वह हरि के सेवक धन्य हैं, जिन्होंने हरि-प्रभु का अनुभव प्राप्त कर लिया है।
मैं जाकर ऐसे सेवकों से हरि के विषय में पूछना चाहता हूँ।
मैं भगवान् के भक्तों के पैर (विनम्र भाव से) धोऊंगा, ताकि उनकी संगति में मैं भी भगवान् के नाम का अमृत पा सकूँ। ॥२॥
नाम के दाता सतगुरु ने मेरे हृदय में ईश्वर का नाम स्थापित कर दिया है।
परम सौभाग्य से मुझे गुरु की कृपा दृष्टि प्राप्त प्राप्त हुई है।
अब मैं नाम रूपी अमृत का आनंद लेता हूँ और सदा भगवान् के अमृत नाम का उच्चारण करता हूँ; यह नाम का अमृत केवल पूर्ण गुरु से ही प्राप्त किया जा सकता है। ॥३॥
हे प्रभु ! मुझे सद्पुरुषों की संगति में सम्मिलित होने और सतगुरु से मिलने में सहायता करें।
केवल संतो की सभा में हरि-नाम की श्रद्धापूर्वक आराधना की जा सकती है।
हे नानक ! मैं हरि कथा ही सुनता रहूँ और सुनाता रहूँ; क्यूँकि गुरु के उपदेश द्वारा मेरा मन हरि के नाम से तृप्त रहता है ॥४॥६॥
माझ महला ४ ॥
हे मेरी प्यारी सत्संगी बहनो ! आओ हम एक साथ प्रभु के साथ सम्मिलित हों।
जो मुझे मेरे प्रियतम प्रभु का पता बताएगी, मैं स्वयं को उसके प्रति समर्पित कर दूँगा।
सत्संग में मिलकर मैंने अपने साजन हरि को ढूंढ लिया है, अपने सतगुरु पर में बलिहारी जाता हूँ॥१॥
जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, उधर ही मैं अपने स्वामी प्रभु को देखता हूँ।
हे अन्तर्यामी प्रभु ! आप प्रत्येक हृदय में व्याप्त हैं।
पूर्ण गुरु ने मेरे परमेश्वर को मेरे साथ मेरे हृदय में विद्यमान दिखाया है; मैं अपने सतगुरु के प्रति सदा समर्पित हूँ। ॥२॥
सभी प्राणियों की रचना एक ही मूल तत्व से हुई है, वें सभी एक ही हवा में सांस लेते हैं और सभी में एक ही दिव्य प्रकाश विद्यमान है।
यद्यपि एक ही दिव्य प्रकाश भिन्न-भिन्न शरीरों में व्याप्त है, फिर भी सभी अलग-अलग हैं, और एक को दूसरे के लिए भ्रमित नहीं किया जा सकता है।
गुरु कृपा से मैं उस एक को देखने आया हूँ। मैं सच्चे गुरु के लिए बलिदान हूँ। ||३||
सच्चे गुरु के प्रति समर्पित करता हूँ। ॥३॥
सेवक नानक अमृत गुरु की वाणी का उच्चारण करता है।
गुरु के शिष्यों के हृदय को यह दिव्य वाणी बहुत आनंदित करती है।
पूर्ण सतगुरु वाणी द्वारा उपदेश देते हैं कि एक ही दिव्य प्रकाश सभी में विद्यमान है; और वह सतगुरु बड़े परोपकारी हैं।॥४॥७॥
उपरोक्त चौथे गुरु के सात चौ-पद हैं:
राग माझ, पाँचवाँ गुरु, चौ-पद, प्रथम ताल १ ॥
मेरे मन को गुरु के दर्शनों की तीव्र अभिलाषा हो रही है।
यह चातक की भाँति विलाप करता है, जो वर्षा के जल की एक विशेष बूंद के लिए तरसता है।
अपने प्रिय गुरु के दर्शनों के बिना मेरी प्यास नहीं बुझती और न ही मुझे शांति प्राप्त होती है।॥१॥
मैं अपने आप को प्रिय संत गुरु की कृपा दृष्टि के प्रति समर्पित करता हूँ॥१॥ रहाउ॥
हे मेरे गुरु ! आपकी कृपा दृष्टि कल्याणकारी है, और आपकी स्तुति के दिव्य शब्द मेरे भीतर आध्यात्मिक संतुलन पैदा करते हैं।
हे प्रभु ! आपकी कृपा दृष्टि प्राप्त किए हुए मुझे अत्यधिक समय हो चुका है।
हे मेरे सज्जन एवं मित्र प्रभु ! वह हृदय धन्य है जहाँ आप विद्यमान हो॥२॥
हे मेरे दिव्य गुरु जी ! मैं आप पर तन-मन से न्यौछावर हूँ और आपके प्रति समर्पित हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
आपके स्मरण के बिना एक क्षण भी कलयुग के लम्बे काल के समान दुःखदायी है।