हे नानक ! हृदय में प्रभु के नाम को स्थापित कर गुरमुख प्राणी आध्यात्मिक पतन से बच जाते हैं। ॥ १ ॥
महला १ II
हम बातें तो अच्छी करते हैं, लेकिन हमारे काम बुरे हैं।
मन में हम अशुद्ध और मलिन हैं परन्तु बाहरी वेशभूषा से पवित्र दिखते हैं।
हम उन लोगों का अनुसरण करते हैं जो परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
जो जीव पति-परमेश्वर के प्रेम से ओत-प्रोत हैं और वें प्रभु के प्रेम का आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करते हैं।
यद्यपि वें सशक्त होने पर भी सदैव विनम्रतापूर्वक एवं शक्तिहीन व्यवहार करते हैं।
हे नानक ! हमारा जीवन तभी सफल हो सकता है, यदि हम उन मुक्तात्माओं के साथ संगति करें ॥२॥
पउड़ी ॥
हे जगत् के स्वामी ! यह संसार एक गहरे सागर के समान है जिसमें आप स्वयं ही जल है, आप ही जल में रहने वाली मछलियाँ(प्राणी) हैं और आप स्वयं ही मछली को फँसाने वाला जाल(सांसारिक आकर्षण) हैं।
आप स्वयं ही मछेरा बनकर मछली को पकड़ने हेतु सांसारिक आकर्षणों का जाल फैंकते हो और आप ही वह चारा (सांसारिक संपत्ति) हैं जिसमें मछलियाँ (मनुष्य) फँसी रहती हैं।
हे ईश्वर ! आप स्वयं माया (सांसारिक इच्छाओं) की धूल से अप्रभावित रहते हो, जैसे सुंदर कमल गहरे गंदे पानी से निर्लिप्त रहता है जिसमें वह उगता है।
हे भगवान् ! जो प्राणी क्षण भर के लिए भी आपका चिन्तन करते हैं। आप स्वयं ही उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कर देते हो।
हे प्रभु, आपसे परे कुछ भी नहीं है। गुरु के शब्द के माध्यम से, आपको देखकर मैं प्रसन्न हूँ। ||७||
जो प्राणी ईश्वर का स्मरण करके प्राप्त पदार्थों उपभोग करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है; परन्तु जो प्रभु को त्याग देते हैं, वे सदैव असन्तुष्ट रहते हैं और याचना करते रहते हैं। ॥८॥
उसका मन व्यथित होता है, इसलिए वह सुख की गहरी नींद (मन की शांति से)नहीं सोती।
यदि जीव-स्त्री अपने पति-प्रभु की इच्छानुसार चले,
लेकिन यदि आत्मा-वधू अपने प्रभु और स्वामी की इच्छा का पालन करती है,
उसे अपने घर में सम्मान दिया जाएगा, और उसकी उपस्थिति के भवन में बुलाया जाएगा।
हे नानक ! उसे प्रभु को प्राप्त करने का यह ज्ञान भगवान् की कृपा द्वारा ही मिलता है।
गुरु की कृपा से वह सत्य में लीन हो जाती है। ||१||
महला ३॥
हे नामविहीन मनमुख स्वार्थी मानव ! माया का रंग कुसुम के फूल जैसा सुन्दर होता है। तू क्षणभंगुर सांसारिक आकर्षणों को देखकर भ्रमित मत हो।
इन सांसारिक आकर्षणों का आनंद कुसुम के रंग की तरह अल्पकालिक और व्यर्थ है।
माया के द्वंद्व में डूबे हुए आध्यात्मिक रूप से अंधे और अज्ञानी मूर्ख अपना जीवन व्यर्थ कर देते हैं।
मरणोपरांत वे विष्टा के कीड़े बनते हैं, जो पुनः पुनः जन्म लेकर विष्टा में जलते रहते हैं।
हे नानक ! जो व्यक्ति सहज अवस्था में गुरु की शिक्षाओं के अनुसार रहते हैं, वें भगवान् के प्रेम द्वारा उसके नाम में मग्न रहते हैं तथा सदैव ही सुख भोगते हैं।
प्रभु के प्रति उनकी भक्ति एवं प्रेम कभी नाश नहीं होता और वे सहज अक्स्था में समाए रहते हैं ॥२॥
पउड़ी ॥
हे ईश्वर ! आपने समूची सृष्टि की रचना की है और आप स्वयं ही भोजन देकर सबका पालन करते हो।
कई प्राणी छल-कपट करके भोजन खाते हैं और अपने मुख से वह झूठ एवं असत्यता व्यक्त करते हैं।
हे प्रभु ! वें आपकी इच्छा के अनुसार कर्म करते हैं, क्योंकि (उनके पिछले कर्मों के अनुसार) आपने उन्हें ऐसे कर्म सौंपे हैं जिनमें झूठ और धोखा शामिल है।
कई प्राणियों को आपने (धार्मिक जीवन के बारे में)सत्य नाम की सूझ प्रदान की है और
उन्हें आपने संतोष का अक्षय खजाना दिया है।
जो प्राणी ईश्वर का स्मरण करके प्राप्त पदार्थों उपभोग करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है; परन्तु जो प्रभु को त्याग देते हैं, वे सदैव असन्तुष्ट रहते हैं और याचना करते रहते हैं। ॥८॥
श्लोक महला ३ II
माया-मोह के स्वाद कारण पण्डित वेदों को व्यापक रूप से पढ़-पढ़कर उनका कथन करते हैं।
जो द्वैत(माया) के प्रेम में के कारण ईश्वर नाम को विस्मृत कर देता है। ऐसे स्वेच्छाचारी मूर्ख को (असंतोष के रूप में) दंड मिलता है।
जिस परमेश्वर ने मनुष्य को प्राण और शरीर दिया है, ऐसा व्यक्ति प्रभु को कदाचित् स्मरण नहीं करता, जो सबका भोजन देकर पालन कर रहा है।
मनमुख प्राणियों के गले यम-पाश प्रतिदिन बना रहता है और वे सदैव जन्म-मरण के बंधन में कष्ट सहन करते हैं।
आध्यात्मिक रूप से ज्ञानहीन स्वार्थी व्यक्ति (धार्मिक जीवन के बारे में) कुछ भी नहीं समझता और वही कुछ करता है जो पूर्व-जन्म के कर्मों के अनुसार करने के लिए पूर्व निर्धारित किया गया है।
सौभाग्यवश जब सुखदाता सतगुरु जी मिलते हैं तो हरि-नाम मनुष्य के हृदय में निवास करने लगता है।
ऐसा व्यक्ति सुख ही भोगता है और उसका समूचा जीवन सुख में ही व्यतीत होता है।
महला ३॥
सच्चा गुरु की सेवा, शांति प्राप्त की है। सही नाम उत्कृष्टता का खजाना है।