इस संसार को मोह-तृष्णा की अग्नि में जलता देखकर जो जिज्ञासु प्राणी भागकर सतगुरु की शरण लेते हैं।
सतगुरु ने उनकें हृदय में शाश्वत प्रभु के नाम को दृढ़ता से स्थिर किया हैं और उन्हें आत्म-संयम द्वारा सदैव ही सत्य प्रभु के नाम में रहने का जीवन निर्वाह करने का ढ़ंग सिखाया।
सच्चा गुरु सत्य की नाव है, shabad के शब्द में, हम भयानक दुनिया समुद्र पार। । 6 । । ।
नाम स्मिरन से विमुख प्राणी चौरासी लाख योनियों के अन्दर भटकते रहते हैं और गुरु के बिना उन्हें मुक्ति नहीं मिलती।
पढ़ने और अध्ययन, पंडितों और चुप संतों थके हुए हो गए हैं, लेकिन द्वंद्व के प्यार से जुड़ी है, वे अपने सम्मान खो दिया है।
केवल सतगुरु ने ही उपदेश प्रदान किया है कि सत्य ईश्वर के अतिरिक्त जगत् में मोक्ष का अन्य कोई साधन नहीं ॥७॥
जिन्हें सत्य प्रभु ने अपने नाम-सिमरन में लगाया था, वहीं सत्य प्रभु के नाम सिमरन में लगे थे। फिर वे सदैव निर्मल कर्म करते रहे।
उन्होंने ईश्वर को अपने भीतर निवास करते हुए महसूस किया है और वे हमेशा उनकी उपस्थिति में रहते हैं।
हे नानक ! भक्तजन सदैव सुखी रहते हैं। वे सत्य प्रभु के नाम में समा जाते हैं॥८॥१७॥८॥२५॥
श्रीरागु महला ५ ॥
यदि किसी व्यक्ति पर भारी विपत्ति आ जाए, उसे बचाने के लिए कोई उसकी मदद न करे,
उसे मारने के लिए उसके दुश्मन उसके पीछे फिरते हों, यदि उसके रिश्तेदार भी उसका साथ छोड़कर भाग गए हों,
उसका हर प्रकार का सहारा खत्म हो गया हो।
यदि ऐसी विपत्ति के समय में भी यदि वह मनुष्य भगवान् को याद रखता है तो उसको गर्म हवा भी नहीं छू सकती ॥१॥
भगवान् निर्बलों का बल है।
वह न आता है, न जाता है; वह शाश्वत और स्थाई है। गुरु के शब्द के द्वारा उसे सत्य के रूप में जाना जाता है। ||१||विराम||
यदि कोई मनुष्य अति दुर्बल है और भूख मिटाने के लिए भोजन का अभाव है और तन ढांपने के लिए वस्त्र भी नहीं,
यदि उसके पास कोई धन-राशि नहीं और न ही उसको कोई दिलासा देने वाला है।
यदि कोई भी उसका मनोरथ व इच्छाएँ पूर्ण न करे और उसका कोई भी कार्य सम्पूर्ण न हो।
यदि वह अपने हृदय में उस परब्रह्म का स्मरण कर ले तो उसे अनन्त साम्राज्य (अनगिनत धन) का आशीर्वाद मिल सकता है।
जिसे अधिक चिन्ता लगी हो, उसकें शरीर को बहुत सारे रोग लगे हों।
जो गृहस्थ में पारिवारिक दुःखों-सुखों में घिरा हुआ है और किसी समय हर्ष एवं किसी समय शोक अनुभव करता हो
और चारों दिशाओं में भटकता फिरता है और एक क्षण भर के लिए भी बैठ अथवा निद्रा ग्रहण नहीं कर सकता।
यदि वह पारब्रह्म परमेश्वर की आराधना करे तो उसका तन-मन शीतल हो जाते हैं ॥३॥
जिस प्राणी को काम-क्रोध-मोह आदि ने अपने वश में कर रखा है और जो धन-दौलत के निरन्तर लोभ में कृपण (कंजूस) बना रहता है,
जिसने सभी पाप एवं अन्य कुकर्म किए हों, दानव-प्रवृत्ति के कारण निर्दयता पूर्वक जिसने जीव-हत्या की हो,
जिसने कभी कोई धर्म-पुस्तक उपदेश अथवा ईश्वर–प्रेम की कविता तक न सुनी हो,
यदि क्षण भर के लिए भी वह मन प्रभु का नाम सिमरन कर ले तो इस भवसागर से पार हो जाता है। ॥४॥
जीव चाहे चारों वेद, छः शास्त्र और समस्त स्मृतियाँ कण्ठाग्न हों;
वह चाहे तपस्वी, महान आत्म-अनुशासित योगी हो सकता है; और तीर्थस्थलों के पवित्र तीर्थस्थलों की यात्रा कर सकते हैं,
और चाहे वह छः संस्कारों द्वारा कर्मों को करता हो और सुबह एवं शाम स्नान करके उपासना करता हो,
फिर भी यदि उसकी प्रीति परमात्मा के रंग में नहीं रंगी गई तो वह निश्चित ही नरक को जाएगा ॥५॥
चाहे मनुष्य के पास राज्याधिकार, धन-सम्पत्ति, शासन एवं अन्य असंख्य स्वादिष्ट भोग हो,
उसके पास मनोहर व सुन्दर उद्यान हो और जिसके आदेश की सब पालना करते हों,
अथवा रंग तमाशों के विषय विलास में आसक्त व्यक्ति हों,
फिर भी यदि वह भगवान् का सिमरन नहीं करता, तो वह सर्प-योनि में जन्म लेता है ॥६॥
मनुष्य यदि धनवान, सदाचारी, निर्मल व्यवहारी तथा सर्वप्रिय हो,
उसे माता-पिता, सुत-भाई एवं अन्य स्वजनों से अनुराग भी हों,
उसके पास शस्त्र हो, सेना हो और असंख्य लोग उसकी चापलूसी करते हों,