श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 98


ਥਿਰੁ ਸੁਹਾਗੁ ਵਰੁ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੇਮ ਸਾਧਾਰੀ ਜੀਉ ॥੪॥੪॥੧੧॥
थिरु सुहागु वरु अगमु अगोचरु जन नानक प्रेम साधारी जीउ ॥४॥४॥११॥

हे भक्त नानक, उस मनुष्य का शाश्वत और अज्ञेय ईश्वर के साथ मिलन हो जाता है और उसे सर्वदा ईश्वर के प्रेम का सहारा मिलता है।॥ ४ ॥ ४ ॥ ११ ॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥

माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥

ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਦਰਸਨ ਚਾਹੇ ॥
खोजत खोजत दरसन चाहे ॥

ईश्वर की तलाश और खोज करते हुए, बहुत से लोगों में ईश्वर की कृपा दृष्टि प्राप्त करने की लालसा विकसित हो जाती है,

ਭਾਤਿ ਭਾਤਿ ਬਨ ਬਨ ਅਵਗਾਹੇ ॥
भाति भाति बन बन अवगाहे ॥

और वें विभिन्न प्रकार के वनों में भ्रमण करते रहते हैं।

ਨਿਰਗੁਣੁ ਸਰਗੁਣੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਕੋਈ ਹੈ ਜੀਉ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਜੀਉ ॥੧॥
निरगुणु सरगुणु हरि हरि मेरा कोई है जीउ आणि मिलावै जीउ ॥१॥

क्या कोई है जो मुझे मेरे ईश्वर से मिला सकता है जो एक ही समय में अमूर्त (माया से अप्रभावित) होते हुए भी मूर्त (प्रत्येक पदार्थ में प्रकट) है? ॥१॥

ਖਟੁ ਸਾਸਤ ਬਿਚਰਤ ਮੁਖਿ ਗਿਆਨਾ ॥
खटु सासत बिचरत मुखि गिआना ॥

लोग षड् दर्शन शास्त्रों का ज्ञान अपनी स्मृति अनुसार दोहराते हैं।

ਪੂਜਾ ਤਿਲਕੁ ਤੀਰਥ ਇਸਨਾਨਾ ॥
पूजा तिलकु तीरथ इसनाना ॥

कई लोग तीर्थों के शुद्ध स्नान करते हैं, कई लोग देवतों की पूजा करते हैं और माथे पर तिलक लगाते हैं।

ਨਿਵਲੀ ਕਰਮ ਆਸਨ ਚਉਰਾਸੀਹ ਇਨ ਮਹਿ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਵੈ ਜੀਉ ॥੨॥
निवली करम आसन चउरासीह इन महि सांति न आवै जीउ ॥२॥

कई लोग अपने अंतःकरण को शुद्ध करने के लिए कुशलतापूर्वक कई कर्म करते हैं और कई लोग चौरासी प्रकार के योग आसन लगाते हैं परन्तु इन विधियों द्वारा मन को शांति नहीं मिलती ॥२॥

ਅਨਿਕ ਬਰਖ ਕੀਏ ਜਪ ਤਾਪਾ ॥
अनिक बरख कीए जप तापा ॥

कई वर्षों तक वें (योगी) ध्यान करते हैं और कठोर आत्म-अनुशासन का अभ्यास करते हैं।

ਗਵਨੁ ਕੀਆ ਧਰਤੀ ਭਰਮਾਤਾ ॥
गवनु कीआ धरती भरमाता ॥

वें समस्त संसार का भ्रमण करते हैं

ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਹਿਰਦੈ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਵੈ ਜੋਗੀ ਬਹੁੜਿ ਬਹੁੜਿ ਉਠਿ ਧਾਵੈ ਜੀਉ ॥੩॥
इकु खिनु हिरदै सांति न आवै जोगी बहुड़ि बहुड़ि उठि धावै जीउ ॥३॥

परन्तु उसके हृदय में एक क्षण भर के लिए भी शांति प्राप्त नहीं होती और वह पुनःपुन इन अनुष्ठानों को करते रहते हैं ॥३॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਸਾਧੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥
करि किरपा मोहि साधु मिलाइआ ॥

प्रभु ने कृपा करके मुझे संतों से मिला दिया है।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਧੀਰਜੁ ਪਾਇਆ ॥
मनु तनु सीतलु धीरजु पाइआ ॥

मेरा मन और तन अत्यंत शीतल हो गए हैं और मुझे धैर्य मिल गया है।

ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਬਸਿਆ ਘਟ ਭੀਤਰਿ ਹਰਿ ਮੰਗਲੁ ਨਾਨਕੁ ਗਾਵੈ ਜੀਉ ॥੪॥੫॥੧੨॥
प्रभु अबिनासी बसिआ घट भीतरि हरि मंगलु नानकु गावै जीउ ॥४॥५॥१२॥

उस शाश्वत ब्रह्म ने मेरे हृदय में निवास कर लिया है और भक्त नानक हर्षित मन से ईश्वर के मंगल रूप का गुणानुवाद करता है ॥४॥५॥१२॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥

माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਅਪਰੰਪਰ ਦੇਵਾ ॥
पारब्रहम अपरंपर देवा ॥

ईश्वर, जो सर्वोच्च, अनंत और दिव्य प्रकाश है,

ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥
अगम अगोचर अलख अभेवा ॥

जो अबोधगम्य(जिसे जाना नहीं जा सकता), अदृश्य, अथाह और गूढ़ है,

ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦਾ ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਤੀ ਜੀਉ ॥੧॥
दीन दइआल गोपाल गोबिंदा हरि धिआवहु गुरमुखि गाती जीउ ॥१॥

नम्र लोगों पर दया करने वाला, और जगत का पालनकर्ता; गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से उन्हें प्रेमपूर्वक याद करने से विकारों से मुक्ति मिलती है। || ॥१॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਧੁਸੂਦਨੁ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥
गुरमुखि मधुसूदनु निसतारे ॥

हे मधुसूदन ! आपने गुरमुखों की विकारों से रक्षा की है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੰਗੀ ਕ੍ਰਿਸਨ ਮੁਰਾਰੇ ॥
गुरमुखि संगी क्रिसन मुरारे ॥

हे कृष्ण मुरारी ! आप गुरमुखों के साथी हो।

ਦਇਆਲ ਦਮੋਦਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਹੋਰਤੁ ਕਿਤੈ ਨ ਭਾਤੀ ਜੀਉ ॥੨॥
दइआल दमोदरु गुरमुखि पाईऐ होरतु कितै न भाती जीउ ॥२॥

केवल गुरु की कृपा से दयालु दामोदर प्राप्त होता है और किसी अन्य विधि से वह प्राप्त नहीं होता।॥२॥

ਨਿਰਹਾਰੀ ਕੇਸਵ ਨਿਰਵੈਰਾ ॥
निरहारी केसव निरवैरा ॥

हे केशव ! आपको किसी से द्वेष नहीं है और आप स्वयंभू हो।

ਕੋਟਿ ਜਨਾ ਜਾ ਕੇ ਪੂਜਹਿ ਪੈਰਾ ॥
कोटि जना जा के पूजहि पैरा ॥

करोड़ों ही मनुष्य विनम्रतापूर्वक आपके चरणों की पूजा करते हैं।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਿਰਦੈ ਜਾ ਕੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੋਈ ਭਗਤੁ ਇਕਾਤੀ ਜੀਉ ॥੩॥
गुरमुखि हिरदै जा कै हरि हरि सोई भगतु इकाती जीउ ॥३॥

जिसके मन में गुरु के द्वारा हरि-परमेश्वर का नाम निवास करता है वहीं उसका अनन्य भक्त है॥३॥

ਅਮੋਘ ਦਰਸਨ ਬੇਅੰਤ ਅਪਾਰਾ ॥
अमोघ दरसन बेअंत अपारा ॥

प्रभु अनंत एवं अपार है और उसके दर्शन अवश्य ही फलदायक हैं।

ਵਡ ਸਮਰਥੁ ਸਦਾ ਦਾਤਾਰਾ ॥
वड समरथु सदा दातारा ॥

ईश्वर सर्वशक्तिमान है और वह सदैव महान् परोपकारी है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਤਿਤੁ ਤਰੀਐ ਗਤਿ ਨਾਨਕ ਵਿਰਲੀ ਜਾਤੀ ਜੀਉ ॥੪॥੬॥੧੩॥
गुरमुखि नामु जपीऐ तितु तरीऐ गति नानक विरली जाती जीउ ॥४॥६॥१३॥

हे नानक, गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से भगवान् को याद करने से विकारों से परिपूर्ण यह संसार-सागर पार हो जाता है, किन्तु केवल कुछ ही लोगों ने मन की इस सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति को समझा है। ॥४॥६॥१३॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥

माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥

ਕਹਿਆ ਕਰਣਾ ਦਿਤਾ ਲੈਣਾ ॥
कहिआ करणा दिता लैणा ॥

हे प्रभु! जो तुम कथन करते हो, वहीं कुछ मैं करता हूँ और जो कुछ तुम मुझे देते हो, मैं वहीं कुछ लेता हूँ।

ਗਰੀਬਾ ਅਨਾਥਾ ਤੇਰਾ ਮਾਣਾ ॥
गरीबा अनाथा तेरा माणा ॥

गरीब एवं अनाथ लोगों के आप रक्षक हो और उन्हें आप पर मान है।

ਸਭ ਕਿਛੁ ਤੂੰਹੈ ਤੂੰਹੈ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥
सभ किछु तूंहै तूंहै मेरे पिआरे तेरी कुदरति कउ बलि जाई जीउ ॥१॥

हे मेरे प्रिय प्रभु ! आप ही सर्वस्व हैं, मैं स्वयं को आपकी शक्ति के प्रति समर्पित करता हूँ।॥१॥

ਭਾਣੈ ਉਝੜ ਭਾਣੈ ਰਾਹਾ ॥
भाणै उझड़ भाणै राहा ॥

हे प्रभु ! तेरी इच्छा से कुछ लोग पथ भ्रष्ट होते हैं और तेरी इच्छा से ही कुछ लोग सन्मार्ग लगते हैं।

ਭਾਣੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵਾਹਾ ॥
भाणै हरि गुण गुरमुखि गावाहा ॥

केवल ईश्वर की इच्छा से है कि कुछ लोग गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं और उनकी स्तुति गुणगान करते हैं।

ਭਾਣੈ ਭਰਮਿ ਭਵੈ ਬਹੁ ਜੂਨੀ ਸਭ ਕਿਛੁ ਤਿਸੈ ਰਜਾਈ ਜੀਉ ॥੨॥
भाणै भरमि भवै बहु जूनी सभ किछु तिसै रजाई जीउ ॥२॥

तेरी इच्छा पर ही जीव भ्रमवश योनियों के अन्दर भटकते हैं; इस तरह सब कुछ प्रभु के आदेश पर ही हो रहा है॥२॥

ਨਾ ਕੋ ਮੂਰਖੁ ਨਾ ਕੋ ਸਿਆਣਾ ॥
ना को मूरखु ना को सिआणा ॥

हे प्रभु! इस जगत् में न कोई मूर्ख है और न ही कोई अपने कार्यों में बुद्धिमान है।

ਵਰਤੈ ਸਭ ਕਿਛੁ ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ॥
वरतै सभ किछु तेरा भाणा ॥

इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब आपकी इच्छानुसार ही हो रहा है।

ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਬੇਅੰਤ ਅਥਾਹਾ ਤੇਰੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੩॥
अगम अगोचर बेअंत अथाहा तेरी कीमति कहणु न जाई जीउ ॥३॥

हे मेरे परमात्मा ! आप अबोधगम्य, अगोचर, अनन्त और अपार हो। आपका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥३॥

ਖਾਕੁ ਸੰਤਨ ਕੀ ਦੇਹੁ ਪਿਆਰੇ ॥
खाकु संतन की देहु पिआरे ॥

हे प्रियतम प्रभु ! मुझे संतों के चरणों की धूल प्रदान करो।

ਆਇ ਪਇਆ ਹਰਿ ਤੇਰੈ ਦੁਆਰੈ ॥
आइ पइआ हरि तेरै दुआरै ॥

हे परमेश्वर ! मैंने आपकी शरण में आ गया हूँ।

ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤ ਮਨੁ ਆਘਾਵੈ ਨਾਨਕ ਮਿਲਣੁ ਸੁਭਾਈ ਜੀਉ ॥੪॥੭॥੧੪॥
दरसनु पेखत मनु आघावै नानक मिलणु सुभाई जीउ ॥४॥७॥१४॥

श्री नानक कहते हैं, हे प्रभु! आपके दर्शनों से मेरा मन तृप्त हो जाता हैं, और प्रभु से मिलन आपकी इच्छानुसार ही होता है। ॥४॥७॥१४॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥

माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥

ਦੁਖੁ ਤਦੇ ਜਾ ਵਿਸਰਿ ਜਾਵੈ ॥
दुखु तदे जा विसरि जावै ॥

मनुष्य जब भगवान् को विस्मृत कर देता है तो वह बहुत दुःखी होता है।

ਭੁਖ ਵਿਆਪੈ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਧਾਵੈ ॥
भुख विआपै बहु बिधि धावै ॥

मनुष्य माया (सांसारिक धन) की लालसा से पीड़ित होकर व्यक्ति इस लालसा को पूरा करने के लिए अनेक विधियों द्वारा धन प्राप्ति हेतु भरसक प्रयास करता है।

ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸੁਹੇਲਾ ਜਿਸੁ ਦੇਵੈ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ਜੀਉ ॥੧॥
सिमरत नामु सदा सुहेला जिसु देवै दीन दइआला जीउ ॥१॥

दीनदयालु प्रभु जिसे अपना नाम देता है, वही उसका नाम-सिमरन करके सदैव सुखी रहता है ॥१॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਵਡ ਸਮਰਥਾ ॥
सतिगुरु मेरा वड समरथा ॥

मेरा सतगुरु सर्वशक्तिमान है।


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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