श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 82


ਸੰਤ ਜਨਾ ਵਿਣੁ ਭਾਈਆ ਹਰਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ਨਾਉ ॥
संत जना विणु भाईआ हरि किनै न पाइआ नाउ ॥

हे भाई ! भ्रातृ तुल्य संतजनों की कृपा के बिना ईश्वर का नाम प्राप्त नहीं होता।

ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਵਦੇ ਜਿਉ ਵੇਸੁਆ ਪੁਤੁ ਨਿਨਾਉ ॥
विचि हउमै करम कमावदे जिउ वेसुआ पुतु निनाउ ॥

स्वेच्छाचारी जो लोग अहंकारवश कर्म करते हैं, वें उस वेश्या-पुत्र के समान है जोकि अपने पिता का नाम नहीं जानता।

ਪਿਤਾ ਜਾਤਿ ਤਾ ਹੋਈਐ ਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਕਰੇ ਪਸਾਉ ॥
पिता जाति ता होईऐ गुरु तुठा करे पसाउ ॥

कोई व्यक्ति परम पिता को तभी प्राप्त करता है, यदि गुरु जी प्रसन्न होकर उसे अपनी कृपा प्रदान करें।

ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਗਾ ਭਾਉ ॥
वडभागी गुरु पाइआ हरि अहिनिसि लगा भाउ ॥

सौभाग्यवश मनुष्य गुरु से मिलते हैं और उनके उपदेशों का पालन करते हैं वें सदा प्रभु की प्रीति में मग्न रहते हैं।

ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਕਰਮ ਕਮਾਉ ॥੨॥
जन नानकि ब्रहमु पछाणिआ हरि कीरति करम कमाउ ॥२॥

भक्त नानक को ईश्वर की प्राप्ति हो गई है और वह प्रभु के गुणगान करने का कर्म कमाते हैं।

ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਗਾ ਚਾਉ ॥
मनि हरि हरि लगा चाउ ॥

जिसके हृदय में भगवान् के सिमरन हेतु उत्कंठा उत्पन्न हो गयी है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਨਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरि पूरै नामु द्रिड़ाइआ हरि मिलिआ हरि प्रभ नाउ ॥१॥ रहाउ ॥

पूर्ण गुरु ने उसके हृदय में नाम बसा दिया है। जिसका श्रद्धापूर्वक स्मरण कर उसने हरि-प्रभु के नाम को प्राप्त कर लिया है। ॥१॥ रहाउ॥

ਜਬ ਲਗੁ ਜੋਬਨਿ ਸਾਸੁ ਹੈ ਤਬ ਲਗੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
जब लगु जोबनि सासु है तब लगु नामु धिआइ ॥

हे बन्धु! जब तक तुम्हारा शरीर स्वस्थ है और उसमें प्राणों का संचार होता है, तब तक तुम हरि-नाम की आराधना करो।

ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ਹਰਿ ਚਲਸੀ ਹਰਿ ਅੰਤੇ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥
चलदिआ नालि हरि चलसी हरि अंते लए छडाइ ॥

प्रभु का का नाम आपके जीवन की यात्रा में आपका सहायक होगा और अंत समय में भी आपको कष्टों से बचाएगा।

ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਕਉ ਜਿਨ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਆਇ ॥
हउ बलिहारी तिन कउ जिन हरि मनि वुठा आइ ॥

मैं उन लोगों पर बलिहार जाता हूँ, जिनके हृदय में ईश्वर ने आकर वास कर लिया है।

ਜਿਨੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਸੇ ਅੰਤਿ ਗਏ ਪਛੁਤਾਇ ॥
जिनी हरि हरि नामु न चेतिओ से अंति गए पछुताइ ॥

जो लोग दुखभंजक हरि के नाम का चिन्तन नहीं करते, वे अंतिम समय पश्चाताप करते हुए चले जाएँगे।

ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਲਿਖਿਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੩॥
धुरि मसतकि हरि प्रभि लिखिआ जन नानक नामु धिआइ ॥३॥

हे भक्त नानक ! ईश्वर ने जिसके कर्मों में पहले से ही हरि स्मरण लिखा है, वहीं जीव ईश्वर के नाम का स्मरण करते हैं।॥३॥

ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਇ ॥
मन हरि हरि प्रीति लगाइ ॥

हे मेरे मन ! तू ईश्वर के नाम के साथ प्रीति लगा।

ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰਸਬਦੀ ਪਾਰਿ ਲਘਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वडभागी गुरु पाइआ गुरसबदी पारि लघाइ ॥१॥ रहाउ ॥

बड़े भाग्य से गुरु मिलते हैं; गुरु के शब्द के द्वारा हम उस पार पहुँच जाते हैं। ||१||विराम||

ਹਰਿ ਆਪੇ ਆਪੁ ਉਪਾਇਦਾ ਹਰਿ ਆਪੇ ਦੇਵੈ ਲੇਇ ॥
हरि आपे आपु उपाइदा हरि आपे देवै लेइ ॥

ईश्वर स्वयं इस सृष्टि में उत्पन्न होता है और स्वयं ही प्राण देता और लेता है।

ਹਰਿ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਦਾ ਹਰਿ ਆਪੇ ਹੀ ਮਤਿ ਦੇਇ ॥
हरि आपे भरमि भुलाइदा हरि आपे ही मति देइ ॥

(उनके पिछले कर्मों के आधार पर) भगवान् स्वयं ही लोगों को भ्रम में भटकाते हैं और स्वयं ही उन्हें धार्मिक जीवन जीने के लिए बुद्धि प्रदान करते हैं।

ਗੁਰਮੁਖਾ ਮਨਿ ਪਰਗਾਸੁ ਹੈ ਸੇ ਵਿਰਲੇ ਕੇਈ ਕੇਇ ॥
गुरमुखा मनि परगासु है से विरले केई केइ ॥

गुरमुखों के मन में आत्मिक प्रकाश होता है और ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं।

ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਕਉ ਜਿਨ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰਮਤੇ ॥
हउ बलिहारी तिन कउ जिन हरि पाइआ गुरमते ॥

मैं उन पर बलिहार हो जाता हूँ, जिन्होंने गुरु के उपदेश द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया है।

ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਵੁਠੜਾ ਹੇ ॥੪॥
जन नानकि कमलु परगासिआ मनि हरि हरि वुठड़ा हे ॥४॥

श्री नानक के चित्त के अन्दर ईश्वर आकर बस गए हैं और मेरा हृदय कमल के फूल के समान प्रफुल्लित हो गया है ॥४॥

ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨੁ ਕਰੇ ॥
मनि हरि हरि जपनु करे ॥

हे मेरे मन ! तू सदा ईश्वर के नाम का जाप कर।

ਹਰਿ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਭਜਿ ਪਉ ਜਿੰਦੂ ਸਭ ਕਿਲਵਿਖ ਦੁਖ ਪਰਹਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि गुर सरणाई भजि पउ जिंदू सभ किलविख दुख परहरे ॥१॥ रहाउ ॥

हे मेरे मन ! तू भागकर ईश्वर रूपी गुरु की शरण ग्रहण कर और अपने सभी पाप तथा दुःखों का निवारण करो॥१॥ रहाउ॥

ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਮਨਿ ਵਸੈ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਕਿਤੁ ਭਤਿ ॥
घटि घटि रमईआ मनि वसै किउ पाईऐ कितु भति ॥

प्रभु प्रत्येक प्राणी के हृदय में अदृश्य रूप से निवास करते हैं तो उन्हें कैसे और किस रूप में प्राप्त किया जा सकता है?

ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੀਐ ਹਰਿ ਆਇ ਵਸੈ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ॥
गुरु पूरा सतिगुरु भेटीऐ हरि आइ वसै मनि चिति ॥

यदि प्राणी को भाग्यवश पूर्ण सतगुरु से मिल जाए और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करें तभी उसके चेतन हृदय में हरि आकर निवास करते हैं।

ਮੈ ਧਰ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਤੇ ਗਤਿ ਮਤਿ ॥
मै धर नामु अधारु है हरि नामै ते गति मति ॥

ईश्वर का नाम ही मेरा एकमात्र आश्रय और निर्वाह है और मैं भक्तिपूर्वक भगवान् के नाम का स्मरण करके सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति और विवेकशील बुद्धि प्राप्त करता हूँ।

ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਹੁ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਹੀ ਜਤਿ ਪਤਿ ॥
मै हरि हरि नामु विसाहु है हरि नामे ही जति पति ॥

ईश्वर का नाम ही मेरी आध्यात्मिक सम्पदा है और ईश्वर का नाम ही मेरा सामाजिक सम्मान एवं प्रतिष्ठा है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਰੰਗਿ ਰਤੜਾ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਤਿ ॥੫॥
जन नानक नामु धिआइआ रंगि रतड़ा हरि रंगि रति ॥५॥

हे भक्त नानक! जिसने प्रेमपूर्वक प्रभु के नाम की आराधना की है, वह सदा प्रभु के प्रेम से युक्त रहता है और उसी के नाम से प्रेम करता है॥५॥

ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਤਿ ॥
हरि धिआवहु हरि प्रभु सति ॥

हे बन्धु! सदा उस शाश्वत प्रभु का प्रेमपूर्वक ध्यान करो।

ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣਿਆ ਸਭ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਤੇ ਉਤਪਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर बचनी हरि प्रभु जाणिआ सभ हरि प्रभु ते उतपति ॥१॥ रहाउ ॥

सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वर से ही उत्पन्न हुई है, और उसे मात्र गुरु की शिक्षा के माध्यम से ही महसूस किया जा सकता है।॥१॥ रहाउ॥

ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਸੇ ਆਇ ਮਿਲੇ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ से आइ मिले गुर पासि ॥

जिन प्राणियों के भाग्य में गुरु-प्राप्ति लिखी है, वें गुरु से मिलते हैं।

ਸੇਵਕ ਭਾਇ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਗੁਰੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਗਾਸਿ ॥
सेवक भाइ वणजारिआ मित्रा गुरु हरि हरि नामु प्रगासि ॥

हे मेरे वणजारे मित्र ! जो व्यक्ति श्रद्धा भावना से गुरु के पास आते हैं, गुरु उनके हृदय में भगवान् के नाम का प्रकाश कर देते हैं।

ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਣਜੁ ਵਾਪਾਰੀਆ ਜਿਨ ਵਖਰੁ ਲਦਿਅੜਾ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ॥
धनु धनु वणजु वापारीआ जिन वखरु लदिअड़ा हरि रासि ॥

वह व्यापार और व्यापारी दोनों ही धन्य हैं, जिन्होंने ईश्वर के नाम का व्यापार किया है अर्थात् जो श्रद्धा की पूंजी लगाकर प्रभु नाम की सामग्री एकत्रित करते हैं।

ਗੁਰਮੁਖਾ ਦਰਿ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਸੇ ਆਇ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਪਾਸਿ ॥
गुरमुखा दरि मुख उजले से आइ मिले हरि पासि ॥

गुरुमुख लोग भाव गुरु जनों का अनुसरण करने वाले लोग भगवान् के नाम के साथ जुड़े होते हैं और प्रभु की उपस्थिति में सम्मानित होते हैं।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਤਿਨ ਪਾਇਆ ਜਿਨਾ ਆਪਿ ਤੁਠਾ ਗੁਣਤਾਸਿ ॥੬॥
जन नानक गुरु तिन पाइआ जिना आपि तुठा गुणतासि ॥६॥

हे नानक ! गुरु उन्हें ही मिलता है, जिन पर गुणों का भण्डार भगवान् स्वयं प्रसन्न होते हैं।॥६॥

ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ॥
हरि धिआवहु सासि गिरासि ॥

हे बन्धु ! प्रत्येक श्वास एवं भोजन के ग्रास के साथ तुम ईश्वर का ध्यान करो।

ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਤਿਨਾ ਗੁਰਮੁਖਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨਾ ਰਹਰਾਸਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥੧॥
मनि प्रीति लगी तिना गुरमुखा हरि नामु जिना रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥१॥

जिन्होंने भगवान् के नाम को अपने जीवन सफर की पूंजी बनाया है, केवल वे गुरु के अनुयायी ही भगवान् के प्रेम से ओतप्रोत होते है॥ १॥ रहाउ ॥१॥


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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