श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 93


ਸ੍ਰੀਰਾਗ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਬੇਣੀ ਜੀਉ ਕੀ ॥ ਪਹਰਿਆ ਕੈ ਘਰਿ ਗਾਵਣਾ ॥
स्रीराग बाणी भगत बेणी जीउ की ॥ पहरिआ कै घरि गावणा ॥

श्रीराग, भक्त बैनी जी के शब्द: "पेहरे" की धुन पर गाया जाएगा:

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਰੇ ਨਰ ਗਰਭ ਕੁੰਡਲ ਜਬ ਆਛਤ ਉਰਧ ਧਿਆਨ ਲਿਵ ਲਾਗਾ ॥
रे नर गरभ कुंडल जब आछत उरध धिआन लिव लागा ॥

हे मानव ! जब तुम मातृ-गर्भ में थे तो तुम ईश्वर के स्मरण में लीन थे।

ਮਿਰਤਕ ਪਿੰਡਿ ਪਦ ਮਦ ਨਾ ਅਹਿਨਿਸਿ ਏਕੁ ਅਗਿਆਨ ਸੁ ਨਾਗਾ ॥
मिरतक पिंडि पद मद ना अहिनिसि एकु अगिआन सु नागा ॥

उस समय तुझे पार्थिव देह की गरिमा का अहंकार नहीं था और अज्ञानी एवं पूर्ण विहीन होने के कारण तुम दिन-रात एक हरि की आराधना करते थे।

ਤੇ ਦਿਨ ਸੰਮਲੁ ਕਸਟ ਮਹਾ ਦੁਖ ਅਬ ਚਿਤੁ ਅਧਿਕ ਪਸਾਰਿਆ ॥
ते दिन संमलु कसट महा दुख अब चितु अधिक पसारिआ ॥

कष्ट एवं दुखों के वह दिन स्मरण कर, अब तुमने अपने मन के जाल को सांसारिक मोह माया में अत्याधिक फैला लिया है।

ਗਰਭ ਛੋਡਿ ਮ੍ਰਿਤ ਮੰਡਲ ਆਇਆ ਤਉ ਨਰਹਰਿ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰਿਆ ॥੧॥
गरभ छोडि म्रित मंडल आइआ तउ नरहरि मनहु बिसारिआ ॥१॥

हे मानव ! जब से गर्भ को त्याग कर तू इस नश्वर संसार में आया है, तब से तूने ईश्वर को अपने मन से विस्मृत कर दिया ॥१॥

ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਵਹਿਗਾ ਮੂੜਿਆ ਤੂੰ ਕਵਨ ਕੁਮਤਿ ਭ੍ਰਮਿ ਲਾਗਾ ॥
फिरि पछुतावहिगा मूड़िआ तूं कवन कुमति भ्रमि लागा ॥

हे मूर्ख ! तुम क्यों कुमति वश भ्रमित हो रहे हो, तुम्हें फिर पछताना पड़ेगा।

ਚੇਤਿ ਰਾਮੁ ਨਾਹੀ ਜਮ ਪੁਰਿ ਜਾਹਿਗਾ ਜਨੁ ਬਿਚਰੈ ਅਨਰਾਧਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चेति रामु नाही जम पुरि जाहिगा जनु बिचरै अनराधा ॥१॥ रहाउ ॥

हे मानव ! मूखों की भाँति क्यों भटकते फिरते हो? राम का चिन्तन कर, अन्यथा तुम्हें मृत्यु के भय का सामना करना पड़ेगा। ॥१॥रहाउ॥

ਬਾਲ ਬਿਨੋਦ ਚਿੰਦ ਰਸ ਲਾਗਾ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਮੋਹਿ ਬਿਆਪੈ ॥
बाल बिनोद चिंद रस लागा खिनु खिनु मोहि बिआपै ॥

बचपन में तुम अपने मनपसंद क्रीड़ा-विनोद के स्वाद में लीन रहे0, सांसारिक सुखों के प्रति तेरी आसक्ति क्षण-क्षण बढ़ रही थी।

ਰਸੁ ਮਿਸੁ ਮੇਧੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਬਿਖੁ ਚਾਖੀ ਤਉ ਪੰਚ ਪ੍ਰਗਟ ਸੰਤਾਪੈ ॥
रसु मिसु मेधु अंम्रितु बिखु चाखी तउ पंच प्रगट संतापै ॥

जब तुमने विष रूपी माया के रसों को पवित्र समझ कर भोग किया तो काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार जैसे पांचों विकार तुम्हें व्यथित करने लगे हैं।

ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਛੋਡਿ ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਮਤਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨ ਅਰਾਧਿਆ ॥
जपु तपु संजमु छोडि सुक्रित मति राम नामु न अराधिआ ॥

तूने जप, तप, संयम एवं शुभ कर्मों वाली बुद्धि छोड़ दी है; तू राम नाम की आराधना भी नहीं करता।

ਉਛਲਿਆ ਕਾਮੁ ਕਾਲ ਮਤਿ ਲਾਗੀ ਤਉ ਆਨਿ ਸਕਤਿ ਗਲਿ ਬਾਂਧਿਆ ॥੨॥
उछलिआ कामु काल मति लागी तउ आनि सकति गलि बांधिआ ॥२॥

जब तेरे अन्तर्मन में कामवासना का वेग तरंगें मार रहा था; तुम्हारी बुद्धि पर बुरे विचारों का अंधकार छा गया था तब तुम अपनी कामपिपासा को संतुष्ट करने हेतु स्त्री को लाकर उससे बँध गए ॥ २॥

ਤਰੁਣ ਤੇਜੁ ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਮੁਖੁ ਜੋਹਹਿ ਸਰੁ ਅਪਸਰੁ ਨ ਪਛਾਣਿਆ ॥
तरुण तेजु पर त्रिअ मुखु जोहहि सरु अपसरु न पछाणिआ ॥

यौवन के जोश में तू पराई-नारियों को देखता है और भले-बुरे की पहचान नहीं करता।

ਉਨਮਤ ਕਾਮਿ ਮਹਾ ਬਿਖੁ ਭੂਲੈ ਪਾਪੁ ਪੁੰਨੁ ਨ ਪਛਾਨਿਆ ॥
उनमत कामि महा बिखु भूलै पापु पुंनु न पछानिआ ॥

तुम कामवासना में मग्न रहकर विष रूपी प्रबल माया के मोह में फँसकर भटकता रहते हो ; फिर तू पाप एवं पुण्य की पहचान नहीं कर पाते हो।

ਸੁਤ ਸੰਪਤਿ ਦੇਖਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਗਰਬਿਆ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਤੇ ਖੋਇਆ ॥
सुत संपति देखि इहु मनु गरबिआ रामु रिदै ते खोइआ ॥

अपने पुत्रों एवं सम्पति को देखकर तेरा यह मन अहंकारी हो गया है और अपने हृदय से तूने राम को विस्मृत कर दिया है।

ਅਵਰ ਮਰਤ ਮਾਇਆ ਮਨੁ ਤੋਲੇ ਤਉ ਭਗ ਮੁਖਿ ਜਨਮੁ ਵਿਗੋਇਆ ॥੩॥
अवर मरत माइआ मनु तोले तउ भग मुखि जनमु विगोइआ ॥३॥

हे मानव ! सगे-सम्बन्धियों की मृत्यु पर तू अपने मन में सोचता है कि तुझे उसका कितना धन प्राप्त होगा सौभाग्य से मिले अपने अमूल्य जीवन को तूने व्यर्थ ही खो दिया हैं॥ ३॥

ਪੁੰਡਰ ਕੇਸ ਕੁਸਮ ਤੇ ਧਉਲੇ ਸਪਤ ਪਾਤਾਲ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥
पुंडर केस कुसम ते धउले सपत पाताल की बाणी ॥

वृद्धावस्था में तुम्हारे केश चमेली के फूलों से भी अधिक सफेद हैं और तेरी वाणी इतनी धीमी पड़ गई है, जैसे वह सातवें लोक से आती हो।

ਲੋਚਨ ਸ੍ਰਮਹਿ ਬੁਧਿ ਬਲ ਨਾਠੀ ਤਾ ਕਾਮੁ ਪਵਸਿ ਮਾਧਾਣੀ ॥
लोचन स्रमहि बुधि बल नाठी ता कामु पवसि माधाणी ॥

तेरे नेत्रों से जल बह रहा है; तेरी बुद्धि एवं बल शरीर में से लुप्त हो गए हैं; ऐसी अवस्था में काम तेरे मन में से यूं मंथन करता है, जैसे दूध का मंथन किया जाता है।

ਤਾ ਤੇ ਬਿਖੈ ਭਈ ਮਤਿ ਪਾਵਸਿ ਕਾਇਆ ਕਮਲੁ ਕੁਮਲਾਣਾ ॥
ता ते बिखै भई मति पावसि काइआ कमलु कुमलाणा ॥

इन विकारों के कारण तुम्हारी बुद्धि कलुषित हो गई है और तुम्हारे शरीर ने अपनी शक्ति और कान्ति खो दी है, मानो तुम्हारे शरीर रूपी कमल मुरझा गया हो।

ਅਵਗਤਿ ਬਾਣਿ ਛੋਡਿ ਮ੍ਰਿਤ ਮੰਡਲਿ ਤਉ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤਾਣਾ ॥੪॥
अवगति बाणि छोडि म्रित मंडलि तउ पाछै पछुताणा ॥४॥

तुम अलक्ष्य प्रभु की दिव्य वाणी को छोड़कर नश्वर जगत् के कार्यों में लीन हो रहे हो, तदुपरांत तुम पश्चाताप करोगे ॥४॥

ਨਿਕੁਟੀ ਦੇਹ ਦੇਖਿ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਮਾਨ ਕਰਤ ਨਹੀ ਬੂਝੈ ॥
निकुटी देह देखि धुनि उपजै मान करत नही बूझै ॥

छोटे-छोटे बच्चों (पोते-पोतियों) को देखकर प्यार और गर्व की भावना तो जागती है लेकिन फिर भी यह समझ नहीं आता कि जल्द ही सब कुछ छोड़कर चले जाना होगा।

ਲਾਲਚੁ ਕਰੈ ਜੀਵਨ ਪਦ ਕਾਰਨ ਲੋਚਨ ਕਛੂ ਨ ਸੂਝੈ ॥
लालचु करै जीवन पद कारन लोचन कछू न सूझै ॥

यहाँ तक कि किसी जीव को चाहे नेत्रों से कुछ भी दिखाई नहीं देत फिर भी वह लम्बी आयु की लालच करता है।

ਥਾਕਾ ਤੇਜੁ ਉਡਿਆ ਮਨੁ ਪੰਖੀ ਘਰਿ ਆਂਗਨਿ ਨ ਸੁਖਾਈ ॥
थाका तेजु उडिआ मनु पंखी घरि आंगनि न सुखाई ॥

अंतत: शरीर का बल क्षीण हो जाता है और प्राण पखेरू शरीर रूपी पिंजरे में से उड़ जाते हैं। घर के आंगन में पड़ा मृतक शरीर किसी को अच्छा नहीं लगता।

ਬੇਣੀ ਕਹੈ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਭਗਤਹੁ ਮਰਨ ਮੁਕਤਿ ਕਿਨਿ ਪਾਈ ॥੫॥
बेणी कहै सुनहु रे भगतहु मरन मुकति किनि पाई ॥५॥

भगत वेणी जी कहते हैं, हे भक्तों ! सुनो, मृत्यु के पश्चात किसने मुक्ति प्राप्त की है ॥५॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ॥
सिरीरागु ॥

सिरीरागु॥

ਤੋਹੀ ਮੋਹੀ ਮੋਹੀ ਤੋਹੀ ਅੰਤਰੁ ਕੈਸਾ ॥
तोही मोही मोही तोही अंतरु कैसा ॥

हे प्रभु ! तू ही मैं हूँ और मैं ही तुम हूँ।; तेरे और मेरे बीच कोई अन्तर नहीं है।

ਕਨਕ ਕਟਿਕ ਜਲ ਤਰੰਗ ਜੈਸਾ ॥੧॥
कनक कटिक जल तरंग जैसा ॥१॥

यह अन्तर ऐसा है जैसे स्वर्ण एवं स्वर्ण से बने आभूषण का है; जैसे जल एवं इसकी लहरों में है; वैसे ही प्राणी और ईश्वर है॥ १ ॥

ਜਉ ਪੈ ਹਮ ਨ ਪਾਪ ਕਰੰਤਾ ਅਹੇ ਅਨੰਤਾ ॥
जउ पै हम न पाप करंता अहे अनंता ॥

हे अनंत परमेश्वर ! यदि मैं पाप न करता;

ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਨਾਮੁ ਕੈਸੇ ਹੁੰਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पतित पावन नामु कैसे हुंता ॥१॥ रहाउ ॥

तो तेरा पतितपावन नाम कैसे होता ? ॥१॥ रहाउ॥

ਤੁਮੑ ਜੁ ਨਾਇਕ ਆਛਹੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
तुम जु नाइक आछहु अंतरजामी ॥

आप मेरे स्वामी हैं, अंतर्यामी हैं, हृदयों के अन्वेषक हैं।

ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਜਨੁ ਜਾਨੀਜੈ ਜਨ ਤੇ ਸੁਆਮੀ ॥੨॥
प्रभ ते जनु जानीजै जन ते सुआमी ॥२॥

(किन्तु तथ्य यह है कि)प्रभु से उसके दास की एवं दास से उसके स्वामी की पहचान हो जाती है। ॥ २॥

ਸਰੀਰੁ ਆਰਾਧੈ ਮੋ ਕਉ ਬੀਚਾਰੁ ਦੇਹੂ ॥
सरीरु आराधै मो कउ बीचारु देहू ॥

हे प्रभु ! मुझे यह ज्ञान दीजिए कि जब तक मेरा यह शरीर है, तब तक मैं तेरा नाम-सिमरन करता रहूँ।

ਰਵਿਦਾਸ ਸਮ ਦਲ ਸਮਝਾਵੈ ਕੋਊ ॥੩॥
रविदास सम दल समझावै कोऊ ॥३॥

भक्त रविदास जी का कथन है कि हे प्रभु ! मेरी यही कामना है कि कोई महापुरुष आकर मुझे यह ज्ञान दे जाए कि आप सर्वव्यापी हैं ॥३॥


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
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