संतों की संगति द्वारा क्षमावान प्रियतम प्रभु हृदय में बसता है।
जिसने अपने प्रभु नाम का सिमरन किया है। वह राजाओं का भी राजा है॥ २॥
जिस समय हरि नाम के यश व गुणों का चिन्तन किया जाए, वह करोड़ों तीर्थों के स्नान के पुण्य-फल के समान है।
हरि स्मरण द्वारा रसना गुणों वाली हो जाती है, पुनः उसके तुल्य कोई दान नहीं है।
अकालपुरुष दयालु एवं कृपालु है, वह अपनी कृपा-दृष्टि द्वारा जीव के मन व तन में विराजमान होता है।
जीव को तन एवं धन उस परमात्मा का दिया हुआ है, मैं उस पर सदैव ही न्यौछावर हूँ॥ ३॥
जिसे कर्ता-पुरुष परमात्मा अपने साथ मिला ले, वह परमात्मा से मिला ही रहता है फिर कभी नहीं बिछुड़ता।
सृजनहार प्रभु ने अपने सेवकों के माया रूपी बंधनों को काट दिया है।
वह अपने सेवकों के गुणों-अवगुणों का विचार किए बिना भूले हुए को भी भक्ति-मार्ग पर डाल देता है।
नानक कथन करते हैं कि उस भगवान की शरण में पड़ जा, जो समस्त जीवों का आधार है॥ ४ ॥ १८ ॥ ८८ ॥
श्रीरागु महला ५ ॥
यदि सत्य परमात्मा को रसना द्वारा स्मरण किया जाए तो जीव का मन एवं तन दोनों पवित्र हो जाते हैं।
जीव के माता-पिता एवं अन्य सगे-संबंधी तो बहुत होते हैं किन्तु इहलोक एवं परलोक में उस परमात्मा के सिवाय अन्य कोई सहायक नहीं है।
परमात्मा यदि अपनी कृपा-दृष्टि करे तो मनुष्य उसको क्षण-मात्र के लिए भी विस्मृत नहीं करता ॥ १॥
हे मेरे मन ! जब तक तेरे प्राण हैं, उस सत्य परमात्मा का सिमरन करता जा।
उस परमात्मा के अलावा समस्त सृष्टि मिथ्या है और अंत में नाश हो जाने वाली है ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा परमात्मा बड़ा निर्मल है। उसके बिना मैं कभी नहीं रह सकता।
मेरे मन एवं तन के भीतर परमेश्वर हेतु परम तृष्णा है। कोई भी आकर उससे मुझे मिला दे।
मैंने चारों दिशाओं में उसकी खोज कर ली है, परम-पिता परमेश्वर के बिना अन्य कोई भी विश्राम स्थल नहीं ॥ २॥
उस गुरु के समक्ष प्रार्थना कर, जो तुझे इस सृष्टि के सृजनहार से तेरा मिलाप करवा दे।
सतगुरु जी नाम के दाता हैं, जिनके पास भक्ति का पूर्ण भंडार है।
सदैव उस प्रभु की प्रशंसा करो, जिसकी सीमा को अंत तक नहीं जाना जा सकता ॥३॥
उस पालनहार परमात्मा की सराहना करो, जिसके अनेक चमत्कार हैं।
विशेष बुद्धिमत्ता यही है कि उस परमात्मा की हमेशा आराधना करनी चाहिए।
हे नानक ! परमात्मा का नाम उसी जीव के मन एवं तन को मीठा लगता है, जिसके मस्तक पर शुभ-कर्मों के भाग्य लिखे हुए हैं। ॥४॥१९ ॥८९ ॥
श्रीरागु महला ५ ॥
हे भाइयो ! संतजनों की संगति करके सत्यनाम की आराधना करो।
आत्मा की यात्रा के लिए नाम रूपी धन को अपने साथ एकत्रित कर लो क्यूंकि यह राम नाम ही तुझे इस लोक और परलोक में तेरा सहायक है या मुक्ति दिलाने वाला है।
यदि स्वामी अपनी कृपा करे तो यह भोजन गुरु की संगति से प्राप्त कर सकते हो।
जिस पर ईश्वर कृपालु हो जाता है, उसे नाम रूपी भोजन शुभ कर्मों द्वारा मिल जाता है॥ १॥
हे मेरे मन ! गुरु जैसा अन्य कोई (महान्) नहीं।
मैं किसी अन्य स्थान का ख्याल नहीं कर सकता। केवल गुरु ही मुझे सत्य परमेश्वर से मिला सकता है।॥१॥ रहाउ॥
जो प्राणी गुरु जी के दर्शन करता है, उसको संसार के समस्त पदार्थ (धन-दौलत,ऐश्वर्य) प्राप्त हो जाते हैं।
हे मेरी माता ! वह प्राणी बड़े सौभाग्यशाली हैं, जिनका मन गुरु-चरणों में लीन हो जाता है।
गुरु जी दानशील हैं, गुरु जी सर्वशक्तिमान, गुरु ही ईश्वर रूप सभी के भीतर विद्यमान हैं।
गुरु ही परमेश्वर एवं पारब्रह्म हैं। गुरु जी ही डूबते हुओं को पार लगाने वाले हैं जो प्राणियों को जीवन-मृत्यु रूपी सागर से पार करवाते हैं॥२॥
किस मुख से उस गुरु की प्रशंसा करूँ, जो स्वयं ही सब करने एवं करवाने में समर्थ हैं।
वे मस्तक (व्यक्ति) सदैव स्थिर रहते हैं, जिन पर गुरु ने अपना अनुकंपा का हाथ रखा है।
गुरु ने मुझे जन्म-मरण का भय नाश करने वाला अमृत नाम पान करवाया है।
मैंने गुरु परमेश्वर की भरपूर सेवा का फल प्राप्त किया है, जिसने सब भय-भंजन एवं मेरे दु:खों को निवृत्त कर दिया है॥३॥