श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 62


ਸਰਬੇ ਥਾਈ ਏਕੁ ਤੂੰ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ॥
सरबे थाई एकु तूं जिउ भावै तिउ राखु ॥

हे जगत के पालनहार ! तुम सर्वव्यापक हो, संसार के कण-कण में तुम विद्यमान हो। जिस तरह तुझे लुभाता है उसी तरह मेरी रक्षा करो।

ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਚਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ਨਾਮੁ ਭਲੋ ਪਤਿ ਸਾਖੁ ॥
गुरमति साचा मनि वसै नामु भलो पति साखु ॥

गुरु-उपदेशानुसार सत्यनाम मनुष्य के हृदय में प्रस्थापित होता है। ईश्वर का नाम ही सच्चा साथी और सच्चा सम्मान है।

ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਗਵਾਈਐ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਸਚੁ ਭਾਖੁ ॥੮॥
हउमै रोगु गवाईऐ सबदि सचै सचु भाखु ॥८॥

अहंकार के रोग को दूर करके वह परमात्मा के सत्यनाम की आराधना करता है ॥८ ॥

ਆਕਾਸੀ ਪਾਤਾਲਿ ਤੂੰ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
आकासी पातालि तूं त्रिभवणि रहिआ समाइ ॥

हे प्रभु ! तुम आकाश, पाताल तीनों लोकों में समाए हुए हो।

ਆਪੇ ਭਗਤੀ ਭਾਉ ਤੂੰ ਆਪੇ ਮਿਲਹਿ ਮਿਲਾਇ ॥
आपे भगती भाउ तूं आपे मिलहि मिलाइ ॥

तुम ही जीवों को भक्ति में लगाते हो और स्वयं ही तुम अपने मिलाप में मिलाते हो।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਰਜਾਇ ॥੯॥੧੩॥
नानक नामु न वीसरै जिउ भावै तिवै रजाइ ॥९॥१३॥

हे नानक ! मैं प्रभु के नाम को कदाचित् विस्मृत न करूँ। हे जगत् के पालनहार ! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही तेरी इच्छा काम करती है, अपनी इच्छानुसार ही मेरी पालना करो ॥६॥१३॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥

श्रीरागु महला १ ॥

ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਅਵਰੁ ਕਿ ਕਰੀ ਵੀਚਾਰੁ ॥
राम नामि मनु बेधिआ अवरु कि करी वीचारु ॥

राम नाम से मेरा मन बिंध गया है। इसलिए किसी अन्य के विचार की कोई आवश्यकता नहीं रह गई ?

ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਪ੍ਰਭ ਰਾਤਉ ਸੁਖ ਸਾਰੁ ॥
सबद सुरति सुखु ऊपजै प्रभ रातउ सुख सारु ॥

नाम में सुरति लगाने से मन में आनंद उत्पन्न होता है। अब मैं प्रभु के प्रेम में रंग गया हूँ, यही सुख का आधार है।

ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਤੂੰ ਮੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥੧॥
जिउ भावै तिउ राखु तूं मै हरि नामु अधारु ॥१॥

हे ईश्वर ! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही मुझे रखो, तेरा हरि-नाम मेरा आधार है।l१॥

ਮਨ ਰੇ ਸਾਚੀ ਖਸਮ ਰਜਾਇ ॥
मन रे साची खसम रजाइ ॥

हे मेरे मन ! पति-परमेश्वर की इच्छा ही बिल्कुल सत्य है,

ਜਿਨਿ ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਾਜਿ ਸੀਗਾਰਿਆ ਤਿਸੁ ਸੇਤੀ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिनि तनु मनु साजि सीगारिआ तिसु सेती लिव लाइ ॥१॥ रहाउ ॥

तुम उसी के प्रेम में लीन रहो, जिसने तेरे तन एवं मन की रचना करके संवारे हैं ॥१॥ रहाउ

ਤਨੁ ਬੈਸੰਤਰਿ ਹੋਮੀਐ ਇਕ ਰਤੀ ਤੋਲਿ ਕਟਾਇ ॥
तनु बैसंतरि होमीऐ इक रती तोलि कटाइ ॥

यदि मैं अपने शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके उन्हें यज्ञ अग्नि में अर्पित कर दूँ,

ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਮਧਾ ਜੇ ਕਰੀ ਅਨਦਿਨੁ ਅਗਨਿ ਜਲਾਇ ॥
तनु मनु समधा जे करी अनदिनु अगनि जलाइ ॥

यदि मैं अपने तन तथा मन को यज्ञ की समिधा बना लूँ और दिन-रात इनको अग्नि में प्रज्वलित करूँ

ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਤੁਲਿ ਨ ਪੁਜਈ ਜੇ ਲਖ ਕੋਟੀ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥੨॥
हरि नामै तुलि न पुजई जे लख कोटी करम कमाइ ॥२॥

और यदि में लाखों-करोड़ों धार्मिक यज्ञ करूँ तो भी ये सारे कर्म हरि-नाम के तुल्य नहीं पहुँचते ॥२॥

ਅਰਧ ਸਰੀਰੁ ਕਟਾਈਐ ਸਿਰਿ ਕਰਵਤੁ ਧਰਾਇ ॥
अरध सरीरु कटाईऐ सिरि करवतु धराइ ॥

यदि मेरे सिर पर आरा रख कर मेरी देहि को दो आधे-आधे टुकड़ों में कटवा दिया जाए

ਤਨੁ ਹੈਮੰਚਲਿ ਗਾਲੀਐ ਭੀ ਮਨ ਤੇ ਰੋਗੁ ਨ ਜਾਇ ॥
तनु हैमंचलि गालीऐ भी मन ते रोगु न जाइ ॥

अथवा हिमालय की बर्फ में जाकर गाल दिया जाए तो भी मन के रोग निवृत नहीं होते।

ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਤੁਲਿ ਨ ਪੁਜਈ ਸਭ ਡਿਠੀ ਠੋਕਿ ਵਜਾਇ ॥੩॥
हरि नामै तुलि न पुजई सभ डिठी ठोकि वजाइ ॥३॥

यह सब कुछ मैंने जांच-परखकर पुष्टि करके देख लिया है कि इनमें से कोई भी कर्मकांड ईश्वर का श्रद्धापूर्वक नाम लेने के तुल्य नहीं है॥३॥

ਕੰਚਨ ਕੇ ਕੋਟ ਦਤੁ ਕਰੀ ਬਹੁ ਹੈਵਰ ਗੈਵਰ ਦਾਨੁ ॥
कंचन के कोट दतु करी बहु हैवर गैवर दानु ॥

यदि मैं सोने के किले दान करूँ और बहुत सारे बढ़िया नस्ल के हाथी-घोड़े दान करूँ

ਭੂਮਿ ਦਾਨੁ ਗਊਆ ਘਣੀ ਭੀ ਅੰਤਰਿ ਗਰਬੁ ਗੁਮਾਨੁ ॥
भूमि दानु गऊआ घणी भी अंतरि गरबु गुमानु ॥

और यदि भूमिदान तथा बहुसंख्यक गाएँ भी दान करूं, तो भी मेरे मन के भीतर अहंकार एवं घमंड विद्यमान रहेगा।

ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ਸਚੁ ਦਾਨੁ ॥੪॥
राम नामि मनु बेधिआ गुरि दीआ सचु दानु ॥४॥

राम नाम ने मेरा मन बिंध लिया है और गुरु की कृपा-दृष्टि ने मुझे सच्चा दान प्रदान किया है, इस राम नाम में ही मेरा मन लीन हो गया है ॥४॥

ਮਨਹਠ ਬੁਧੀ ਕੇਤੀਆ ਕੇਤੇ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰ ॥
मनहठ बुधी केतीआ केते बेद बीचार ॥

मनुष्य अपने मन के हठ से कितने ही कर्म अपनी बुद्धि अनुसार करता है और वेदों में बताए हुए अन्य कितने ही कर्मकांड करता है

ਕੇਤੇ ਬੰਧਨ ਜੀਅ ਕੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੋਖ ਦੁਆਰ ॥
केते बंधन जीअ के गुरमुखि मोख दुआर ॥

उसकी आत्मा को कितने ही बंधन पड़े हुए हैं। मोक्ष द्वार गुरु द्वारा ही मिलता है।

ਸਚਹੁ ਓਰੈ ਸਭੁ ਕੋ ਉਪਰਿ ਸਚੁ ਆਚਾਰੁ ॥੫॥
सचहु ओरै सभु को उपरि सचु आचारु ॥५॥

सभी धर्म-कर्म प्रभु के नाम से न्यून हैं। सत्य आचरण सर्वश्रेष्ठ है॥ ५॥

ਸਭੁ ਕੋ ਊਚਾ ਆਖੀਐ ਨੀਚੁ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਇ ॥
सभु को ऊचा आखीऐ नीचु न दीसै कोइ ॥

सभी जीवों को ऊँचा समझना चाहिए और किसी भी जीव को अपने से नीचा मत समझो।

ਇਕਨੈ ਭਾਂਡੇ ਸਾਜਿਐ ਇਕੁ ਚਾਨਣੁ ਤਿਹੁ ਲੋਇ ॥
इकनै भांडे साजिऐ इकु चानणु तिहु लोइ ॥

क्योंकि यह सभी शरीर रूपी बर्तन एक प्रभु की रचना हैं। तीनों लोकों के जीवों में एक ही प्रभु की ज्योति प्रज्वलित हो रही है।

ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ਧੁਰਿ ਬਖਸ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਇ ॥੬॥
करमि मिलै सचु पाईऐ धुरि बखस न मेटै कोइ ॥६॥

प्रभु का सत्य नाम उसकी कृपा से ही मिलता है। आदि से लिखी हुई प्रभु की कृपा को कोई मिटा नहीं सकता ॥६॥

ਸਾਧੁ ਮਿਲੈ ਸਾਧੂ ਜਨੈ ਸੰਤੋਖੁ ਵਸੈ ਗੁਰ ਭਾਇ ॥
साधु मिलै साधू जनै संतोखु वसै गुर भाइ ॥

जब कोई साधु दूसरे साधु से मिलता है तो गुरु की प्रीति द्वारा वह संतोष प्राप्त कर लेता है।

ਅਕਥ ਕਥਾ ਵੀਚਾਰੀਐ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥
अकथ कथा वीचारीऐ जे सतिगुर माहि समाइ ॥

यदि मनुष्य सतगुरु में लीन हो जाए तो वह अकथनीय स्वामी की वार्ता को सोचने समझने लग जाता है।

ਪੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸੰਤੋਖਿਆ ਦਰਗਹਿ ਪੈਧਾ ਜਾਇ ॥੭॥
पी अंम्रितु संतोखिआ दरगहि पैधा जाइ ॥७॥

सुधा रस अमृत पान से वह तृप्त हो जाता है और मान-प्रतिष्ठा का वेष धारण करके प्रभु के दरबार को जाता है ॥७॥

ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਾਜੈ ਕਿੰਗੁਰੀ ਅਨਦਿਨੁ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਇ ॥
घटि घटि वाजै किंगुरी अनदिनु सबदि सुभाइ ॥

रात-दिन उन सबके हृदय में अनहद शब्द रूपी वीणा बज रही है, जो ईश्वर के नाम से प्रेम करते हैं।

ਵਿਰਲੇ ਕਉ ਸੋਝੀ ਪਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨੁ ਸਮਝਾਇ ॥
विरले कउ सोझी पई गुरमुखि मनु समझाइ ॥

कोई दुर्लभ प्राणी ही है जो गुरु की अनुकंपा से अपनी आत्मा को सन्मार्ग में लगाकर ज्ञान प्राप्त करता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਛੂਟੈ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇ ॥੮॥੧੪॥
नानक नामु न वीसरै छूटै सबदु कमाइ ॥८॥१४॥

हे नानक ! मुझे भगवान् का नाम कभी भी विस्मृत न हो ! मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में से नाम की साधना करके ही मुक्त हो सकता है ॥८॥१४॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥

श्रीरागु महला १ ॥

ਚਿਤੇ ਦਿਸਹਿ ਧਉਲਹਰ ਬਗੇ ਬੰਕ ਦੁਆਰ ॥
चिते दिसहि धउलहर बगे बंक दुआर ॥

मनुष्य को अपने चित्रित किए महल दिखाई देते हैं जिनके सफेद एवं सुन्दर द्वार हैं।

ਕਰਿ ਮਨ ਖੁਸੀ ਉਸਾਰਿਆ ਦੂਜੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰਿ ॥
करि मन खुसी उसारिआ दूजै हेति पिआरि ॥

उसने उन्हें मन में बड़ी चाह से माया के प्रेम में बनाया है

ਅੰਦਰੁ ਖਾਲੀ ਪ੍ਰੇਮ ਬਿਨੁ ਢਹਿ ਢੇਰੀ ਤਨੁ ਛਾਰੁ ॥੧॥
अंदरु खाली प्रेम बिनु ढहि ढेरी तनु छारु ॥१॥

परन्तु उसका हृदय भगवान् के प्रेम के बिना खाली है। उसके ये सुन्दर महल ध्वस्त हो जाएँगे और उसका शरीर भी राख का ढेर हो जाएगा ॥१॥

ਭਾਈ ਰੇ ਤਨੁ ਧਨੁ ਸਾਥਿ ਨ ਹੋਇ ॥
भाई रे तनु धनु साथि न होइ ॥

हेभाई ! मृत्यु के समय तन और धन तेरे साथ नहीं जाएँगे।

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਨਿਰਮਲੋ ਗੁਰੁ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नामु धनु निरमलो गुरु दाति करे प्रभु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥

राम का नाम ही निर्मल धन है। भगवान् का रूप गुरु ही नाम का दान जीव को देते हैं॥ १॥ रहाउ ॥

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਨਿਰਮਲੋ ਜੇ ਦੇਵੈ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥
राम नामु धनु निरमलो जे देवै देवणहारु ॥

राम नाम रूपी निर्मल धन मनुष्य को तभी मिलता है, यदि देने वाला गुरु स्वयं ही प्रदान करें।

ਆਗੈ ਪੂਛ ਨ ਹੋਵਈ ਜਿਸੁ ਬੇਲੀ ਗੁਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥
आगै पूछ न होवई जिसु बेली गुरु करतारु ॥

सृष्टिकर्ता रुप गुरु जिसका मित्र बन जाए, उसकी आगे परलोक में पूछताछ नहीं होती।

ਆਪਿ ਛਡਾਏ ਛੁਟੀਐ ਆਪੇ ਬਖਸਣਹਾਰੁ ॥੨॥
आपि छडाए छुटीऐ आपे बखसणहारु ॥२॥

यदि ईश्वर मनुष्य को स्वयं मुक्त करे, तो वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है, क्योंकि वह स्वयं ही क्षमाशील है॥ २॥


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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