माझ महला ४ ॥
हे मेरे संत मित्रों, आओ हम एक साथ मिलकर हरि-परमेश्वर की महिमा को पढ़े और प्रभु की महिमा का ही चिन्तन करें।
सदैव ही हरि नाम की कथा को सुनना चाहिए
तथा संतों की सभा में मिलकर हरि की महिमा-स्तुति का गायन कर; इस प्रकार भवसागर से पार हुआ जा सकता है ॥१॥
आओ, हे मेरे (संत) मित्रों ! आइए हम ईश्वर मिलन का अनुभव करने के लिए संतों की एक मंडली बनाएं।
मुझे मेरे प्रिय से एक संदेश लाओ।
और जो मुझे उस हरि का मार्गदर्शन कराता है, केवल वही मेरा सच्चा मित्र एवं सखा है ॥२॥
केवल पूर्ण गुरु जो भगवान् का अवतार है, वह भगवान् से अलग होने की मेरी वेदना को पूर्ण रूप से गुरु समझते हैं।
मैं प्रभु का नाम सिमरन किए बिना आध्यात्मिक रूप से जीवित नहीं रह सकता।
हे मेरे पूर्ण गुरदेव जी ! मुझे नाम मंत्र रूपी औषधि दीजिए जो मेरी वेदना का उपाय है एवं जिसके द्वारा इस संसार रूपी भवसागर को तरकर मेरा उद्धार हो जाए॥ ३॥
मैं दीन चातक हूँ और सतगुरु की शरण में आया हूँ!
गुरु ने हमें भगवत् नाम का आशीर्वाद दिया है जो हमारे लिए चातक के समान बारिश की विशेष बूंद की तरह है।
हे भक्त नानक! ईश्वर पानी के सागर की तरह है तथा हम मनुष्य उसमें उपस्थित मछली की तरह हैं एवं हम भगवत् नाम के पानी के बिना आध्यात्मिक रूप से मर जाते हैं। ॥४॥३ ॥
माझ महला ४ ॥
हे मेरे हरि के संतजनों ! हे भाइयों ! मुझे मिलो।
मुझे मेरे हरि प्रभु बारे बताओ, क्योंकि मैं हरि-दर्शनों के लिए उत्सुक हूँ।
हे मुझ पर उपकार करने वाले, इस जगत् के जीवन आधार ! मेरी यह मनोकामना पूरी करो ; ताकि आपके कृपापूर्ण दर्शन से मेरा मन आध्यात्मिक रूप से तृप्त हो जाये। ॥१॥
सत्संग में मिलकर मैं हरि की दिव्य वाणी गाना चाहता हूँ।
भगवान् की स्तुति के शब्द मेरे मन को प्रसन्न (आध्यात्मिक रूप से तृप्त) करने वाले हैं।
हरि का हरि नाम रूपी अमृत मेरे मन को मधुर लगता है; यह अमृत गुरु से मिलकर और उनकी शिक्षाओं का पालन करके ही प्राप्त किया जा सकता है। ॥२॥
भाग्यशाली व्यक्ति हरि की संगति प्राप्त करता है।
किन्तु भाग्यहीन मनुष्य मोह में भ्रमित रहते हैं और कष्टों को सहते हैं।
भाग्य के बिना सत्संगति नहीं मिलती; सत्संग के बिना मनुष्य का मन विकारों की मलिनता से भर जाता है।॥३॥
हे मेरे प्रियतम ! हे जगजीवन ! कृपया मुझे अपनी धन्य दृष्टि प्रदान करें।।
कृपया अपनी दया दृष्टि से मुझे हरि नाम प्रदान करें।
भक्त नानक कहते हैं कि, जिसके मन को हरि-नाम मधुर एवं अच्छा लगने लग गया है; वह गुरु के उपदेश से हरि नाम में लीन रहता है ॥४॥
माझ महला ४ ॥
मुझे गुरु द्वारा प्रदत्त आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ है, और मुझे भगवान् के नाम का आनंद प्राप्त हुआ है।
जब गुरु ने मुझे भगवान् के नाम का अमृत पीने के लिए प्रेरित किया तो मेरा मन भगवान् के नाम के प्रति प्रेम से भर गया।
मैं हरि का हरिनाम अपने मुख से बोलता रहता हूँ; मेरा मन हरि रस पान करने को उत्सुक होता है॥१॥
हे संतजनो ! आओ और मुझे अपने गले से लगाओ।
मेरे प्रियतम प्रभु की कथा सुनाओ।
हे हरि के संतजनो ! मुझे मिलो ; जो मेरे मुंह में गुरुवाणी डालता है, मैं उसे अपना मन अर्पण कर दूँगा ॥२॥
पूर्ण सौभाग्य से ईश्वर ने मुझे अपने संत से मिला दिया है।
पूर्णगुरु ने मेरे मुख में हरि-रस डाल दिया है।
भाग्यहीन मनुष्य को सतगुरु प्राप्त नहीं होता; मनमुख व्यक्ति सदा गर्भ-योनि में प्रवेश करता है ॥३॥
जिस पर दयालु ईश्वर ने दया की है
और उसने अहंकार की समस्त विषैली मलिनता हटा दी है।
हे नानक ! जो लोग गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं, वे अपने अंतःकरण में भगवान् के नाम का धन इकट्ठा करते हैं।॥४॥५॥
माझ महला ४ ॥
मेरा मन ईश्वर की स्तुति गाने और भक्तिपूर्वक ईश्वर के नाम का स्मरण करने को लालायित रहता है।
मैं सत्संग में सम्मिलित होकर हरि नाम को अपने मन में स्थापित कर सकता हूँ।
हे स्वामी, अगम्य एवं अगोचर भगवान् ! आपकी कृपा से सच्चे गुरु से मिलकर मैं हरि नाम का आनंद प्राप्त कर सकता हूँ ॥१॥