हे मेरे मन ! तू हरि-परमेश्वर के नाम का ध्यान किया करो।
चूंकि भगवान का नाम-सिमरन ही सदैव साथ रहता है और सहायक होता है जो आगे जाकर यमों के कष्टों से छुड़ा लेता है॥ १॥ रहाउ॥
हे जीव ! दुनिया का दिया हुआ सम्मान कभी काम नहीं आता।
माया का रंग फीका है, जो अन्त में नष्ट हो जाता है।
जिसके हृदय में प्रभु वास करता है, वही आदरणीय पूर्ण एवं मुख्य है॥२॥
हे प्राणी ! अपनी अहं-भावना त्याग कर संतों के चरणों की धूल हो जाओ।
व्यर्थ के उपाय तथा चतुराईयों समस्त त्याग दे और गुरु के चरणाश्रय में आ जा।
केवल वहीं नाम रूपी रत्न को प्राप्त करता है, जिसके मस्तक पर भाग्य रेखाएँ उज्ज्वल होती हैं॥३ ॥
हे सज्जनो ! जिसको परमात्मा स्वयं प्रदान करता है, वही नाम को प्राप्त करता है।
जिस मनुष्य ने अपना अहंत्व रूपी रोग दूर कर लिया है, वही सतगुरु की सेवा कर सकता है।
हे नानक ! जिसे गुरु मिला है, उसके सभी दुःख-संताप नष्ट हो गए हैं ॥ ४॥ ८ ॥ ७८ ॥
श्रीरागु महला ५ ॥
एक परमात्मा ही मनुष्य का ज्ञाता है तथा वही एक उसका संरक्षक है।
केवल वही मन का सहारा है और प्राणाधार वही एक प्रभु है।
उस परब्रह्म परमात्मा की शरण लेने से सदैव सुखों की उपलब्धि होती है॥ १॥
हे मेरे मन ! प्रभु-प्राप्ति के अपने अन्य सभी उपाय त्याग दे।
केवल परिपूर्ण गुरु की नित्य आराधना करो तथा गुरु के मार्गदर्शन से उसी एक परमात्मा में लिवलीन हो जाओ ॥१॥ रहाउ ॥
एक ईश्वर ही सच्चा भ्राता, मित्र एवं माता-पिता है।
मेरे मन के भीतर उस प्रभु का ही आश्रय है, जिसने मुझे आत्मा तथा यह देह प्रदान की है।
उस प्रभु को, जो संसार की प्रत्येक वस्तु अपने अधीन रखता है, मुझे अपने मन में कदापि विस्मृत न हो।॥ २॥
वह सर्वव्यापक परमेश्वर हृदय रूपी घर में भी विद्यमान है और शरीर के बाहर भी उपस्थित है। वह स्वयं ही समस्त स्थानों के भीतर बसा हुआ है।
जिस सृष्टिकर्ता ने मनुष्य एवं अन्य जीवों की रचना की है, उसकी आठों पहर आराधना करनी चाहिए।
यदि एक ईश्वर के प्रेम में मग्न हो जाओगे तो तुम्हारे समस्त शोक-संतापों का विनाश हो जाएगा। ३॥
एक परमात्मा ही परब्रह्म है, अन्य कोई नहीं।
मनुष्य का जीवन एवं शरीर समस्त उसी की देन हैं, जो कुछ उसे अच्छा लगता है, वही होता है।
हे नानक ! परिपूर्ण गुरु द्वारा मनुष्य भी सम्पूर्ण हो गया है, क्योंकि उसने गुरुमुख होकर भगवान का नाम-सिमरन किया है॥ ४॥ ६॥ ७६॥
श्रीरागु महला ५ ॥
जिन्होंने सतगुरु के उपदेश का चिन्तन किया है, वह मनुष्य पूर्ण व श्रेष्ठ हो जाते हैं।
जिन पर भगवान स्वयं कृपालु होता है, उनके मन में ज्ञान उत्पन्न होता है,
जिनके माथे पर शुभ भाग्य अंकित होते हैं, वही भगवान का नाम-सिमरन प्राप्त करते हैं।॥ १॥
हे मेरे मन ! इसलिए तुम उस एक परमात्मा के नाम का ध्यान करो,
क्योंकि नाम-सिमरन से ही मानव के जीवन में श्रेष्ठ सुख उत्पन्न होते हैं तथा प्रभु के दरबार में यह प्रतिष्ठित पोशाक पहन कर जाएगा ॥ १॥ रहाउ॥
भगवान की प्रेमा-भक्ति करने से मनुष्य जन्म-मरण के भय से मुक्त होता है।
संतों की संगति करने से मनुष्य निर्मल हो जाता है जिसके फलस्वरूप स्वामी (प्रभु) स्वयं उसका पालन-पोषण करता है।
उनके आवागमन (जन्म-मरण) की मैल कट जाती है और वे सतगुरु का दर्शन करके कृतार्थ हो जाता है। २ ॥
परम-परमेश्वर कण-कण में विद्यमान है।
केवल परमात्मा ही समस्त प्राणियों का स्वामी है, अन्य दूसरा कोई नहीं।
उसकी शरण में आने से जीव को जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है, जो कुछ परमेश्वर करना चाहता है, वही होता है॥३॥
जिनके हृदय में सर्वज्ञाता परमेश्वर वास करता है, वह सम्पूर्ण एवं प्रभुख है।
वह जीव शुभ गुणों के कारण श्रेष्ठ पुरुष हो जाते हैं। उनकी सुकीर्ति पवित्र होकर सम्पूर्ण विश्व में फैल जाती है।
हे नानक ! जिन्होंने मेरे परमात्मा का ध्यान किया है, मैं उन पर बलिहारी हूँ॥ ४॥ १०॥ ८०॥