वह सदैव मृत्यु को अपने नेत्रों के समक्ष रखते हैं और प्रवास हेतु व्यय के लिए परमेश्वर के नाम की राशि एकत्र करते हैं, जिससे इहलोक और परलोक दोनों लोकों में उन्हें मान-यश प्राप्त होता है।
गुरमुख जीवों की प्रभु के दरबार में भरपूर प्रशंसा होती है। ईश्वर इन जीवों को आलिंगन में ले लेता है॥ २॥
गुरमुख जीवों हेतु यह मार्ग प्रत्यक्ष है। ईश्वर के दरबार में प्रवेश करने में कोई बाधा नहीं आती।
वे सदैव हरिनाम का यशगान करते हैं, उनके नाम में चित्त को भीतर रखते हैं तथा नित्य हरिनाम के यश में लिवलीन रहते हैं।
प्रभु के दर पर अनाहत ध्वनि होती है, जो गुरमुख प्राणी प्रभु आश्रय में पहुँचते हैं तथा प्रभु के सच्चे दरबार में सम्मान प्राप्त करते हैं।॥ ३॥
जो गुरमुख प्राणी गुरुओं द्वारा प्रभु का यशोगान करते हैं, उन्हें सबकी प्रशंसा प्राप्त होती है।
हे मेरे परमेश्वर ! मुझे उन पवित्र आत्माओं की संगति प्रदान करो, मैं तेरा याचक यही वंदना करता हूँ।
हे नानक ! उन गुरमुख प्राणियों के बड़े सौभाग्य हैं, जिनके हृदय के भीतर भगवान के नाम का प्रकाश उज्ज्वल है ॥४॥३३॥३१॥६॥७०॥
श्रीरागु महला ५ घरु १ ॥
हे मूर्ख ! तुम अपने पुत्रों, स्त्री व सांसारिक पदार्थों को देखकर इतने मुग्ध क्यों हो रहे हो ?
तू संसार के विभिन्न रस भोग रहा है, हर्ष, आनंद तथा अनंत स्वादों में रत हो।
तुम बहुत सारे आदेश प्रदान करते हो और लोगों से अहंभाव से व्यवहार करते हो।
कर्ता-पुरुष परमात्मा तुझे स्मरण नहीं होता, इसलिए तुम मनमुख, अज्ञानी एवं गंवार हो।॥१॥
हे मेरे मन ! वास्तविक सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला वह भगवान है।
गुरु की कृपा से वह मिलता है। उनकी दया से वह प्राप्त होता है। ||१||विराम||
हे मूर्ख ! तुम सुन्दर वस्त्र पहनने, नाना प्रकार के व्यंजन सेवन करने तथा सोने-चांदी के आभूषण व सम्पति इत्यादि एकत्र करने में लगे हो।
तुम अश्व, हाथी तथा अनेक प्रकार के रथ इत्यादि तुम्हारे पास हैं। वह न थकने वाली गाड़ियों जमा करता है।
तुम इस वैभव में इतना खो गए हो कि तुमने अपने समस्त सगे-संबंधियों की भी उपेक्षा कर दी है भाव उन्हें भूल बैठे हो।
उसने इस सृष्टि के रचनाकार प्रभु को विस्मृत कर दिया है और उस प्रभु नाम के बिना वह अपवित्र है॥ २॥
लोगों की बद-दुआएँ ले-लेकर तुमने इतनी धनराशि जमा कर ली है।
जिन संबंधियों की प्रसन्नता हेतु तुम यह सब करते हो, वे भी तुम्हारे सहित नश्वर हैं।
हे अहंकारी मनुष्य ! तुम अभिमान करते हो तथा धमण्ड में लीन होकर मन-मति पर चलते हो।
जिस प्राणी ने कुमार्ग पर चलकर प्रभु को विस्मृत कर दिया है, उसकी न तो कोई जाति है और न ही कोई मान-सम्मान ॥३॥
सतगुरु ने कृपावश उस परम-पुरुष से मुझे मिला दिया है जो कि मेरा अद्वितीय मित्र तथा एकमात्र सहारा है।
प्रभु-भक्तों का एक परमेश्वर ही रक्षक है। अहंकारी मनुष्य अहंकारवश व्यर्थ क्यों विलाप करते रहते हो।
परमेश्वर वही करता है, जो कुछ भक्तों को अच्छा लगता है। ईश्वर के दरबार से भगवान के भक्तों को कोई लौटा नहीं सकता।
हे नानक ! जो मानव जीव भगवान के प्रेम रंग में मग्न हैं वह सम्पूर्ण संसार में प्रकाश पुंज बन जाता है ॥ ४॥ १ ॥ ७१ ॥
श्रीरागु महला ५ ॥
हे मानव ! तेरा मन आनंद-उल्लास, गहरे तथा अनेकों विलास मनाने तथा नेत्रों के दृश्यों के रस में डूबा होने के कारण जीवन का मनोरथ भूल गया है।
छत्रपति बादशाह जिन्हें सिंहासन प्राप्त हुआ हैं, वह भी संशय में पड़े हुए हैं।॥ १॥
हे भाई ! सत्संग के भीतर बड़ा सुख प्राप्त होता है।
उस विधाता ने जिस पुरुष का शुभ भाग्य लिख दिया है उसकी समस्त चिंताएँ मिट जाती हैं॥१॥ रहाउ ॥
चाहे संसार के सुन्दर से सुन्दर स्थानों पर चाहे घूम-घूम कर भ्रमण कर लिया हो,
धन के स्वामी एवं बड़े-बड़े जमींदार ‘यह मेरी है, यह मेरी है' पुकारते हुए नश्वर हो गए हैं। २॥
वे निर्भय होकर आदेश जारी करते हैं तथा अहंकारवश होकर समस्त कार्य करते हैं।
उसने सारे वश में कर लिए हैं, परन्तु हरि-नाम के बिना वे मिट्टी में मिल जाते हैं।॥ ३॥
प्रभु के दरबार में तेतीस करोड़ देवी-देवता, सिद्ध इत्यादि कर्मचारियों तथा अभ्यासी अनुचरों की भाँति खड़े थे
और जो पहाड़ों, समुद्रों पर साम्राज्य कायम करके शासन करते थे, हे नानक ! ये सारे ही स्वप्न हो गए हैं॥ ४॥ २॥ ७२ ॥