श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 45


ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
मेरे मन हरि हरि नामु धिआइ ॥

हे मेरे मन ! तू हरि-परमेश्वर के नाम का ध्यान किया करो।

ਨਾਮੁ ਸਹਾਈ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਆਗੈ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामु सहाई सदा संगि आगै लए छडाइ ॥१॥ रहाउ ॥

चूंकि भगवान का नाम-सिमरन ही सदैव साथ रहता है और सहायक होता है जो आगे जाकर यमों के कष्टों से छुड़ा लेता है॥ १॥ रहाउ॥

ਦੁਨੀਆ ਕੀਆ ਵਡਿਆਈਆ ਕਵਨੈ ਆਵਹਿ ਕਾਮਿ ॥
दुनीआ कीआ वडिआईआ कवनै आवहि कामि ॥

हे जीव ! दुनिया का दिया हुआ सम्मान कभी काम नहीं आता।

ਮਾਇਆ ਕਾ ਰੰਗੁ ਸਭੁ ਫਿਕਾ ਜਾਤੋ ਬਿਨਸਿ ਨਿਦਾਨਿ ॥
माइआ का रंगु सभु फिका जातो बिनसि निदानि ॥

माया का रंग फीका है, जो अन्त में नष्ट हो जाता है।

ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਵਸੈ ਸੋ ਪੂਰਾ ਪਰਧਾਨੁ ॥੨॥
जा कै हिरदै हरि वसै सो पूरा परधानु ॥२॥

जिसके हृदय में प्रभु वास करता है, वही आदरणीय पूर्ण एवं मुख्य है॥२॥

ਸਾਧੂ ਕੀ ਹੋਹੁ ਰੇਣੁਕਾ ਅਪਣਾ ਆਪੁ ਤਿਆਗਿ ॥
साधू की होहु रेणुका अपणा आपु तिआगि ॥

हे प्राणी ! अपनी अहं-भावना त्याग कर संतों के चरणों की धूल हो जाओ।

ਉਪਾਵ ਸਿਆਣਪ ਸਗਲ ਛਡਿ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਗੁ ॥
उपाव सिआणप सगल छडि गुर की चरणी लागु ॥

व्यर्थ के उपाय तथा चतुराईयों समस्त त्याग दे और गुरु के चरणाश्रय में आ जा।

ਤਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਰਤਨੁ ਹੋਇ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਹੋਵੈ ਭਾਗੁ ॥੩॥
तिसहि परापति रतनु होइ जिसु मसतकि होवै भागु ॥३॥

केवल वहीं नाम रूपी रत्न को प्राप्त करता है, जिसके मस्तक पर भाग्य रेखाएँ उज्ज्वल होती हैं॥३ ॥

ਤਿਸੈ ਪਰਾਪਤਿ ਭਾਈਹੋ ਜਿਸੁ ਦੇਵੈ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ॥
तिसै परापति भाईहो जिसु देवै प्रभु आपि ॥

हे सज्जनो ! जिसको परमात्मा स्वयं प्रदान करता है, वही नाम को प्राप्त करता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਬਿਨਸੈ ਹਉਮੈ ਤਾਪੁ ॥
सतिगुर की सेवा सो करे जिसु बिनसै हउमै तापु ॥

जिस मनुष्य ने अपना अहंत्व रूपी रोग दूर कर लिया है, वही सतगुरु की सेवा कर सकता है।

ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਬਿਨਸੇ ਸਗਲ ਸੰਤਾਪ ॥੪॥੮॥੭੮॥
नानक कउ गुरु भेटिआ बिनसे सगल संताप ॥४॥८॥७८॥

हे नानक ! जिसे गुरु मिला है, उसके सभी दुःख-संताप नष्ट हो गए हैं ॥ ४॥ ८ ॥ ७८ ॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥

श्रीरागु महला ५ ॥

ਇਕੁ ਪਛਾਣੂ ਜੀਅ ਕਾ ਇਕੋ ਰਖਣਹਾਰੁ ॥
इकु पछाणू जीअ का इको रखणहारु ॥

एक परमात्मा ही मनुष्य का ज्ञाता है तथा वही एक उसका संरक्षक है।

ਇਕਸ ਕਾ ਮਨਿ ਆਸਰਾ ਇਕੋ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰੁ ॥
इकस का मनि आसरा इको प्राण अधारु ॥

केवल वही मन का सहारा है और प्राणाधार वही एक प्रभु है।

ਤਿਸੁ ਸਰਣਾਈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥੧॥
तिसु सरणाई सदा सुखु पारब्रहमु करतारु ॥१॥

उस परब्रह्म परमात्मा की शरण लेने से सदैव सुखों की उपलब्धि होती है॥ १॥

ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਗਲ ਉਪਾਵ ਤਿਆਗੁ ॥
मन मेरे सगल उपाव तिआगु ॥

हे मेरे मन ! प्रभु-प्राप्ति के अपने अन्य सभी उपाय त्याग दे।

ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਆਰਾਧਿ ਨਿਤ ਇਕਸੁ ਕੀ ਲਿਵ ਲਾਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु पूरा आराधि नित इकसु की लिव लागु ॥१॥ रहाउ ॥

केवल परिपूर्ण गुरु की नित्य आराधना करो तथा गुरु के मार्गदर्शन से उसी एक परमात्मा में लिवलीन हो जाओ ॥१॥ रहाउ ॥

ਇਕੋ ਭਾਈ ਮਿਤੁ ਇਕੁ ਇਕੋ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ॥
इको भाई मितु इकु इको मात पिता ॥

एक ईश्वर ही सच्चा भ्राता, मित्र एवं माता-पिता है।

ਇਕਸ ਕੀ ਮਨਿ ਟੇਕ ਹੈ ਜਿਨਿ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦਿਤਾ ॥
इकस की मनि टेक है जिनि जीउ पिंडु दिता ॥

मेरे मन के भीतर उस प्रभु का ही आश्रय है, जिसने मुझे आत्मा तथा यह देह प्रदान की है।

ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਮਨਹੁ ਨ ਵਿਸਰੈ ਜਿਨਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਵਸਿ ਕੀਤਾ ॥੨॥
सो प्रभु मनहु न विसरै जिनि सभु किछु वसि कीता ॥२॥

उस प्रभु को, जो संसार की प्रत्येक वस्तु अपने अधीन रखता है, मुझे अपने मन में कदापि विस्मृत न हो।॥ २॥

ਘਰਿ ਇਕੋ ਬਾਹਰਿ ਇਕੋ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਆਪਿ ॥
घरि इको बाहरि इको थान थनंतरि आपि ॥

वह सर्वव्यापक परमेश्वर हृदय रूपी घर में भी विद्यमान है और शरीर के बाहर भी उपस्थित है। वह स्वयं ही समस्त स्थानों के भीतर बसा हुआ है।

ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਜਿਨਿ ਕੀਏ ਆਠ ਪਹਰ ਤਿਸੁ ਜਾਪਿ ॥
जीअ जंत सभि जिनि कीए आठ पहर तिसु जापि ॥

जिस सृष्टिकर्ता ने मनुष्य एवं अन्य जीवों की रचना की है, उसकी आठों पहर आराधना करनी चाहिए।

ਇਕਸੁ ਸੇਤੀ ਰਤਿਆ ਨ ਹੋਵੀ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪੁ ॥੩॥
इकसु सेती रतिआ न होवी सोग संतापु ॥३॥

यदि एक ईश्वर के प्रेम में मग्न हो जाओगे तो तुम्हारे समस्त शोक-संतापों का विनाश हो जाएगा। ३॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
पारब्रहमु प्रभु एकु है दूजा नाही कोइ ॥

एक परमात्मा ही परब्रह्म है, अन्य कोई नहीं।

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਕਾ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੁ ਹੋਇ ॥
जीउ पिंडु सभु तिस का जो तिसु भावै सु होइ ॥

मनुष्य का जीवन एवं शरीर समस्त उसी की देन हैं, जो कुछ उसे अच्छा लगता है, वही होता है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪੂਰਾ ਭਇਆ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਸੋਇ ॥੪॥੯॥੭੯॥
गुरि पूरै पूरा भइआ जपि नानक सचा सोइ ॥४॥९॥७९॥

हे नानक ! परिपूर्ण गुरु द्वारा मनुष्य भी सम्पूर्ण हो गया है, क्योंकि उसने गुरुमुख होकर भगवान का नाम-सिमरन किया है॥ ४॥ ६॥ ७६॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सिरीरागु महला ५ ॥

श्रीरागु महला ५ ॥

ਜਿਨਾ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ਸੇ ਪੂਰੇ ਪਰਧਾਨ ॥
जिना सतिगुर सिउ चितु लाइआ से पूरे परधान ॥

जिन्होंने सतगुरु के उपदेश का चिन्तन किया है, वह मनुष्य पूर्ण व श्रेष्ठ हो जाते हैं।

ਜਿਨ ਕਉ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਹੋਇ ਤਿਨ ਉਪਜੈ ਮਨਿ ਗਿਆਨੁ ॥
जिन कउ आपि दइआलु होइ तिन उपजै मनि गिआनु ॥

जिन पर भगवान स्वयं कृपालु होता है, उनके मन में ज्ञान उत्पन्न होता है,

ਜਿਨ ਕਉ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥੧॥
जिन कउ मसतकि लिखिआ तिन पाइआ हरि नामु ॥१॥

जिनके माथे पर शुभ भाग्य अंकित होते हैं, वही भगवान का नाम-सिमरन प्राप्त करते हैं।॥ १॥

ਮਨ ਮੇਰੇ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
मन मेरे एको नामु धिआइ ॥

हे मेरे मन ! इसलिए तुम उस एक परमात्मा के नाम का ध्यान करो,

ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਸੁਖ ਊਪਜਹਿ ਦਰਗਹ ਪੈਧਾ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब सुखा सुख ऊपजहि दरगह पैधा जाइ ॥१॥ रहाउ ॥

क्योंकि नाम-सिमरन से ही मानव के जीवन में श्रेष्ठ सुख उत्पन्न होते हैं तथा प्रभु के दरबार में यह प्रतिष्ठित पोशाक पहन कर जाएगा ॥ १॥ रहाउ॥

ਜਨਮ ਮਰਣ ਕਾ ਭਉ ਗਇਆ ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਗੋਪਾਲ ॥
जनम मरण का भउ गइआ भाउ भगति गोपाल ॥

भगवान की प्रेमा-भक्ति करने से मनुष्य जन्म-मरण के भय से मुक्त होता है।

ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਨਿਰਮਲਾ ਆਪਿ ਕਰੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
साधू संगति निरमला आपि करे प्रतिपाल ॥

संतों की संगति करने से मनुष्य निर्मल हो जाता है जिसके फलस्वरूप स्वामी (प्रभु) स्वयं उसका पालन-पोषण करता है।

ਜਨਮ ਮਰਣ ਕੀ ਮਲੁ ਕਟੀਐ ਗੁਰ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲ ॥੨॥
जनम मरण की मलु कटीऐ गुर दरसनु देखि निहाल ॥२॥

उनके आवागमन (जन्म-मरण) की मैल कट जाती है और वे सतगुरु का दर्शन करके कृतार्थ हो जाता है। २ ॥

ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥
थान थनंतरि रवि रहिआ पारब्रहमु प्रभु सोइ ॥

परम-परमेश्वर कण-कण में विद्यमान है।

ਸਭਨਾ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
सभना दाता एकु है दूजा नाही कोइ ॥

केवल परमात्मा ही समस्त प्राणियों का स्वामी है, अन्य दूसरा कोई नहीं।

ਤਿਸੁ ਸਰਣਾਈ ਛੁਟੀਐ ਕੀਤਾ ਲੋੜੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੩॥
तिसु सरणाई छुटीऐ कीता लोड़े सु होइ ॥३॥

उसकी शरण में आने से जीव को जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है, जो कुछ परमेश्वर करना चाहता है, वही होता है॥३॥

ਜਿਨ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸੇ ਪੂਰੇ ਪਰਧਾਨ ॥
जिन मनि वसिआ पारब्रहमु से पूरे परधान ॥

जिनके हृदय में सर्वज्ञाता परमेश्वर वास करता है, वह सम्पूर्ण एवं प्रभुख है।

ਤਿਨ ਕੀ ਸੋਭਾ ਨਿਰਮਲੀ ਪਰਗਟੁ ਭਈ ਜਹਾਨ ॥
तिन की सोभा निरमली परगटु भई जहान ॥

वह जीव शुभ गुणों के कारण श्रेष्ठ पुरुष हो जाते हैं। उनकी सुकीर्ति पवित्र होकर सम्पूर्ण विश्व में फैल जाती है।

ਜਿਨੀ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਇਆ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੁਰਬਾਨ ॥੪॥੧੦॥੮੦॥
जिनी मेरा प्रभु धिआइआ नानक तिन कुरबान ॥४॥१०॥८०॥

हे नानक ! जिन्होंने मेरे परमात्मा का ध्यान किया है, मैं उन पर बलिहारी हूँ॥ ४॥ १०॥ ८०॥


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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