भक्त नाम रूपी अमृत को चखते हैं, विकारों के विरूद्ध आध्यात्मिक रूप से स्थिर हो जाते हैं, और समझ जाते हैं कि माया के सुख नीरस पानी की तरह हैं।
जब मेरे गोपाल प्रभु मुझ पर दयावान हो गए तो मेरे मन ने सत्संगति में ही नवनिधि को संचित स्वीकार कर लिया।
प्रभु के प्रिय भक्त सदा हरि-नाम रूपी रत्न को अपने हृदय में संजो कर रखते हैं और वह समस्त सुख-सुविधाओं का आनंद प्राप्त करते हैं।
हे नानक ! वें अपने प्राणों के आधार प्रभु का नाम क्षण भर के लिए भी विस्मृत नहीं करतें। वें हर समय उसका नाम-सिमरन करके ही जीवित रहते हैं। ॥३॥
डखणा ॥
हे प्रभु ! आप केवल उन्हें ही को प्राप्त होते हो, जिन्हें आप अपना बना लेते हो।
हे नानक ! प्रभु भक्तजनों से अपनी महिमा सुनकर स्वयं मुग्ध हो जाते हैं।॥१॥
छंद॥
भक्त भगवान् को अपने प्रेम और भक्ति से मोहित कर जीत लेते हैं जो कि एक नशीली जड़ी-बूटी के समान है।
संतों की कृपा से, दुर्लभ भाग्यशाली व्यक्ति अपने जीवन को अलंकृत करता है और अपरिमेय भगवान् के प्रेमालिंगन में सजीला दिखता है।
भगवान के प्रेममय आलिंगन में आकर मैं सुन्दर लग रही हूँ, और मेरे सारे दुःख दूर हो गए हैं। अपने भक्तों की प्रेममयी पूजा से भगवान उनके वश में आ गए हैं।
जब गोबिंद प्रसन्न हुए तो सभी सुख और शांति उसके मन में आकर बस गए हैं और उसका जन्म-मृत्यु का चक्र टूट गया है।
जीव रूपी स्त्री ने अपनी सत्संगी सहेलियों के साथ मिलकर प्रभु का मंगल गान किया है। उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी हो गई है। अब उसे माया का मोह और नहीं सताता।
हे नानक ! प्रिय प्रभु ने जिनका हाथ पकड़ा है, वें इस संसार-सागर के विषय-विकारों से प्रभावित नहीं होते। ॥४॥
डखणा ॥
ईश्वर का नाम अमूल्य है। कोई भी इसका मोल नहीं जानता।
जिनके मस्तक पर भाग्य रेखाएँ विद्यमान हैं, हे नानक ! वे ईश्वर के साथ मिलन का आनंद प्राप्त करते हैं॥
छंद॥
जो लोग इसका जप करते हैं वे पवित्र हो जाते हैं। जो लोग इसे सुनते हैं वे धन्य हो जाते हैं और जो इसे लिखते हैं वे अपने पूर्वजों को बचा लेते हैं।
जिन्हें गुरु जनों का सानिध्य प्राप्त होता है, वें परमात्मा के नाम को स्मरण करने और उनके गुणों पर विचार करने का आनंद लेते हैं।
जिस पर भगवान् की कृपा हुई, उसने ब्रह्म का चिन्तन कर अपना जीवन सफल कर लिया है।
जिसे प्रभु ने अपने संरक्षण में ले लिया और अपनी स्तुति का उपहार दिया, उसे न तो आध्यात्मिक पतन का सामना करना पड़ता है और न ही वह योनियों के आवागमन में भटकता है।
उन जीवों का आध्यात्मिक जीवन खिलता है जिन्होंने दयालु सच्चे गुरु की शिक्षाओं का पालन करके काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार जैसे विषयी विकारों नष्ट कर दिया है।
जगत् का स्वामी अकथनीय है और उसकी महिमा कथन नहीं की जा सकती। नानक उस पर तन-मन से न्यौछावर हैं। इसलिए वह उस पर बलिहार जाता है॥ ५ ॥ १॥३ ॥
एक सर्वव्यापक सृष्टिकर्ता ईश्वर। सत्य ही नाम है। गुरु कृपा से:
जिस परमात्मा ने इस सृष्टि की रचना की है, उसका ‘हरि-हरि' नाम सबसे उत्तम है।
वह हरि-परमेश्वर समस्त जीवों का पालन-पोषण करता है और वह राम सर्वव्यापक है।
इसलिए हे बन्धु, हमें सदा उस परमात्मा का ध्यान करना चाहिए। चूंकि उसके अतिरिक्त जीव का अन्य कोई सहारा नहीं है।
जो व्यक्ति अपना चित्त माया के मोह में लगाकर रखते हैं, वे मृत्यु समय दुःखी होकर विलाप करते हुए सब कुछ दुनिया में छोड़कर ही चले जाते हैं।
हे नानक ! जो व्यक्ति भगवान् का नाम-सिमरन करते हैं, अन्तिम समय भगवान का नाम ही उनका साथी बनता है॥ १॥
हे बन्धु! मेरे प्रभु के अतिरिक्त इस संसार में मेरा अन्य कोई सहारा नहीं है।
हे मेरे वणजारे मित्र ! गुरु की शिक्षाओं का पालन करके अच्छे भाग्य द्वारा ही भगवद् प्राप्ति होती है।॥१॥ रहाउ॥