राग भैरो, प्रथम मेहल, प्रथम सदन, चौ-पाधाय:
एक सर्वव्यापी सृष्टिकर्ता ईश्वर। सत्य ही नाम है। सृजनात्मक सत्ता का साकार रूप। कोई भय नहीं। कोई घृणा नहीं। अमर की छवि। जन्म से परे। स्वयं-अस्तित्ववान। गुरु की कृपा से:
आपके बिना कुछ भी नहीं होता।
आप ही प्राणियों की रचना करते हैं और उन्हें देखकर ही आप उन्हें जानते हैं। ||१||
मैं क्या कह सकता हूं? मैं कुछ भी नहीं कह सकता।
जो कुछ भी अस्तित्व में है, वह आपकी इच्छा से है। ||विराम||
जो कुछ भी करना है, वह आप पर निर्भर है।
मैं किससे प्रार्थना करूँ? ||२||
मैं तेरे वचन की बानी बोलता और सुनता हूँ।
आप स्वयं ही अपनी सारी अद्भुत लीला जानते हैं। ||३||
आप स्वयं कार्य करते हैं और सबको कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं; केवल आप ही जानते हैं।
नानक कहते हैं, हे प्रभु, आप ही स्थापित और अप्रत्यास्था देखते हैं। ||४||१||
एक सर्वव्यापक सृष्टिकर्ता ईश्वर। सच्चे गुरु की कृपा से:
राग भैरव, प्रथम मेहल, द्वितीय भाव:
गुरु के वचन से कितने ही मौन ऋषियों का उद्धार हुआ है; इंद्र और ब्रह्मा का भी उद्धार हुआ है।
गुरु की कृपा से सनक, सनन्दन और अनेक विनम्र तपस्वी पुरुष उस पार पहुँच गए हैं। ||१||
शब्द के बिना कोई भी व्यक्ति इस भयानक संसार सागर को कैसे पार कर सकता है?
प्रभु के नाम के बिना संसार द्वैत रूपी रोग में उलझ जाता है, डूब जाता है, डूब जाता है, मर जाता है। ||१||विराम||
गुरु दिव्य हैं; गुरु अज्ञेय और रहस्यमय हैं। गुरु की सेवा करने से तीनों लोकों को जाना और समझा जा सकता है।
दाता गुरु ने स्वयं मुझे उपहार दिया है; मैंने अज्ञेय रहस्यमय प्रभु को प्राप्त कर लिया है। ||२||
मन ही राजा है; मन ही मन के द्वारा शांत और संतुष्ट होता है, तथा इच्छाएं मन में ही शांत होती हैं।
मन ही योगी है, भगवान के वियोग में मन नष्ट हो जाता है; भगवान के यशोगान से मन सुशिक्षित और सुधर जाता है। ||३||
इस संसार में वे लोग कितने दुर्लभ हैं जो गुरु के माध्यम से अपने मन को वश में कर लेते हैं और शब्द का चिंतन करते हैं।
हे नानक! हमारा प्रभु और स्वामी सर्वव्यापी है; शब्द के सत्य शब्द से हमारा उद्धार हो जाता है। ||४||१||२||
भैरव, प्रथम मेहल:
आंखें दृष्टि खो देती हैं, शरीर सूख जाता है; बुढ़ापा मनुष्य को पकड़ लेता है, और मृत्यु उसके सिर पर मँडराती है।
सौन्दर्य, प्रेम-मोह और जीवन के सुख स्थायी नहीं हैं। मृत्यु के पाश से कोई कैसे बच सकता है? ||१||
हे मनुष्य! प्रभु का ध्यान करो - तुम्हारा जीवन बीत रहा है!