रामकली, प्रथम मेहल, प्रथम सदन, चौ-पधाय:
एक सर्वव्यापी सृष्टिकर्ता ईश्वर। सत्य ही नाम है। सृजनात्मक सत्ता का साकार रूप। कोई भय नहीं। कोई घृणा नहीं। अमर की छवि। जन्म से परे। स्वयं-अस्तित्ववान। गुरु की कृपा से:
कुछ लोग संस्कृत शास्त्र पढ़ते हैं, और कुछ लोग पुराण पढ़ते हैं।
कुछ लोग भगवान के नाम का ध्यान करते हैं, तथा ध्यान में उस पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, अपनी माला पर उसका जप करते हैं।
मैं कुछ भी नहीं जानता, अब या कभी भी नहीं; मैं केवल आपका एक नाम पहचानता हूं, प्रभु। ||१||
हे प्रभु, मैं नहीं जानता कि मेरी क्या दशा होगी।
मैं मूर्ख और अज्ञानी हूँ; मैं आपकी शरण चाहता हूँ, हे ईश्वर। कृपया, मेरे सम्मान और मेरे स्वाभिमान की रक्षा करें। ||१||विराम||
कभी-कभी आत्मा स्वर्ग में ऊंची उड़ान भरती है, और कभी-कभी पाताल लोक की गहराइयों में गिर जाती है।
लोभी जीव स्थिर नहीं रहता, वह चारों दिशाओं में खोजता रहता है। ||२||
मृत्यु पूर्व-निर्धारित होने के कारण, आत्मा जीवन की सम्पदा एकत्रित करते हुए संसार में आती है।
मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोग पहले ही जा चुके हैं, हे मेरे प्रभु और स्वामी; जलती हुई आग निकट आ रही है! ||३||
किसी का कोई मित्र नहीं है, किसी का कोई भाई नहीं है; किसी का कोई पिता या माता नहीं है।
नानक प्रार्थना करते हैं, यदि आप मुझे अपने नाम से आशीर्वाद दें, तो यह अंत में मेरी सहायता और समर्थन होगा। ||४||१||
रामकली, प्रथम मेहल:
आपका प्रकाश सर्वत्र व्याप्त है।
जिधर भी देखता हूँ, उधर ही प्रभु को देखता हूँ। ||१||
हे मेरे प्रभु और स्वामी, कृपया मुझे जीने की इच्छा से छुटकारा दिलाइये।
मेरा मन माया के गहरे अंधकार भरे गड्ढे में उलझा हुआ है। हे प्रभु और स्वामी, मैं इससे कैसे पार हो सकता हूँ? ||१||विराम||
वह तो हमारे हृदय के अन्दर गहराई में निवास करता है, फिर वह बाहर क्यों न हो?
हमारे प्रभु और स्वामी सदैव हमारा ध्यान रखते हैं, और हमें अपने विचारों में रखते हैं। ||२||
वह स्वयं निकट भी है, और वह स्वयं दूर भी है।
वह स्वयं सर्वव्यापी है, हर जगह व्याप्त है।
सच्चे गुरु के मिलने से अंधकार दूर हो जाता है।