हे नानक ! वह सुहागिनें (प्राणी) धन्य हैं, जिन्होंने अपने पति-परमेश्वर का प्रेम प्राप्त कर लिया है ॥४॥२३॥९३॥
श्रीरागु महला ५ ॥
जिस एक परमात्मा ने सृष्टि-रचना की है, वह परमात्मा ही करने एवं कराने वाला है|
हे मेरे मन ! उसका सिमरन करो, जो समस्त जीवों का आधार है॥१॥
हे मन ! अपने हृदय में गुरु के चरणों का ध्यान करो।
और अपनी समस्त चतुराइयों त्यागकर सत्य नाम में सुरति लगाओ ॥१॥ रहाउ॥
यदि मनुष्य के हृदय में गुरु का मंत्र (शब्द) बस जाए तो उसके समस्त दुःख-संताप अथवा मृत्यु का भय कदापि आगमन नहीं करते।
मनुष्य करोड़ों ही उपाय करके असफल हो गए हैं। परन्तु गुरु के बिना किसी का भी इस भवसागर से उद्धार नहीं हुआ ॥२॥
गुरुदेव के दर्शन-मात्र से ही आत्मा को सहारा प्राप्त होता है और समस्त दोष निवृत्त हो जाते हैं।
मैं उन पर न्योछावर होता हूँ, जिन्होंने गुरु-चरणों पर स्वयं को अर्पण किया है ॥३॥
साधु की संगति करने से ही ईश्वर का सत्य नाम मन में आकर बसता है।
हे नानक ! वे मनुष्य बड़े सौभाग्यशाली हैं, जिनके हृदय में भगवान के लिए प्रेम है ॥४॥२४॥९४॥
श्रीरागु महला ५ ॥
हे प्राणी! समस्त पाप विकारों को त्याग दो। सतगुरु की पूजा करो एवं हरि नाम रूपी धन संचित करो।
जिस परमात्मा ने तुझे पैदा करके संवारा है, उसका सिमरन करने से तेरा उद्धार हो। जाएगा ॥१॥
हे मेरे मन ! एक अपार प्रभु का ही नाम जपो।
जिस ईश्वर ने तुझे प्राण, मन एवं तन दिया है, वही समस्त जीवों के हृदय का आधार है॥१॥ रहाउ॥
सम्पूर्ण जगत् काम, क्रोध अहंकार इत्यादि में मग्न है, दुनिया माया के मोह में फंसी हुई है।
हे प्राणी ! तू संतों के चरणों में लगकर उनकी शरण में जा, फिर तेरा दु:ख मिट जाएगा और तेरे मन में से अज्ञानता का अँधेरा दूर हो जाएगा ॥२॥
हे प्राणी ! जीवन की श्रेष्ठ करनी यही है कि तू सत्य, संतोष एवं दया की पूंजी संचित कर।
जिस प्राणी पर निरंकार प्रभु ने कृपा-दृष्टि की है, वह अपना अहंकार त्याग कर उसी की चरण धूल बन जाता है॥३॥
समूचा दृश्यमान संसार उसी प्रभु का प्रसार है, वही उसमें व्यापक है।
हे नानक ! कहो- गुरु ने जिस व्यक्ति की शंका निवृत्त कर दी है, वह सारे जगत् को ब्रह्म ही समझता है ॥४॥२५॥९५॥
श्रीरागु महला ५ ॥
समूचा जगत् शुभ एवं अशुभ कर्मों के जाल में फँसा हुआ है।
कोई विरला प्रभु-भक्त ही मिलता है, जो इन दोनों प्रकार के कर्मों से रहित हो। ॥१॥
परमात्मा समस्त जीवों में समाया हुआ है।
हे मेरे मालिक ! मैं तेरे बारे में क्या कहूँ और क्या सुनूँ? तू सबसे महान् चतुर पुरुष है ॥१॥ रहाउ॥
जो व्यक्ति मान-अभिमान में फँसा हुआ है, वह ईश्वर का भक्त नहीं।
एक है जो निष्पक्ष दृष्टि, हे पवित्रा लोगों के साथ वास्तविकता के सार को देखता है, बहुत दुर्लभ लाखों में एक है। । 2 । । ।
उपदेश देना या सुनना भी कई लोगों के लिए आत्म-प्रशंसा प्राप्त करने का एक तरीका है। भाव कुछ लोग व्यर्थ के वार्तालाप से उपदेशक बन आत्म-प्रशंसा प्राप्त करने का रास्ता ढूँढते हैं।
लेकिन कोई विरला ही गुरमुख है जो इस वाद-विवाद से परे रहता है।
वाद-विवाद करने वालों को गति एवं अवगति की अवस्था कुछ भी दिखाई नहीं देती ॥३॥
हे नानक ! मैंने संतों की चरण-धूलि का दान प्राप्त कर लिया है II ४ II २६ Il ६६ II
श्रीरागु महला ५ घरु ७ ॥
हे प्रिय प्रभु ! तेरे भरोसे पर मैंने बालक भाँति प्रीति में रहकर हास-विलास किए हैं।
हे भगवान् ! तुम ही मेरी माता एवं मेरे पिता हो, मैं तेरा बालक हूँ जो भूल चूक करता हूँ ॥१॥
बातें करनी बड़ी सरल हैं।
परन्तु आपके विधान अनुसार चलना बड़ा कठिन है ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! मुझे आपके ऊपर बड़ा मान है, क्योंकि मुझे आपके बल का ही आधार है और मैं आपको अपना रक्षक समझता हूँ।
हे परम पिता ! आप समस्त जीवों के भीतर उपस्थित हो, सबसे बाहर भी आप ही हो ॥ २॥
हे मेरे पिता ! मैं तेरी युक्ति को नहीं जानता जिससे तू प्रसन्न होता है।