श्रीरागु महला ५ ॥
सतगुरु के मिलन से समस्त दुःख निवृत्त हो गए हैं और सुख स्वरूप परमात्मा हृदय में आ बसा है।
एक ईश्वर के साथ लग्न लगाने से अन्तर्मन में पवित्र ज्ञान-ज्योति का प्रकाश हो गया है।
साधु-संतों से भेंट करके मेरा चेहरा उज्ज्वल हो गया है तथा पूर्व कर्मों के लिखे शुभ लेख के कारण मैंने परमात्मा को प्राप्त कर लिया है।
सृष्टि के स्वामी गोविंद तथा सत्य नाम का यश सदैव करने से मैं निर्मल हो गया हूँ॥१
हे मेरे मन, गुरु के शब्द के माध्यम से तुम्हें शांति मिलेगी।
सतगुरु की सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती, अपितु गुरु की सेवा से अवश्य फल प्राप्त होता है।॥१॥ रहाउ॥
भगवान ने मेरी मनोकामनाएँ पूर्ण कर दी हैं और मुझे नाम रूपी खजाना प्राप्त हो गया है।
अंतर्यामी सदैव तेरे अंग-संग है तथा वह निरपेक्ष कर्ता है, उसकी पहचान कर लो।
गुरु की कृपा से तुम्हारा मुखमंडल तेजस्वी हो जाएगा। नाम जपने से तुम्हें दान देने और स्नान करने का फल मिलेगा।
ऐसे व्यक्ति के अन्तर्मन से काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि सब नष्ट हो जाते हैं तथा अहंकार का त्याग कर देते हैं ॥ २ ॥
जिन्होंने भगवान के नाम-सिमरन का जीवन में लाभार्जित किया है, उनके समस्त कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।
ऐसे जीवों को भगवान स्वयं कृपा करके अपने साथ मिलाता है और उन्हें अपना नाम-सिमरन प्रदान करता है।
जिन पर भगवान कृपालु हुआ है, उनका आवागमन समाप्त हो गया है।
उन्होंने गुरु के उपदेश का मनन करके सत्यस्वरूप परमात्मा का दर प्राप्त किया है॥ ३॥
परमात्मा अपनी दया-दृष्टि से भक्तों की स्वयं विषय-विकारों से रक्षा करता है।
इहलोक एवं परलोक में उनके मुख उज्ज्वल हो जाते हैं, जो पारब्रह्म के गुणों को हृदय में स्मरण करते हैं।
दिन के आठों पहर ही वह ईश्वर के सर्वगुणों का यशोगान करते हैं तथा उसकी अनन्त प्रीत में मग्न हैं।
हे नानक ! मै सुखों के सागर पारब्रह्म पर सदैव बलिहारी जाता हूँ ॥४॥११॥८१॥
श्रीरागु महला ५ ॥
मानव को यदि पूर्ण सतगुरु मिल जाए तो उसे नाम रूपी खजाना मिल जाता है।
हे प्रभु ! तुम मुझ पर अपनी ऐसी कृपा करो कि मैं तुम्हारे नामामृत का जाप करूँ।
मेरे जन्म-मरण का दु:ख दूर हो जाए तो मेरा सहजावस्था में ध्यान लग जाए॥१॥
हे मेरे मन ! तुम प्रभु की शरण प्राप्त करो।
उस एक परमात्मा के नाम का ध्यान करो, क्योंकि उस हरि के बिना अन्य कोई नहीं है ॥१॥ रहाउ ॥
उस परमेश्वर का मूल्यांकन कदापि नहीं किया जा सकता। क्योंकि वह परमात्मा अथाह गुणों का सागर है।
सौभाग्य के कारण तुम सत्संग में मिल जाओ तथा वहाँ से श्रद्धा रूपी मूल्य देकर गुरु से सत्य उपदेश खरीद लो।
उस सुखों के सागर की सेवा कर अर्थात् श्रद्धा सहित उस परमात्मा की आराधना कर, वह राजाओं का भी महाराजा सबसे बड़ा मालिक है॥ २॥
हमें प्रभु के चरण कमलों का सहारा है क्योंकि उसके अतिरिक्त अन्य कोई ठिकाना नहीं।
हे परमेश्वर ! तुम्हारी शक्ति से ही मेरा अस्तित्व है। मुझे आपका ही आश्रय है और आपके सत्य द्वारा ही मैं जीवित हूँ।
हे प्रभु ! सम्मानहीनों का ही तू सम्मान है जिन पर तुम्हारी कृपा हुई है, वह तुझ में ही विलीन हुए हैं।॥३॥
गोविन्द को आठों पहर जपते रहना चाहिए, उसकी आराधना करनी चाहिए।
भगवान अपनी कृपा करके जीवों के प्राणों, तन, धन की विषय-विकारों से रक्षा करता है।
हे नानक ! परमात्मा ने मेरे समस्त पाप दूर कर दिए हैं, चूंकि वह पारब्रह्म क्षमाशील है॥ ४॥ १२॥ ६२॥
श्रीरागु महला ५ ॥
भक्तों की उस परमसत्य परमात्मा से प्रीति लगी है, जो न कभी जन्म लेता है और न ही मरता है।
दूर किए जाने पर भी वह दूर नहीं होता क्योंकि वह परमात्मा कण-कण में विद्यमान है।
वह प्रभु अनाथों के दुःख-दर्द नाश करता है और अपने भक्तों को आदर-सहित मिलता है।
हे मेरी माता ! वह माया रहित प्रभु आश्चर्यजनक स्वरूप वाला है तथा गुरु ने आकर मुझे उससे मिला दिया है॥१॥
हे भाई ! उस परमेश्वर को अपना मित्र बना।