ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
सिरीराग की वार महला ४ श्लोकों साथ ॥
श्लोक महला ३ ॥
रागों में श्री राग तभी सर्वोत्तम राग है, जब इसके द्वारा प्राणी को सत्य-परमेश्वर के प्रति प्रेम विकसित किया जाए।
मन में हमेशा ही सत्य प्रभु निवास करते हैं और प्राणी की बुद्धि अपार प्रभु में स्थिर होती है।
जिसके परिणाम स्वरूप गुरु के शब्द का चिंतन करने से प्राणी नाम रूपी अमूल्य रत्न को प्राप्त कर लेता है।
नाम-सिमरन करने से मनुष्य की जिह्वा, मन और शरीर शुद्ध (विकारों से मुक्त) हो जाते हैं और मानव जीवन सार्थक हो जाता है।
हे नानक ! हे नानक, उन लोगों का जीवन हमेशा सच्चा रहता है जो सतगुरु एवं शाश्वत ईश्वर के अवतार की शिक्षाओं का पालन करते हैं।॥१॥
महला ३ ॥
जब तक प्रभु से सच्चा प्यार नहीं होता, तब तक मनुष्य की प्रीति माया के प्रति ही रहती है।
और माया से मोहित होकर यह मन उस प्रभु को देख-सुन नहीं सकता।
पति-परमेश्वर की अनुभूति (दर्शन) के बिना प्रेम उत्पन्न नहीं होता। अतः आध्यात्मिकअंधा अर्थात् ज्ञानहीन मनुष्य क्या कर सकता है?
हे नानक ! जिस प्रभु ने (पिछले कर्मों के आधार पर भौतिकवाद में फंसाकर) मनुष्य को नेत्रहीन (आध्यात्मिक ज्ञान की आंखें छीन ली हैं) किया है, वही उसे ज्ञान रूपी नेत्र दे भी सकता है ॥२॥
पउड़ी ॥
एक ईश्वर ही समस्त जीवों का रचयिता और अधिष्ठाता है।
सर्वत्र ईश्वर का ही आदेश चल रहा है अतः उस ईश्वर को अपने हृदय में धारण करो।
उस स्वामी के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं जिसका आदेश चलता हो अतः किसी अन्य का डर, संदेह तथा भय तुम अपने मन से निवृत कर दो।
उस हरि की ही स्तुति करो, जो तेरे घर के भीतर व बाहर तुम्हारी रक्षा करता है।
ईश्वर जिस पर दयालु होता है, वह प्रभु का भजन करके भयानक एवं विकराल संसार-सागर से पार हो जाता है ॥ १ ॥
श्लोक महला १॥
समस्त नियामतें उस भगवान् की दी हुई हैं, उसके साथ कोई बल नहीं चल सकता है?
कुछ प्राणी जागते हुए भी प्रभु द्वारा दिए गए अलभ्य पदार्थों से वंचित रह जाते हैं और कई प्राणियों को वह नींद से जगाकर दुर्लभ पदार्थ प्रदान करता है॥१॥
महला १॥
आस्था, संतोष और सहनशीलता ही सद्गुणी व्यक्तियों की जीवन यात्रा के प्रावधान हैं।
ऐसे गुणी व्यक्ति ईश्वर की कल्पना करते हैं, परन्तु दोषियों को कहीं भी स्थान नहीं मिलता ॥२॥
पउड़ी ॥
हे प्रभु ! इस दुनिया की रचना आपने की है और स्वयं ही तुमने दुनिया को अलग-अलग कार्यों में लगाया है।
आप अपनी महानता को देखकर स्वयं प्रसन्नता अनुभव करते हो।
हे प्रभु ! आप सत्य-शाश्वत स्वामी हो,आपके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं।
हे प्रभु ! आप स्वयं ही सर्वत्र व्यापक हो।
हे संतजनो ! आप उस परमेश्वर की उपासना करो, जो आपको बुराईयों से बचाता है। ॥२॥
श्लोक महला १॥
सामाजिक प्रतिष्ठा एवं व्यक्तिगत नाम का अभिमान व्यर्थ है,
समस्त जीव एक ही ईश्वर के संरक्षण में हैं।
हे नानक ! यदि कोई व्यक्ति स्वयं को महान कहता है तो वह महान नहीं बनता
तों उसे तभी अच्छा जाना जाएगा, यदि उसका सम्मान प्रभु के दरबार में स्वीकृत होगा ॥१॥
महला २॥
मनुष्य को अपना सर्वस्व अहंकार त्यागकर उस प्रियतम के साथ रहना चाहिए जिसके साथ वह प्रेमपूर्वक जुड़ा हुआ है।
उस प्रियतम के बिना संसार में जीवित रहना शापित है ॥२ ॥
पउड़ी ॥
हे प्रभु ! आपने स्वयं इस धरती की रचना की हैऔर चाँद एवं सूर्य ये दो दीपक बनाए हैं। |
आपने इस ब्रह्माण्ड में चौदह संसारों की रचना की है, जहाँ पर प्राणियों के कर्मों का व्यापार होता है।
जो प्राणी गुरमुख हो जाते हैं एवं सद्कर्म करते हैं, ईश्वर उन्हें मोक्ष-रूपी आर्शीवाद प्रदान करते हैं।
जो सत्य नाम रूपी अमृत का पान करते हैं, उन्हें यमदूतों का भय नहीं सताता।
ईश्वर से स्नेह करने वाले प्राणी स्वयं भी मुक्त होते हैं और उनका परिवार भी बच जाता है तथा जो उनके पीछे चलता है, वह भी बच जाता है ॥३॥
श्लोक महला १॥
ब्रह्माण्ड की रचना करने के पश्चात्, सृष्टिकर्ता-प्रभु स्वयं इसमें निवास करते हैं।