श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 52


ਬੰਧਨ ਮੁਕਤੁ ਸੰਤਹੁ ਮੇਰੀ ਰਾਖੈ ਮਮਤਾ ॥੩॥
बंधन मुकतु संतहु मेरी राखै ममता ॥३॥

हे संतों ! वह मुझे समस्त बंधनों से मुक्ति प्रदान करता है और मेरे लिए ममता-प्यार रखता है ॥३॥

ਭਏ ਕਿਰਪਾਲ ਠਾਕੁਰ ਰਹਿਓ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ॥
भए किरपाल ठाकुर रहिओ आवण जाणा ॥

मेरा ठाकुर बड़ा दयालु हो गया है और मेरा (जन्म-मरण) आवागमन मिट गया है।

ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਨਕ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਣਾ ॥੪॥੨੭॥੯੭॥
गुर मिलि नानक पारब्रहमु पछाणा ॥४॥२७॥९७॥

हे नानक ! गुरु से मिलकर मैंने पारब्रह्म को पहचान लिया ॥४॥२७॥९७॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ ॥
सिरीरागु महला ५ घरु १ ॥

श्रीरागु महला ५ घरु १ ॥

ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਭਾਈਆ ਕਟਿਅੜਾ ਜਮਕਾਲੁ ॥
संत जना मिलि भाईआ कटिअड़ा जमकालु ॥

हे भाइयो ! संतजनों ने मिलकर मेरा यम का भय दूर कर दिया है।

ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਹੋਆ ਖਸਮੁ ਦਇਆਲੁ ॥
सचा साहिबु मनि वुठा होआ खसमु दइआलु ॥

मेरा मालिक प्रभु मुझ पर दयालु हो गया है और उस सच्चे परमेश्वर ने मेरे मन में वास कर लिया है।

ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਬਿਨਸਿਆ ਸਭੁ ਜੰਜਾਲੁ ॥੧॥
पूरा सतिगुरु भेटिआ बिनसिआ सभु जंजालु ॥१॥

पूर्ण सतगुरु के मिलन से समस्त बंधन विनष्ट हो गए हैं। ॥ १॥

ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰਾ ਹਉ ਤੁਧੁ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥
मेरे सतिगुरा हउ तुधु विटहु कुरबाणु ॥

हे मेरे सतगुरु ! मैं आप पर बलिहारी जाता हूँ।

ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਤੁਸਿ ਦਿਤਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरे दरसन कउ बलिहारणै तुसि दिता अंम्रित नामु ॥१॥ रहाउ ॥

मैं आपके दर्शनों पर बलिहारी जाता हूँ। आप ने प्रसन्न होकर मुझे अमृत रूप नाम प्रदान किया है ॥१॥ रहाउ॥ १ ॥

ਜਿਨ ਤੂੰ ਸੇਵਿਆ ਭਾਉ ਕਰਿ ਸੇਈ ਪੁਰਖ ਸੁਜਾਨ ॥
जिन तूं सेविआ भाउ करि सेई पुरख सुजान ॥

जो प्रेमपूर्वक आपकी सेवा करते हैं, वे पुरुष बड़े बुद्धिमान हैं।

ਤਿਨਾ ਪਿਛੈ ਛੁਟੀਐ ਜਿਨ ਅੰਦਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥
तिना पिछै छुटीऐ जिन अंदरि नामु निधानु ॥

जिनके अन्तर्मन में नाम का खजाना है, उनकी संगति में आकर प्राणी जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।

ਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਦਾਤਾ ਕੋ ਨਹੀ ਜਿਨਿ ਦਿਤਾ ਆਤਮ ਦਾਨੁ ॥੨॥
गुर जेवडु दाता को नही जिनि दिता आतम दानु ॥२॥

गुरु जैसा दानशील दाता इस संसार में कोई भी नहीं, जिन्होंने मेरी आत्मा को नाम दान प्रदान किया है ॥ २॥

ਆਏ ਸੇ ਪਰਵਾਣੁ ਹਹਿ ਜਿਨ ਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਸੁਭਾਇ ॥
आए से परवाणु हहि जिन गुरु मिलिआ सुभाइ ॥

जो प्रेम भावना से गुरु जी से भेंट करते हैं, उनका मनुष्य जन्म धारण करके जगत् में आगमन प्रभु के दरबार में स्वीकृत है।

ਸਚੇ ਸੇਤੀ ਰਤਿਆ ਦਰਗਹ ਬੈਸਣੁ ਜਾਇ ॥
सचे सेती रतिआ दरगह बैसणु जाइ ॥

जो सत्य-प्रभु के प्रेम में लिवलीन हो जाते हैं, उन्हें भगवान् के दरबार में बैठने हेतु स्थान प्राप्त हो जाता है।

ਕਰਤੇ ਹਥਿ ਵਡਿਆਈਆ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇ ॥੩॥
करते हथि वडिआईआ पूरबि लिखिआ पाइ ॥३॥

परमात्मा के हाथ समूची उपलब्धियाँ विद्यमान हैं, जिनकी किस्मत में शुभ कर्मों द्वारा लिखा हो, उन्हें प्राप्त हो जाती है। ॥३॥

ਸਚੁ ਕਰਤਾ ਸਚੁ ਕਰਣਹਾਰੁ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਟੇਕ ॥
सचु करता सचु करणहारु सचु साहिबु सचु टेक ॥

सत्य प्रभु समस्त जगत् का कर्ता है, सत्य प्रभु ही समस्त जीवों को पैदा करने वाला है, वह सत्य प्रभु ही सबका मालिक है, सत्य प्रभु ही सबका आधार है।

ਸਚੋ ਸਚੁ ਵਖਾਣੀਐ ਸਚੋ ਬੁਧਿ ਬਿਬੇਕ ॥
सचो सचु वखाणीऐ सचो बुधि बिबेक ॥

उस सत्य प्रभु को सभी सच्चा कहते हैं, मनुष्य को विवेक बुद्धि सत्य प्रभु से ही मिलती है।

ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਜੀਵੈ ਏਕ ॥੪॥੨੮॥੯੮॥
सरब निरंतरि रवि रहिआ जपि नानक जीवै एक ॥४॥२८॥९८॥

हे नानक ! जो परमात्मा इस जगत् के कण-कण में विद्यमान है, उस परमात्मा का चिंतन करके ही मैं जीवित हूँ ॥४॥२८॥९८॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥

श्रीरागु महला ५॥

ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸੁਰੁ ਪੂਜੀਐ ਮਨਿ ਤਨਿ ਲਾਇ ਪਿਆਰੁ ॥
गुरु परमेसुरु पूजीऐ मनि तनि लाइ पिआरु ॥

हे प्राणी ! तन-मन में प्रेम बनाकर परमेश्वर के रुप गुरु की पूजा करनी चाहिए।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਜੀਅ ਕਾ ਸਭਸੈ ਦੇਇ ਅਧਾਰੁ ॥
सतिगुरु दाता जीअ का सभसै देइ अधारु ॥

सतगुरु जीवों का दाता है, वह सभी को सहारा देता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨ ਕਮਾਵਣੇ ਸਚਾ ਏਹੁ ਵੀਚਾਰੁ ॥
सतिगुर बचन कमावणे सचा एहु वीचारु ॥

सत्य ज्ञान यही है कि सतगुरु की शिक्षा अनुसार ही आचरण करना चाहिए।

ਬਿਨੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਰਤਿਆ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਛਾਰੁ ॥੧॥
बिनु साधू संगति रतिआ माइआ मोहु सभु छारु ॥१॥

साधु-संतों की संगति में लीन हुए बिना माया का मोह धूल समान है ॥१॥

ਮੇਰੇ ਸਾਜਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥
मेरे साजन हरि हरि नामु समालि ॥

हे मेरे मित्र ! तू ईश्वर के हरि-नाम का सिमरन कर।

ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਪੂਰਨ ਹੋਵੈ ਘਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधू संगति मनि वसै पूरन होवै घाल ॥१॥ रहाउ ॥

साधु की संगति में रहने से मनुष्य के हृदय में प्रभु निवास करता है और मनुष्य की सेवा सफल हो जाती है ॥१॥ रहाउ ॥

ਗੁਰੁ ਸਮਰਥੁ ਅਪਾਰੁ ਗੁਰੁ ਵਡਭਾਗੀ ਦਰਸਨੁ ਹੋਇ ॥
गुरु समरथु अपारु गुरु वडभागी दरसनु होइ ॥

गुरु ही समर्थावान एवं गुरु ही अनंत है, बड़े सौभाग्य से जीव को उसके दर्शन प्राप्त होते हैं।

ਗੁਰੁ ਅਗੋਚਰੁ ਨਿਰਮਲਾ ਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
गुरु अगोचरु निरमला गुर जेवडु अवरु न कोइ ॥

गुरु ही अगोचर है, गुरु पवित्र पावन है, गुरु जैसा अन्य कोई महान् नहीं।

ਗੁਰੁ ਕਰਤਾ ਗੁਰੁ ਕਰਣਹਾਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚੀ ਸੋਇ ॥
गुरु करता गुरु करणहारु गुरमुखि सची सोइ ॥

गुरु ही जगत् का कर्ता है और गुरु ही सभी को पैदा करने वाले हैं, गुरु द्वारा ही शरण में आए जीव की वास्तविक शोभा है।

ਗੁਰ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਕਿਛੁ ਨਹੀ ਗੁਰੁ ਕੀਤਾ ਲੋੜੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੨॥
गुर ते बाहरि किछु नही गुरु कीता लोड़े सु होइ ॥२॥

गुरु की अभिलाषा से परे कुछ भी नहीं, जो कुछ भी गुरु जी चाहते हैं, वहीं होता है॥२॥

ਗੁਰੁ ਤੀਰਥੁ ਗੁਰੁ ਪਾਰਜਾਤੁ ਗੁਰੁ ਮਨਸਾ ਪੂਰਣਹਾਰੁ ॥
गुरु तीरथु गुरु पारजातु गुरु मनसा पूरणहारु ॥

गुरु ही सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल है, गुरु ही कल्प-वृक्ष और गुरु ही समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण करने वाले हैं।

ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਇ ਉਧਰੈ ਸਭੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥
गुरु दाता हरि नामु देइ उधरै सभु संसारु ॥

गुरु ही दाता है जो ईश्वर का नाम प्रदान करते हैं, जिससे समूचे विश्व का उद्धार हो जाता है।

ਗੁਰੁ ਸਮਰਥੁ ਗੁਰੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਗੁਰੁ ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰੁ ॥
गुरु समरथु गुरु निरंकारु गुरु ऊचा अगम अपारु ॥

गुरु ही समर्थाशाली समर्थ शील है और गुरु ही निरंकार है, गुरु ही माया के गुणों से परे है, गुरु सर्वोच्च, अथाह, अपार है।

ਗੁਰ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਅਗਮ ਹੈ ਕਿਆ ਕਥੇ ਕਥਨਹਾਰੁ ॥੩॥
गुर की महिमा अगम है किआ कथे कथनहारु ॥३॥

गुरु की महिमा अपरम्पार है, कोई भी कथन करने वाला उसकी महिमा को कथन नहीं कर सकता ॥३॥

ਜਿਤੜੇ ਫਲ ਮਨਿ ਬਾਛੀਅਹਿ ਤਿਤੜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥
जितड़े फल मनि बाछीअहि तितड़े सतिगुर पासि ॥

प्राणी को समस्त मनोवांछित फल सतगुरु द्वारा ही प्राप्त होते हैं, जितना भी मन करे उसे सतगुर से पाया जा सकता है।

ਪੂਰਬ ਲਿਖੇ ਪਾਵਣੇ ਸਾਚੁ ਨਾਮੁ ਦੇ ਰਾਸਿ ॥
पूरब लिखे पावणे साचु नामु दे रासि ॥

गुरु के पास सत्यनाम के धन के भरपूर भण्डार हैं, जिसके भाग्य में लिखा हो, उसे अवश्य प्राप्त होता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣੀ ਆਇਆਂ ਬਾਹੁੜਿ ਨਹੀ ਬਿਨਾਸੁ ॥
सतिगुर सरणी आइआं बाहुड़ि नही बिनासु ॥

सतगुरु की शरण में आने से जीवन-मृत्यु के चक्कर से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है।

ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਕਦੇ ਨ ਵਿਸਰਉ ਏਹੁ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਤੇਰਾ ਸਾਸੁ ॥੪॥੨੯॥੯੯॥
हरि नानक कदे न विसरउ एहु जीउ पिंडु तेरा सासु ॥४॥२९॥९९॥

हे प्रभु ! यह आत्मा, देहि तथा श्वास सब तेरे ही दिए हुए हैं, हे नानक ! परमात्मा मुझे कभी भी विस्मृत न हो ॥ ४ ॥ २६ ॥ ९९ ॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥

श्रीरागु महला ५॥

ਸੰਤ ਜਨਹੁ ਸੁਣਿ ਭਾਈਹੋ ਛੂਟਨੁ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥
संत जनहु सुणि भाईहो छूटनु साचै नाइ ॥

हे संतजनो, हे भाइयों, ध्यानपूर्वक सुनो, आपको इस नश्वर संसार के बंधनों से मुक्ति केवल सत्यनाम की प्राप्ति से ही मिल सकती है।

ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਸਰੇਵਣੇ ਤੀਰਥ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ॥
गुर के चरण सरेवणे तीरथ हरि का नाउ ॥

आप गुरु के चरणों की उपासना करो तथा ईश्वर के नाम को अपना तीर्थस्थल जानकर स्नान करो।

ਆਗੈ ਦਰਗਹਿ ਮੰਨੀਅਹਿ ਮਿਲੈ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥੧॥
आगै दरगहि मंनीअहि मिलै निथावे थाउ ॥१॥

आगे परलोक में प्रभु के दरबार के भीतर निःआश्रयों को आश्रय प्राप्त होता है, आपको मान-यश की प्राप्ति होगी ॥ १॥


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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