राग माज़, चौ-पधाय, पहला घर, चौथा महल:
एक सर्वव्यापी सृष्टिकर्ता ईश्वर। नाम सत्य है। सृजनात्मक सत्ता का साकार रूप। कोई भय नहीं। कोई घृणा नहीं। अमर की छवि, जन्म से परे, स्वयं-अस्तित्ववान। गुरु की कृपा से:
हरि-परमेश्वर एवं उसका 'हरि-हरि' नाम मुझे मन में अति प्रिय है।
मेरे सौभाग्य ही हैं कि मैं हरि-नाम का सिमरन करता रहता हूँ।
हरि-नाम सिमरन की सिद्धि मैंने पूर्ण गुरु से प्राप्त की है; कोई विरला पुरुष ही गुरु के उपदेश अनुसार चलता है ॥१॥
मैंने भगवान् के नाम को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया है, मानो यह मेरी जीवन यात्रा का खर्च है अतः हरि-नाम का धन दामन में बांध लिया है।
हरि-नाम मेरे प्राणों का साथी बन गया है और यह हमेशा ही मेरे साथ रहता है।
पूर्ण गुरु ने मेरे मन में हरि नाम स्थापित कर दिया है; और अब मेरे पास हरि नाम की शाश्वत संपदा है भाव सदैव स्थिर रहने वाला हरि नाम का धन गुरु द्वारा मुझे प्राप्त हुआ है। ॥२॥
हरि-परमेश्वर मेरा सज्जन एवं प्रियतम बादशाह है।
(मैं हमेशा यही चाहता हूं) कोई संत-महापुरुष आकर कायाकल्प बदल देने वाले मुझे हरि से मिला दे, क्योंकि वह मेरे प्राणों का जीवन है।
हे मेरे प्रियतम प्रभु! मैं आपके दर्शनों बिना रह नहीं सकता, इस विरह वेदना के कारण मेरे नेत्रों में से अश्रु बह रहे हैं।॥ ३॥
सतगुरु मेरा मित्र एवं मेरा बचपन का साथी है।
हे मेरी माँ! मैं उसके दर्शनों से वंचित हुआ आध्यात्मिक रूप से जीवित नहीं रह सकता।
हे भक्त नानक, कहो: हे भगवान, जिस पर आप दया करते हैं, आप उसे गुरु के साथ जोड़ते हैं, और वह भl हरि नाम की संपदा इकट्ठी करता है। ॥४ ॥१॥
माझ महला ४ ॥
हे मधुसूदन ! तू ही मेरा मन, तन एवं प्राण हैं,
क्योंकि हरि के अतिरिक्त मैं किसी अन्य को अपना जीवन आधार नहीं जानता।
भाग्य से यदि कोई सज्जन संत मिल जाए जो मुझे मेरे प्रियतम हरि-प्रभु का मार्गदर्शन करा दे ॥१॥
मैं अपने मन एवं तन की खोज से उस परमेश्वर को ढूंढ रहा हूँ और दूसरों से भी पूछा है,
हे मेरी माँ ! मेरा प्रियतम प्रभु मुझे किस प्रकार मिले?
संतों की संगति में रहकर मैं उस ईश्वर का पता पूछता हूँ क्योंकि संतों की संगति के बीच हरि-प्रभु का निवास है ॥२॥
हे प्रभु! मेरे प्रिय सतगुरु मेरी विकारों से रक्षा करते हैं।
हे प्रभु! मैं आपका एक विवश बालक हूँ, मेरी रक्षा कीजिए।
पूर्ण सतगुरु ही मेरे माता-पिता के समान हैं, जिनके दर्शनों से मेरा हृदय जल में विकसित कमल की भांति प्रफुल्लित हो जाता है॥ ३॥
गुरु के दर्शनों के बिना मुझे नींद नहीं आती
गुरु से वियोग के कारण मेरा मन और शरीर विरह वेदना से भर गया है।
हे हरि प्रभु ! मुझ पर दया कीजिए और मेरा गुरु से मिलन करवा दो, गुरु के मिलन से दास नानक आनंदित हो जाता है। ॥४॥२॥