श्रीरागु महला ३॥
जिस प्रकार पेड़ों पर बैठे और फलों को चुगते हुए पक्षी सुंदर लगते हैं, उसी प्रकार गुरु के प्रति प्रेम के माध्यम से भगवान् पर ध्यान केंद्रित करने से भक्त का जीवन सुंदर हो जाता है।
वह हरि रस का पान करता है और परम आनंद में रहता है माया के लिए इधर-उधर नहीं भटकता है और इस तरह जन्म और मृत्यु के चक्र से बच जाता है।
वह अपने आत्म स्वरूप के अन्दर आवास प्राप्त कर लेता है और हरि-नाम में लीन हो जाता है।॥१॥
हे मेरे मन ! तू गुरु की सेवा करके उनके उपदेशानुसार पालन कर।
यदि तुम गुरु की इच्छानुसार चलोगे, तब तुम रात-दिन ईश्वर के नाम में लीन रहोगे ॥१॥ रहाउ॥
यद्यपि जो लोग जीवन में सुंदर (आरामदायक) दिखते हैं, वह माया रूपी दाना चुगने के लिए उड़कर चारों दिशाओं में जाते रहते हैं भाव वें अधिक से अधिक सांसारिक धन प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भागते रहते हैं।
जितना अधिक वह (ऊपर) उड़ते हैं, उतना अधिक कष्ट सहन करते हैं। वे सदैव दुखों-संतापों में ग्रस्त रहकर जलते एवं विलाप करते हैं।
गुरु के अतिरिक्त उनको परमेश्वर का महल दिखाई नहीं देता, न ही वह अमृत फल को प्राप्त करते हैं। ॥२॥
ब्रह्म का रूप गुरुमुख सदैव हरे-भरे वृक्ष जैसा है। उसको स्वाभाविक ही सत्य परमेश्वर की प्रीत की कृपा प्राप्त होती है।
गुरुमुख व्यक्ति ने भगवान् की स्तुति के दिव्य शब्द में डूबे रहकर माया की तीनों शाखाओं (सत्, रज और तम्) को काट कर विजय प्राप्त कर ली है।
वह मनुष्य ईश्वर के नाम का अमृतमयी फल धारण करता है। ईश्वर स्वयं ही कृपा करके ऐसे गुरु के अनुयायी को इस अमृत फल सेवन करने के लिए आनंद लेने देते हैं ॥३॥
मनमुख ऐसे वृक्ष हैं, जो खड़े-खड़े सूख जाते हैं। उनमें कोई फल और छाया नहीं।
इन अज्ञानी प्राणियों की संगति नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उनका कोई भी घर और गांव नहीं होता।
वे सदैव दुःखी और सुखी होते हैं। उनके पास न तो गुरु का उपदेश और न ही हरि का नाम है ॥४॥
मनुष्य ईश्वर के आदेश अनुसार कर्म करते हैं और अपने पूर्व-जन्म के कर्मों के अनुकूल भटकते फिरते हैं।
गुरमुख ईश्वर के आदेशानुसार उसकी दिव्य दृष्टि का अनुभव करते हैं और वह वही कार्य करते हैं जो आप उनसे कराना चाहते हैं।
ईश्वर के आदेश द्वारा गुरमुखों के हृदय में प्रभु का नाम बस जाता है और उस प्रभु के आदेश द्वारा ही वह सत्य नाम में लीन हो जाते हैं ॥५॥
कुछ ऐसे अधम लोग हैं जो ईश्वर की इच्छा को नहीं समझते और यह अज्ञानी लोग भ्रम में पड़े जन्म-मरण के चक्र में पड़कर भटकते फिरते हैं।
मन के हठ अनुसार वह कर्म करते हैं और नित्य ही कलंकित होते हैं।
उनके अंदर सुख-शांति नहीं आती और वे सत्य-स्वरूप हरि के साथ प्रेम नहीं कर पाते ॥६॥
जो गुरु के साथ प्रीति एवं स्नेह करते हैं। उन गुरमुखों के मुख सुन्दर हो जाते हैं।
वे सत्य की भक्ति में लीन रहते हैं और सत्य के साथ रंगे रहते हैं और परमेश्वर के द्वार पर वे सत्यवादी रूप में सम्मानित होते हैं
उन मनुष्यों का ही जगत् में आगमन स्वीकृत होता है और अपनी समस्त कुल का भी उद्धार कर देते हैं। ॥७ ॥
प्रत्येक प्राणी ईश्वर की दृष्टि अधीन कर्म करता है। कोई भी प्राणी उसकी दृष्टि से ओझल नहीं।
परमात्मा जिस पर जैसी कृपा-दृष्टि करता है, मनुष्य वैसा ही हो जाता है।
हे नानक ! मनुष्य को नाम द्वारा ही यश मिलता है और नाम की उपलब्धि भगवान् की कृपा से होती है ॥८॥३॥२०॥
श्रीरागु महला ३॥
गुरमुख भगवान् के नाम का ध्यान करते हैं किन्तु मनमुख को भगवान् के ध्यान की सूझ नहीं होती।
गुरमुख का मुख हमेशा उज्ज्वल रहता है और भगवान् उसके हृदय में निवास करता है।
उसे सहज ही सुख की उपलब्धि होती है। वह सहज ही नाम में मग्न रहता है। ॥१॥
हे भाई ! तू परमात्मा के अनुचरों का अनुचर बन जा।
गुरु की सेवा से ही गुरु की भक्ति है किन्तु इसकी उपलब्धि कोई दुर्लभ ही प्राप्त करता है ॥१॥ रहाउ॥
जो भाग्यशाली नारी सतगुरु की इच्छानुसार आचरण करती है, वह सदैव सौभाग्यवती होती है।
वह अमर व अचल स्वामी को प्राप्त हो जाती है। न वह मरता है और न ही जाता है।
वह शब्द द्वारा प्रभु से मिलाप करती है, इसलिए उसे वियोग प्राप्त नहीं होता। अपितु अपने स्वामी की गोद में लीन हो जाती है। ॥ २॥
हरि पवित्र व अत्यंत उज्ज्वल है। गुरु के बिना वह प्राप्त नहीं होता।
धर्म-ग्रंथों के अध्ययन द्वारा मनुष्य को ईश्वर का बोध नहीं होता। आडम्बर करने वाले भ्रम-भुलैया में पड़े भटकते रहते हैं।
भगवान् तो सदैव ही गुरु की मति द्वारा प्राप्त हुआ है। गुरमुख की रसना में हरि रस समाया रहता है ॥३॥
गुरु के उपदेश द्वारा मनुष्य माया के मोह को नष्ट कर देता है। वह सहज अवस्था प्राप्त करके भगवान् के प्रेम में मग्न रहता है।