भगवान् स्वयं भक्तों को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करते हैं, और उन्हें अपने हृदय, शाश्वत घर में स्थान देने का आशीर्वाद देते हैं।
किन्तु वह पापियों को शान्ति प्रदान नहीं करते और उन्हें अत्यधिक कठोर कष्ट देते हैं।
भगवान् अपने भक्तों को अपने प्रेम से आशीर्वाद देकर और उन्हें अपना समर्थन प्रदान करके उन्हें विकारों से बचाते हैं।॥ १६ ॥
श्लोक महला १॥
बुरी नियत, क्रूरता, दूसरों की निंदा करने की आदत और क्रोध ऐसे अवगुण हैं जिन्होंने व्यक्ति के भीतर निवास करके उसके मन को भ्रमित कर दिया है।
हे मनुष्य ! यह सभी वृतियाँ तेरे आचरण को दूषित रही हैं तो रेखाएँ खीँचकर इस बाहरी शुद्धता का तुझे क्या लाभ है, जब ये चारों ही तेरे भीतर निवास कर रही हैं ?
उन लोगों का मन वास्तव में बेदाग होता है जो सत्य को अपना संयम, शुभ आचरण को अपनी लकीरें एवं नाम स्मरण को अपना पवित्र स्नान बनाते हैं।
हे नानक ! परलोक में केवल वही सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं जो दूसरों को गुनाहों के मार्ग की शिक्षा नहीं देते॥ १॥
महला १॥
हे नानक ! जिस पर भगवान् अपनी कृपा दृष्टि डाल देते हैं तो उसके बगुले जैसे कपट को हंस जैसी धार्मिकता में बदलने में दिक्कत कहाँ है? भाव यदि प्रभु चाहे तो वह विष्टा खाने वाले कौए को भी मोती चुगने वाला हंस बना देते हैं।
जिस पर प्रभु अपनी कृपा-दृष्टि करता है, वह बगुले जैसे पाखंडी पापी को भी हंस जैसा पवित्र बना देता है ॥ २॥
पउड़ी ॥
हमें अगर किसी भी कार्य को पूर्ण एवं सफल करना हो तो उसके लिए भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिए।
ऐसा करने से प्रभु सतगुरु की शिक्षाओं द्वारा अपने भक्त के सभी मामलों का समाधान कर देते हैं।
संतों की संगति में मिलकर ही नाम रूपी अमृत भण्डार को चखा जाता है और हम भी संतों की संगति के द्वारा नाम के अमृत में भाग ले सकते हैं।
(इसलिए हमें इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए,) हे दयालु भगवान्, भय का नाश करने वाले, कृपया अपने भक्त के सम्मान प्रतिष्ठा रखो।
हे नानक ! भगवान् की महिमा-स्तुति करने से अतुल्नीय प्रभु से साक्षात्कार कर सकते हैं॥ २०॥
श्लोक महला १॥
यह शरीर एवं प्राण सब कुछ भगवान् की देन है, वह सभी जीवों को सहारा देता है।
हे नानक ! गुरु के माध्यम से हमेशा ही उस दाता-प्रभु का सिमरन करना चाहिए।
मैं उन पर बलिहरी हूँ जो प्रेमपूर्वक निरंकार प्रभु की आराधना करते हैं।
उनके मुख सदैव उज्ज्वल रहते हैं और सारा संसार उनको प्रणाम करता है ॥ १॥
महला ३॥
व्यक्ति की बुद्धि पूरी तरह से बदल जाती है, भगवान के प्यार की तलाश में उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसे नवनिधियों की उपलब्धि हो गई है, जिसकी उसे कभी आवश्यकता हो सकती है।
वह आध्यात्मिक रूप से इतना मजबूत हो जाता है, मानो समस्त अठारह सिद्धियाँ तथा चमत्कारी शक्तियां, उसके आगे-पीछे लगी रहती हैं, लेकिन वह अपने भीतर आध्यात्मिक रूप से स्थिर रहता है।
उसके मन में हमेशा ही अनहद ध्वनि बजती रहती है, वह परमानंद अवस्था में रहता हुआ भगवान् के गुणों में केन्द्रित रहता है।
हे नानक ! उनके मन में ही भगवान् की भक्ति निवास करती है, जिनके भाग्य में प्रारम्भ से ही इसे लिख दिया जाता है। ॥ २ ॥
पउड़ी ॥
मैं अपने मालिक हरि-प्रभु का एक विनम्र सेवक हूँ और प्रभु के द्वार पर आया हूँ।
ईश्वर ने मेरी पुकार सुनकर मुझ सेवक को अपनी उपस्थिति में बुलवा लिया।
भगवान् ने मुझे बुलाकर पूछा कि तुम किस मनोरथ हेतु मेरे पास आए हो।
(मैंने उसके सामने प्रार्थना की ? हे मेरे दयावान परमात्मा ! मुझे हमेशा ही अपने हरि नाम-सिमरन का दान दीजिए।
(मेरी प्रार्थना सुनकर) परोपकारी भगवान् ने मुझे (नानक को) अपना नाम याद करने के लिए प्रेरित किया और मुझे सम्मानित भी किया। ॥२१॥ १॥ सुधु॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
माता सोचती है कि उसका पुत्र बड़ा होता जा रहा है परन्तु वह इतना नहीं समझती कि प्रतिदिन उसकी आयु के दिन कम होते जा रहे हैं।
माता बड़े लाड-प्यार से उसको 'मेरा-मेरा' कह कर स्नेह करती है, परन्तु यमराज उसका यह मोह देखकर मुस्कराते हैं भाव उसकी मूर्खता पर हँसते हैं। ॥१॥