हे भाई ! भ्रातृ तुल्य संतजनों की कृपा के बिना ईश्वर का नाम प्राप्त नहीं होता।
स्वेच्छाचारी जो लोग अहंकारवश कर्म करते हैं, वें उस वेश्या-पुत्र के समान है जोकि अपने पिता का नाम नहीं जानता।
कोई व्यक्ति परम पिता को तभी प्राप्त करता है, यदि गुरु जी प्रसन्न होकर उसे अपनी कृपा प्रदान करें।
सौभाग्यवश मनुष्य गुरु से मिलते हैं और उनके उपदेशों का पालन करते हैं वें सदा प्रभु की प्रीति में मग्न रहते हैं।
भक्त नानक को ईश्वर की प्राप्ति हो गई है और वह प्रभु के गुणगान करने का कर्म कमाते हैं।
जिसके हृदय में भगवान् के सिमरन हेतु उत्कंठा उत्पन्न हो गयी है।
पूर्ण गुरु ने उसके हृदय में नाम बसा दिया है। जिसका श्रद्धापूर्वक स्मरण कर उसने हरि-प्रभु के नाम को प्राप्त कर लिया है। ॥१॥ रहाउ॥
हे बन्धु! जब तक तुम्हारा शरीर स्वस्थ है और उसमें प्राणों का संचार होता है, तब तक तुम हरि-नाम की आराधना करो।
प्रभु का का नाम आपके जीवन की यात्रा में आपका सहायक होगा और अंत समय में भी आपको कष्टों से बचाएगा।
मैं उन लोगों पर बलिहार जाता हूँ, जिनके हृदय में ईश्वर ने आकर वास कर लिया है।
जो लोग दुखभंजक हरि के नाम का चिन्तन नहीं करते, वे अंतिम समय पश्चाताप करते हुए चले जाएँगे।
हे भक्त नानक ! ईश्वर ने जिसके कर्मों में पहले से ही हरि स्मरण लिखा है, वहीं जीव ईश्वर के नाम का स्मरण करते हैं।॥३॥
हे मेरे मन ! तू ईश्वर के नाम के साथ प्रीति लगा।
बड़े भाग्य से गुरु मिलते हैं; गुरु के शब्द के द्वारा हम उस पार पहुँच जाते हैं। ||१||विराम||
ईश्वर स्वयं इस सृष्टि में उत्पन्न होता है और स्वयं ही प्राण देता और लेता है।
(उनके पिछले कर्मों के आधार पर) भगवान् स्वयं ही लोगों को भ्रम में भटकाते हैं और स्वयं ही उन्हें धार्मिक जीवन जीने के लिए बुद्धि प्रदान करते हैं।
गुरमुखों के मन में आत्मिक प्रकाश होता है और ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं।
मैं उन पर बलिहार हो जाता हूँ, जिन्होंने गुरु के उपदेश द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया है।
श्री नानक के चित्त के अन्दर ईश्वर आकर बस गए हैं और मेरा हृदय कमल के फूल के समान प्रफुल्लित हो गया है ॥४॥
हे मेरे मन ! तू सदा ईश्वर के नाम का जाप कर।
हे मेरे मन ! तू भागकर ईश्वर रूपी गुरु की शरण ग्रहण कर और अपने सभी पाप तथा दुःखों का निवारण करो॥१॥ रहाउ॥
प्रभु प्रत्येक प्राणी के हृदय में अदृश्य रूप से निवास करते हैं तो उन्हें कैसे और किस रूप में प्राप्त किया जा सकता है?
यदि प्राणी को भाग्यवश पूर्ण सतगुरु से मिल जाए और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करें तभी उसके चेतन हृदय में हरि आकर निवास करते हैं।
ईश्वर का नाम ही मेरा एकमात्र आश्रय और निर्वाह है और मैं भक्तिपूर्वक भगवान् के नाम का स्मरण करके सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति और विवेकशील बुद्धि प्राप्त करता हूँ।
ईश्वर का नाम ही मेरी आध्यात्मिक सम्पदा है और ईश्वर का नाम ही मेरा सामाजिक सम्मान एवं प्रतिष्ठा है।
हे भक्त नानक! जिसने प्रेमपूर्वक प्रभु के नाम की आराधना की है, वह सदा प्रभु के प्रेम से युक्त रहता है और उसी के नाम से प्रेम करता है॥५॥
हे बन्धु! सदा उस शाश्वत प्रभु का प्रेमपूर्वक ध्यान करो।
सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वर से ही उत्पन्न हुई है, और उसे मात्र गुरु की शिक्षा के माध्यम से ही महसूस किया जा सकता है।॥१॥ रहाउ॥
जिन प्राणियों के भाग्य में गुरु-प्राप्ति लिखी है, वें गुरु से मिलते हैं।
हे मेरे वणजारे मित्र ! जो व्यक्ति श्रद्धा भावना से गुरु के पास आते हैं, गुरु उनके हृदय में भगवान् के नाम का प्रकाश कर देते हैं।
वह व्यापार और व्यापारी दोनों ही धन्य हैं, जिन्होंने ईश्वर के नाम का व्यापार किया है अर्थात् जो श्रद्धा की पूंजी लगाकर प्रभु नाम की सामग्री एकत्रित करते हैं।
गुरुमुख लोग भाव गुरु जनों का अनुसरण करने वाले लोग भगवान् के नाम के साथ जुड़े होते हैं और प्रभु की उपस्थिति में सम्मानित होते हैं।
हे नानक ! गुरु उन्हें ही मिलता है, जिन पर गुणों का भण्डार भगवान् स्वयं प्रसन्न होते हैं।॥६॥
हे बन्धु ! प्रत्येक श्वास एवं भोजन के ग्रास के साथ तुम ईश्वर का ध्यान करो।
जिन्होंने भगवान् के नाम को अपने जीवन सफर की पूंजी बनाया है, केवल वे गुरु के अनुयायी ही भगवान् के प्रेम से ओतप्रोत होते है॥ १॥ रहाउ ॥१॥