नाम द्वारा मनुष्य पूज्य प्रभु को पहचान लेता है और गुरु की वाणी द्वारा वह सत्य के रंग में लिवलीन हो जाता है।
उस प्राणी की देह को तुच्छ मात्र भी मलिनता नहीं लगती, जिसने सच्चे घर के भीतर निवास कर लिया है।
यदि प्रभु अपनी कृपा-दृष्टि करे तो सत्यनाम प्राप्त हो जाता है। परमात्मा के नाम के अतिरिक्त प्राणी का अन्य संबंधी कौन है? ॥ ५॥
जिन्होंने सत्य को अनुभव किया है, वे चारों युगों में सुखी रहते हैं।
अहंकार एवं तृष्णा का नाश करके वह सत्य-नाम को अपने हृदय में धारण करके रखते हैं।
इस जगत् में केवल नाम (प्रभु-भक्ति) का ही उचित लाभ है। इसकी प्राप्ति केवल गुरु की कृपा सोच-विचार द्वारा ही होती है।॥ ६॥
यदि सत्य की पूँजी द्वारा सत्यनाम का सौदा व्यवसायिक तौर पर किया जाए तो सदैव ही लाभ होता है।
प्रेममयी सिमरन एवं सच्ची लग्न से प्रार्थना द्वारा मनुष्य ईश्वर के दरबार के अन्दर बैठ जाता है।
सर्वव्यापक परमेश्वर के नाम के उजाले में मनुष्य के कर्मों का लेखा सम्मान-पूर्वक स्पष्ट हो जाता है।॥ ७॥
श्रेष्ठों में परम श्रेष्ठ स्वामी कहा जाता है, पर वह किसी द्वारा भी नहीं देखा जा सकता।
जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, सर्वत्र में केवल आपको ही पाता हूँ। मुझे सतगुरु ने आपके दर्शन करा दिए हैं।
हे नानक ! प्रभु प्रेम द्वारा हृदय में सहज अवस्था प्राप्त होने पर यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है।॥८॥३॥
श्रीरागु महला १ ॥
गहरे खारे समुद्र में रहते हुए मछली ने जाल की पहचान नहीं की भाव इस मायावी संसार में रहते हुए मछली अर्थात् जीव को उस परब्रह्म का प्रलोभनों से बने जाल का आभास न हुआ।
देखने को तो जीव बहुत सुन्दर और चतुर है किन्तु उसने परमात्मा द्वारा दिए गए प्रलोभनों का विश्वास क्यूँ किया?
वह विश्वास करने के कारण ही जाल में पकड़ी गई। उसके सिर पर मृत्यु को टाला नहीं जा सकता, जो अटल है॥ १॥
हे भाई ! इस तरह तू मृत्यु को अपने सिर पर मंडराता हुआ समझ, क्योंकि काल बहुत बलवान है।
जिस तरह मछली है, उसी तरह ही मनुष्य है। मृत्यु का जाल अकस्मात ही उस पर आ गिरता है॥ १॥ रहाउ ॥
सारे संसार को काल (मृत्यु) ने दबोचा हुआ है। गुरु की कृपा बिना मृत्यु अनिवार्य है।
जो सत्य में लिवलीन हो गए हैं और द्वैत-भाव तथा पापों को त्याग देते हैं, वह बच जाते हैं।
मैं उन पर बलिहारी हूँ, जो सत्य के दरबार में सत्यवादी माने जाते हैं।॥२॥
जैसे बाज पक्षियों को मार देता है और शिकारी के हाथ में पकड़ा हुआ जाल उन्हें फँसा लेता है, वैसे ही माया के मोह के कारण सभी मनुष्य यम के जाल में फंस जाते हैं।
जिनकी गुरदेव रक्षा करते हैं, वह यम के जाल से बच जाते हैं, शेष दाने (मृत्यु) के साथ फँस जाते हैं।
हरि नाम के बिना वे मृत्यु के वश में दाने की तरह चुन लिए जाएँगे, फिर उनका कोई भी साथी या सहायक नहीं होगा।॥३॥
सत्य प्रभु को सभी सत्य कहते हैं। सत्य प्रभु का निवास भी सत्य है
सत्य प्रभु उनके हृदय में निवास करता है, जो उसका सिमरन एवं ध्यान करते हैं।
गुरु द्वारा ज्ञान प्राप्त करने वाले प्राणियों के हृदय एवं मुख पवित्र माने जाते हैं।॥ ४॥
हे प्राणी ! सतगुरु के समक्ष वंदना करो कि वह तुझे तेरे मित्र (प्रभु) से मिलन करवा दे।
मित्र (ईश्वर) के मिलन से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और यमदूत से मिलने पर कालरूपी विष का सेवन हो जाता हैं।
परमात्मा के नाम (भक्ति) में उस हरी का वास है और उस नाम ने मेरी आत्मा में निवास कर लिया है॥ ५॥
गुरु के बिना मनुष्य के हृदय में अज्ञानता का अंधेरा विद्यमान रहता है और ईश्वर के नाम के बिना उस अज्ञानता को दूर करने का ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
जब गुरु के उपदेशों द्वारा मनुष्य के भीतर ज्योति का प्रकाश होता है, तो फ़िर वह प्राणी उस सत्य शाश्वत प्रभु के प्रेम में लीन लगाकर रखता है।
इस अवस्था में वहाँ मृत्यु प्रवेश नहीं करती और मनुष्य की ज्योति (आत्मा) परम ज्योति (परमात्मा) के साथ अभेद हो जाती है॥ ६॥
हे प्रभु ! तुम बुद्धिमान हो, तुम मेरे मित्र हो और तुम ही मनुष्य को अपने साथ मिलाने वाले हो।
गुरु के शब्द के माध्यम से हम आपकी स्तुति करते हैं; आपका कोई अंत या सीमा नहीं है।
जहाँ पर गुरु का अनहद शब्द विद्यमान है, काल वहाँ पर कदापि प्रवेश नहीं करता॥ ७ ॥
प्रभु की इच्छा द्वारा समस्त जीव-जन्तु उत्पन्न होते हैं और उसकी इच्छानुसार ही वे कार्य व्यवहार करते हैं।
प्रभु की इच्छानुसार ही वे काल के अधीन है और उसकी इच्छानुसार वे सत्यस्वरूप परमात्मा में विलीन हो जाते हैं।
हे नानक ! जो कुछ भी प्रभु को अच्छा लगता है, वही होता है। सांसारिक जीवों के वश में कुछ भी नहीं ॥८॥४॥
श्रीरागु महला १ ॥
यदि मन में अपवित्र है तो तन में भी अपवित्र आ जाती है और अपवित्र के कारण जिह्वा भी अपवित्र हो जाती है। अर्थात् विषय-विकारों में लीन होने के कारण तन-मन-जिह्वा मलिन हो जाती है।