟ ਪ੍ਰਤਾਪੁ ਵਰਤਾਇਓ ਸਭੁ ਲੋਕੁ ਕਰੈ ਜੈਕਾਰੁ ਜੀਉ ॥੧੭॥
प्रगट प्रतापु वरताइओ सभु लोकु करै जैकारु जीउ ॥१७॥

मेरा प्रभु सब कुछ जानता है।

ਮੇਰੇ ਗੁਣ ਅਵਗਨ ਨ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥
मेरे गुण अवगन न बीचारिआ ॥

ईश्वर ने मेरा प्रताप सब ओर प्रकट किया है और सब मेरी जय-जयकार करने लगे हैं ॥१७॥

ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਣਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮਾਰਿਆ ॥
प्रभि अपणा बिरदु समारिआ ॥

परमात्मा ने मेरे गुणों-अवगुणों पर ध्यान नहीं दिया,

ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਕੈ ਰਖਿਓਨੁ ਲਗੈ ਨ ਤਤੀ ਵਾਉ ਜੀਉ ॥੧੮॥
कंठि लाइ कै रखिओनु लगै न तती वाउ जीउ ॥१८॥

प्रभु ने तो केवल अपनी परम्परा (अपने भक्तों की रक्षा के लिए)का सम्मान किया है।

ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਇਆ ॥
मै मनि तनि प्रभू धिआइआ ॥

ईश्वर ने अपने गले लगा कर मेरी रक्षा की है और मुझे गर्म हवा भी नहीं छूती ॥१८॥

ਜੀਇ ਇਛਿਅੜਾ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
जीइ इछिअड़ा फलु पाइआ ॥

अपने तन-मन से मैंने प्रभु की स्तुति की है।

ਸਾਹ ਪਾਤਿਸਾਹ ਸਿਰਿ ਖਸਮੁ ਤੂੰ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਜੀਵੈ ਨਾਉ ਜੀਉ ॥੧੯॥
साह पातिसाह सिरि खसमु तूं जपि नानक जीवै नाउ जीउ ॥१९॥

इसलिए मुझे मनोवांछित फल प्राप्त हुआ है।


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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