हे भक्त नानक, उस मनुष्य का शाश्वत और अज्ञेय ईश्वर के साथ मिलन हो जाता है और उसे सर्वदा ईश्वर के प्रेम का सहारा मिलता है।॥ ४ ॥ ४ ॥ ११ ॥
माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥
ईश्वर की तलाश और खोज करते हुए, बहुत से लोगों में ईश्वर की कृपा दृष्टि प्राप्त करने की लालसा विकसित हो जाती है,
और वें विभिन्न प्रकार के वनों में भ्रमण करते रहते हैं।
क्या कोई है जो मुझे मेरे ईश्वर से मिला सकता है जो एक ही समय में अमूर्त (माया से अप्रभावित) होते हुए भी मूर्त (प्रत्येक पदार्थ में प्रकट) है? ॥१॥
लोग षड् दर्शन शास्त्रों का ज्ञान अपनी स्मृति अनुसार दोहराते हैं।
कई लोग तीर्थों के शुद्ध स्नान करते हैं, कई लोग देवतों की पूजा करते हैं और माथे पर तिलक लगाते हैं।
कई लोग अपने अंतःकरण को शुद्ध करने के लिए कुशलतापूर्वक कई कर्म करते हैं और कई लोग चौरासी प्रकार के योग आसन लगाते हैं परन्तु इन विधियों द्वारा मन को शांति नहीं मिलती ॥२॥
कई वर्षों तक वें (योगी) ध्यान करते हैं और कठोर आत्म-अनुशासन का अभ्यास करते हैं।
वें समस्त संसार का भ्रमण करते हैं
परन्तु उसके हृदय में एक क्षण भर के लिए भी शांति प्राप्त नहीं होती और वह पुनःपुन इन अनुष्ठानों को करते रहते हैं ॥३॥
प्रभु ने कृपा करके मुझे संतों से मिला दिया है।
मेरा मन और तन अत्यंत शीतल हो गए हैं और मुझे धैर्य मिल गया है।
उस शाश्वत ब्रह्म ने मेरे हृदय में निवास कर लिया है और भक्त नानक हर्षित मन से ईश्वर के मंगल रूप का गुणानुवाद करता है ॥४॥५॥१२॥
माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥
ईश्वर, जो सर्वोच्च, अनंत और दिव्य प्रकाश है,
जो अबोधगम्य(जिसे जाना नहीं जा सकता), अदृश्य, अथाह और गूढ़ है,
नम्र लोगों पर दया करने वाला, और जगत का पालनकर्ता; गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से उन्हें प्रेमपूर्वक याद करने से विकारों से मुक्ति मिलती है। || ॥१॥
हे मधुसूदन ! आपने गुरमुखों की विकारों से रक्षा की है।
हे कृष्ण मुरारी ! आप गुरमुखों के साथी हो।
केवल गुरु की कृपा से दयालु दामोदर प्राप्त होता है और किसी अन्य विधि से वह प्राप्त नहीं होता।॥२॥
हे केशव ! आपको किसी से द्वेष नहीं है और आप स्वयंभू हो।
करोड़ों ही मनुष्य विनम्रतापूर्वक आपके चरणों की पूजा करते हैं।
जिसके मन में गुरु के द्वारा हरि-परमेश्वर का नाम निवास करता है वहीं उसका अनन्य भक्त है॥३॥
प्रभु अनंत एवं अपार है और उसके दर्शन अवश्य ही फलदायक हैं।
ईश्वर सर्वशक्तिमान है और वह सदैव महान् परोपकारी है।
हे नानक, गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से भगवान् को याद करने से विकारों से परिपूर्ण यह संसार-सागर पार हो जाता है, किन्तु केवल कुछ ही लोगों ने मन की इस सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति को समझा है। ॥४॥६॥१३॥
माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥
हे प्रभु! जो तुम कथन करते हो, वहीं कुछ मैं करता हूँ और जो कुछ तुम मुझे देते हो, मैं वहीं कुछ लेता हूँ।
गरीब एवं अनाथ लोगों के आप रक्षक हो और उन्हें आप पर मान है।
हे मेरे प्रिय प्रभु ! आप ही सर्वस्व हैं, मैं स्वयं को आपकी शक्ति के प्रति समर्पित करता हूँ।॥१॥
हे प्रभु ! तेरी इच्छा से कुछ लोग पथ भ्रष्ट होते हैं और तेरी इच्छा से ही कुछ लोग सन्मार्ग लगते हैं।
केवल ईश्वर की इच्छा से है कि कुछ लोग गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं और उनकी स्तुति गुणगान करते हैं।
तेरी इच्छा पर ही जीव भ्रमवश योनियों के अन्दर भटकते हैं; इस तरह सब कुछ प्रभु के आदेश पर ही हो रहा है॥२॥
हे प्रभु! इस जगत् में न कोई मूर्ख है और न ही कोई अपने कार्यों में बुद्धिमान है।
इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब आपकी इच्छानुसार ही हो रहा है।
हे मेरे परमात्मा ! आप अबोधगम्य, अगोचर, अनन्त और अपार हो। आपका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥३॥
हे प्रियतम प्रभु ! मुझे संतों के चरणों की धूल प्रदान करो।
हे परमेश्वर ! मैंने आपकी शरण में आ गया हूँ।
श्री नानक कहते हैं, हे प्रभु! आपके दर्शनों से मेरा मन तृप्त हो जाता हैं, और प्रभु से मिलन आपकी इच्छानुसार ही होता है। ॥४॥७॥१४॥
माझ महला, पाँचवें गुरु ५ ॥
मनुष्य जब भगवान् को विस्मृत कर देता है तो वह बहुत दुःखी होता है।
मनुष्य माया (सांसारिक धन) की लालसा से पीड़ित होकर व्यक्ति इस लालसा को पूरा करने के लिए अनेक विधियों द्वारा धन प्राप्ति हेतु भरसक प्रयास करता है।
दीनदयालु प्रभु जिसे अपना नाम देता है, वही उसका नाम-सिमरन करके सदैव सुखी रहता है ॥१॥
मेरा सतगुरु सर्वशक्तिमान है।