यह संसार कालिख की कुटिया है। तृष्णाओं में फँसकर शरीर, आत्मा एवं मनुष्य तन सब उसके साथ काले हो जाते हैं।
इस कुटिया से केवल वे ही लोग निष्कलंक निकलते हैं जिनकी गुरु जी स्वयं रक्षा करते हैं, वह निर्मल हैं और गुरुपदेश द्वारा ईश्वर के नाम के साथ वह अपनी तृष्णाओं की अग्नि को बुझा देते हैं।॥ ७ ॥
हे नानक ! सम्राटों के सम्राट परमेश्वर के सत्यनाम के साथ मनुष्य भवसागर पार कर जाता है।
हे प्रभु! मेरी आपसे विनती है कि मेरा अमूल्य धन आपका नाम मुझे कदापि विस्मृत न हो।
स्वेच्छाचारी भयानक भवसागर में माया-लिप्त होने के कारण नष्ट हो जाते हैं परन्तु गुरमुख भवसागर से पार हो जाते हैं॥ ८॥ १६॥
श्रीरागु महला १ घर २ ॥
प्राणी सांसारिक गृह को अपना स्थाई निवास समझकर रहता है, किन्तु फिर भी उसे यहाँ से गमन कर जाने की (मृत्यु की) सदैव चिन्ता लगी रहती है।
इस संसार घर को स्थाई निवास तभी समझा जा सकता है, यदि इस जगत् ने सदैव स्थिर रहना हो, परन्तु यह जगत् तो क्षणभंगुर है॥१॥
यह दुनिया स्थाई कैसे हो सकती है?
इसलिए ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखते हुए श्रद्धायुक्त होकर शुभ कर्म करके सदाचरण की कमाई कर और ईश्वर भक्ति में लीन रह ॥१॥ रहाउ॥
योगी ध्यान-अवस्था में आसन बनाकर विराजमान होता है और मुल्लां विश्राम स्थल पर विराजता है।
ब्राह्मण ग्रंथों का पाठ करते हैं और सिद्ध पुरुष देव-मन्दिरों में वास करते हैं ॥२॥
देवता, सिद्ध-पुरुष, शिवगण, गंधर्व, ऋषि-मुनि, शेख, पीर, सेनापति समस्त उच्चाधिकारी
एक-एक करके प्राण त्याग गए हैं और जो दिखाई दे रहे हैं, वे भी चले जाने वाले हैं। ॥ ३॥
सम्राट, खान, फरिश्ते व सरदार बारी -बारी संसार त्याग गए हैं।
प्राणी को एक क्षण या घड़ी में यह संसार त्यागना पड़ेगा। हे मेरे मन ! तुम भी वहाँ पहुंचने वाले हो, इस संसार को त्याग कर तुम भी परलोक गमन करोगे ॥४॥
दुर्लभ व्यक्ति को ही इस बारे ज्ञान है।
नानक प्रार्थना करते हैं कि वह प्रभु जल, थल, पाताल, आकाश में विद्यमान हैं। ॥५॥
अल्लाह को जाना नहीं जा सकता। वह अगम्य एवं कुदरत का मालिक है, सृष्टि-रचयिता एवं जीवो पर कृपा करने वाला है।
शेष सारी दुनिया जन्म एवं मृत्यु के अधीन है। परन्तु जीवों पर कृपा करने वाला एक अल्लाह ही सदैव स्थिर है ॥६॥
स्थिर केवल उसे ही कहा जा सकता है, जिसके सिर पर कर्मों का आलेख नहीं।
गगन तथा धरती नष्ट हो जाएँगे परन्तु सदैव स्थिर केवल ईश्वर ही रहेगा ॥ ७॥
दिन में उजाला करने वाला सूर्य नाश हो जाएगा और रात्रि व चाँद नष्ट हो जाएँगे और लाखों ही सितारे लुप्त हो जाएँगे।
नानक सत्य कथन करता है कि एक अल्लाह ही स्थिर है ॥८॥१७॥
प्रथम सतगुरु नानक देव जी की सत्रह अष्टपदियाँ।
गुरुमुख के रूप में उन्हें सत्य के तराजू और तराजू में तौला और मापा जाता है।
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
यदि गुरु कृपा करे तो ही मनुष्य भक्ति करता है, गुरु के बिना भक्ति नहीं हो सकती।
यदि गुरु जी दया करके अपनी संगति में रखें तो ईश्वर बोध का रहस्य समझकर प्राणी निर्मल हो जाता है।
भगवान् सत्य है और उसकी वाणी भी सत्य है। शब्द द्वारा ही प्राणी का ईश्वर से मिलन होता है॥ १॥
हे भाई ! भक्तिविहीन प्राणी इस जगत् में क्यों आया है?
यदि इस संसार में उसने पूर्ण गुरु की सेवा का फल प्राप्त नहीं किया तो उसने यह जीवन व्यर्थ ही खो दिया है ॥१॥ रहाउ॥
ईश्वर जगत् के जीवों का दाता और जगत् का पालनहार है और क्षमा प्रदान करके तुच्छ जीवों को अपने साथ मिला लेता है।
नहीं तो ये बेचारे (आश्रयहीन) मनुष्य क्या कर सकते हैं, क्या कह सकते हैं?
गुरमुख को ईश्वर स्वयं मान-प्रतिष्ठा प्रदान करता है और स्वयं ही अपनी भक्ति में लगाता है ॥२॥
अपने कुटुम्ब को देखकर उसके आकर्षण में प्राणी लुभायमान हो गया है परन्तु मृत्युकाल पर कोई भी साथ नहीं देता अर्थात् परलोक गमन के समय कोई भी सदस्य साथ नहीं जाता।