जो लोग सच्चे गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं, वे मानव जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं।
ऐसा मनुष्य अपने अहंकार का नाश करके सत्यस्यरूप ईश्वर की प्रीति में लीन रहते हैं।
जिन लोगों ने सतगुरु की शिक्षाओं का पालन नहीं किया, वह मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ गंवा देते हैं।
हे नानक ! किसी भी प्रकार से कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि परमात्मा वहीं कुछ करता है, जो कुछ उसे अच्छा लगता है ॥१॥
महला ३॥
जिसका मन विकार सहित है, वह बुरे कर्मों में लगा रहता है।
ज्ञानहीन मनुष्य माया के मोह में फँसकर माया की पूजा करते हैं। आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी व्यक्ति जो द्वैत प्रेम में लीन होकर ईश्वर की पूजा करते हैं, उन्हें ईश्वर की उपस्थिति में दंड (बार-बार जन्म और मृत्यु) मिलता है।
अत: हमें केवल भगवान् की ही भक्ति करनी चाहिए, परंतु यह ज्ञान मनुष्य को सच्चे गुरु की शिक्षाओं का पालन किए बिना प्राप्त नहीं होता।
सतगुरु की शिक्षाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करना ही असली पूजा, तपस्या और सादगी है, लेकिन ऐसा करने की क्षमता तभी प्राप्त होती है जब भगवान् मनुष्य पर दया करते हैं।
हे नानक ! गुरु की सेवा उनकी शिक्षाओं का पूरे ध्यान से पालन करना है, लेकिन केवल वही सेवा स्वीकृत है जो भगवानू को प्रसन्न करती है। ॥२॥
पउड़ी ॥
हे मेरे मन ! उस हरि-परमेश्वर के नाम का हमेशा भजन करो, जिससे तुझे दिन-रात सदैव सुख उपलब्ध होता है।
हे मेरे मन ! तू हरिनाम का भजन कर, जिसका सिमरन करने से तेरे पाप और अंदर के बुरे विचार सब मिट जाते हैं।
हे मेरे मन ! हमेशा प्रेमपूर्ण भक्ति के साथ उस हरि-परमेश्वर के नाम का जाप करो, जिससे सांसारिक इच्छाओं के प्रति सब प्रकार की दरिद्रता, दुःख एवं भूख सब दूर हो जाएं।
हे मेरे मन ! सदैव भगवान को श्रद्धापूर्वक याद करो, ताकि गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से आपके भीतर प्रभु के प्रति प्रीति उत्पन्न हो सके।
जिसकी नियति ऐसी पूर्वनिर्धारित होती है, भगवान् उसे ही प्रेमपूर्वक भक्तिपूर्वक स्मरण करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।॥१३॥
Shalok, तीसरे mehl:
जो प्राणी सतगुरु की सेवा नहीं करते और न ही गुरु-शब्द के माध्यम से प्रभु के नाम का चिन्तन करते हैं,
उनके अन्तर्मन में दिव्य ज्ञान का प्रकाश नहीं होता और वह इस जगत् में आध्यात्मिक रूप से मृतक के ही समान हैं।
ऐसे प्राणी चौरासी लाख योनियों में चक्र काटते हैं और जीवन-मृत्यु के चक्र में पड़कर नष्ट होते हैं।
सतगुरु की सेवा वही करता है, जिससे प्रभु स्वयं करवाता है।
सतगुरु के पास ही नाम रूपी खजाना है, जो प्रभु की दया से उपलब्ध होता है।
जो लोग गुरु के शब्द के प्रति सच्चे हैं, उनका प्रेम सदैव सच्चा रहता है।
हे नानक ! जिसे परमात्मा अपने साथ मिला लेता है, वह मनुष्य प्रभु से कभी भी विरक्त नहीं होता और सदा आध्यात्मिक रूप से संतुलित रहता है।॥ १ ॥
महला ३॥
जो कल्याणकारी भगवान को जानता है, वही भगवती का सच्चा भक्त है।
गुरु की कृपा से उसे आत्म-साक्षात्कार हो गया।
वह अपने भटकते हुए मन को संयमित करके उसे स्वयं में स्थिर कर देता है।
वह सांसारिक विषयों में निर्लिप्त रहते हुए स्वयं को जीवित रहते हुए भी मृतक के समान समझते हुए सदैव हरिनाम का जाप करता है।
ऐसा भगवत् भक्त ही उत्तम होता है;
हे नानक ! वह सत्य (परमात्मा) में ही समा जाता है ॥ २॥
महला ३॥
जिस व्यक्ति के हृदय में छल-कपट है और वह अपने आपको सच्चा भक्त कहलवाता है।
ऐसा पाखंडी व्यक्ति पाखंड द्वारा कभी भी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता।
जो व्यक्ति पराई निंदा करता है, वह अपने हृदय को दूषित कर लेता है।
वह स्नान करके बाहर से शरीर की मैल को ही स्वच्छ करता है परन्तु उसके मन की अपवित्रता दूर नहीं होती।
जो साधु-संतों से वाद-विवाद करता है।
वह द्वैत-भाव में लीन हुआ दिन-रात दु:खी रहता है।
वह हरि नाम का चिन्तन नहीं करता और अन्य सभी प्रकार के कर्मकाण्ड करता रहता है।
जो कुछ उसकी किस्मत में पूर्व-जन्म के कर्मों द्वारा लिखा हुआ है, वह मिटाया नहीं जा सकता।
हे नानक ! वह मनुष्य सतगुरु की शिक्षाओं के चिंतन के बिना वह माया के प्रेम से मुक्त नहीं हो सकता ॥३॥
पउड़ी ॥
जो व्यक्ति सतगुरु को स्मरण करते हैं, वह जलकर राख नहीं होते।
जो व्यक्ति सतगुरु का चिन्तन करते हैं, वह संतुष्ट और तृप्त हो जाते हैं।
जो व्यक्ति सतगुरु का ध्यान करते हैं, उनको मृत्यु का कोई भय नहीं होता।