हे संतों ! वह मुझे समस्त बंधनों से मुक्ति प्रदान करता है और मेरे लिए ममता-प्यार रखता है ॥३॥
मेरा ठाकुर बड़ा दयालु हो गया है और मेरा (जन्म-मरण) आवागमन मिट गया है।
हे नानक ! गुरु से मिलकर मैंने पारब्रह्म को पहचान लिया ॥४॥२७॥९७॥
श्रीरागु महला ५ घरु १ ॥
हे भाइयो ! संतजनों ने मिलकर मेरा यम का भय दूर कर दिया है।
मेरा मालिक प्रभु मुझ पर दयालु हो गया है और उस सच्चे परमेश्वर ने मेरे मन में वास कर लिया है।
पूर्ण सतगुरु के मिलन से समस्त बंधन विनष्ट हो गए हैं। ॥ १॥
हे मेरे सतगुरु ! मैं आप पर बलिहारी जाता हूँ।
मैं आपके दर्शनों पर बलिहारी जाता हूँ। आप ने प्रसन्न होकर मुझे अमृत रूप नाम प्रदान किया है ॥१॥ रहाउ॥ १ ॥
जो प्रेमपूर्वक आपकी सेवा करते हैं, वे पुरुष बड़े बुद्धिमान हैं।
जिनके अन्तर्मन में नाम का खजाना है, उनकी संगति में आकर प्राणी जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
गुरु जैसा दानशील दाता इस संसार में कोई भी नहीं, जिन्होंने मेरी आत्मा को नाम दान प्रदान किया है ॥ २॥
जो प्रेम भावना से गुरु जी से भेंट करते हैं, उनका मनुष्य जन्म धारण करके जगत् में आगमन प्रभु के दरबार में स्वीकृत है।
जो सत्य-प्रभु के प्रेम में लिवलीन हो जाते हैं, उन्हें भगवान् के दरबार में बैठने हेतु स्थान प्राप्त हो जाता है।
परमात्मा के हाथ समूची उपलब्धियाँ विद्यमान हैं, जिनकी किस्मत में शुभ कर्मों द्वारा लिखा हो, उन्हें प्राप्त हो जाती है। ॥३॥
सत्य प्रभु समस्त जगत् का कर्ता है, सत्य प्रभु ही समस्त जीवों को पैदा करने वाला है, वह सत्य प्रभु ही सबका मालिक है, सत्य प्रभु ही सबका आधार है।
उस सत्य प्रभु को सभी सच्चा कहते हैं, मनुष्य को विवेक बुद्धि सत्य प्रभु से ही मिलती है।
हे नानक ! जो परमात्मा इस जगत् के कण-कण में विद्यमान है, उस परमात्मा का चिंतन करके ही मैं जीवित हूँ ॥४॥२८॥९८॥
श्रीरागु महला ५॥
हे प्राणी ! तन-मन में प्रेम बनाकर परमेश्वर के रुप गुरु की पूजा करनी चाहिए।
सतगुरु जीवों का दाता है, वह सभी को सहारा देता है।
सत्य ज्ञान यही है कि सतगुरु की शिक्षा अनुसार ही आचरण करना चाहिए।
साधु-संतों की संगति में लीन हुए बिना माया का मोह धूल समान है ॥१॥
हे मेरे मित्र ! तू ईश्वर के हरि-नाम का सिमरन कर।
साधु की संगति में रहने से मनुष्य के हृदय में प्रभु निवास करता है और मनुष्य की सेवा सफल हो जाती है ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु ही समर्थावान एवं गुरु ही अनंत है, बड़े सौभाग्य से जीव को उसके दर्शन प्राप्त होते हैं।
गुरु ही अगोचर है, गुरु पवित्र पावन है, गुरु जैसा अन्य कोई महान् नहीं।
गुरु ही जगत् का कर्ता है और गुरु ही सभी को पैदा करने वाले हैं, गुरु द्वारा ही शरण में आए जीव की वास्तविक शोभा है।
गुरु की अभिलाषा से परे कुछ भी नहीं, जो कुछ भी गुरु जी चाहते हैं, वहीं होता है॥२॥
गुरु ही सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल है, गुरु ही कल्प-वृक्ष और गुरु ही समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण करने वाले हैं।
गुरु ही दाता है जो ईश्वर का नाम प्रदान करते हैं, जिससे समूचे विश्व का उद्धार हो जाता है।
गुरु ही समर्थाशाली समर्थ शील है और गुरु ही निरंकार है, गुरु ही माया के गुणों से परे है, गुरु सर्वोच्च, अथाह, अपार है।
गुरु की महिमा अपरम्पार है, कोई भी कथन करने वाला उसकी महिमा को कथन नहीं कर सकता ॥३॥
प्राणी को समस्त मनोवांछित फल सतगुरु द्वारा ही प्राप्त होते हैं, जितना भी मन करे उसे सतगुर से पाया जा सकता है।
गुरु के पास सत्यनाम के धन के भरपूर भण्डार हैं, जिसके भाग्य में लिखा हो, उसे अवश्य प्राप्त होता है।
सतगुरु की शरण में आने से जीवन-मृत्यु के चक्कर से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है।
हे प्रभु ! यह आत्मा, देहि तथा श्वास सब तेरे ही दिए हुए हैं, हे नानक ! परमात्मा मुझे कभी भी विस्मृत न हो ॥ ४ ॥ २६ ॥ ९९ ॥
श्रीरागु महला ५॥
हे संतजनो, हे भाइयों, ध्यानपूर्वक सुनो, आपको इस नश्वर संसार के बंधनों से मुक्ति केवल सत्यनाम की प्राप्ति से ही मिल सकती है।
आप गुरु के चरणों की उपासना करो तथा ईश्वर के नाम को अपना तीर्थस्थल जानकर स्नान करो।
आगे परलोक में प्रभु के दरबार के भीतर निःआश्रयों को आश्रय प्राप्त होता है, आपको मान-यश की प्राप्ति होगी ॥ १॥