ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
सिरीरागु महला पहला १ घरु १ ॥
यदि मेरे लिए मोती व रत्न जड़ित भवन निर्मित हो जाएँ।
उन भवनों पर कस्तूरी, केसर, सुगंधित काष्ठ व चंदन की लकड़ी आदि के लेपन करके मन में उत्साह पैदा हो जाए।
कहीं ऐसा न हो कि इन्हें देखकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ। (इसलिए मैं ऐसे भ्रमित करने वाले पदार्थों की ओर देखता भी नहीं हूँ)॥ १॥
परमात्मा अथवा उसके नाम सिमरन के बिना जीव तृष्णग्नि में जल जाता है।
मैंने अपने अराध्य इष्ट से पूछ कर देख लिया है कि निरंकार के अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ व स्थान जीव की मुक्ति के योग्य नहीं है॥ १॥ रहाउ ॥
धरती में हीरे जड़े हुए हों, मेरे घर में पड़ा पलंघ लाल-रत्न से सुशोभित हो।
घर में मन को मोह लेने वाली सुन्दर स्त्रियों का मुख मणियों की भाँति प्रकाशमान हो और वे प्रेम-भाव का आनंद प्रकट करती हों।
कहीं ऐसा न हो कि इन्हें देखकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ। (इसलिए मैं ऐसे भ्रमित करने वाले पदार्थों की ओर देखता भी नहीं हूँ) ॥२॥
सिद्ध होकर सिद्धियाँ भी लगाऊं और ऋद्धियों भी कहने मात्र से मेरे पास आ जाएँ।
स्वेच्छा से अलोक व आलोक हो जाऊँ, जिससे लोगों के मन में मेरे प्रति श्रद्धा पैदा हो।
कहीं ऐसा न हो कि इन शक्तियों से भ्रमित होकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ। इसलिए मैं ऐसे भ्रमित करने वाले पदार्थों की ओर देखता भी नहीं हूँ॥ ३॥
बादशाह होकर सेना एकत्रित कर लूं और सिंहासन पर विराजमान हो जाऊँ
वहाँ बैठ कर जो चाहूँ आदेश करके प्राप्त कर लूं, सतगुरु जी कहते हैं कि यह सब कुछ व्यर्थ है।
कहीं ऐसा न हो कि इन शक्तियों से भ्रमित होकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ॥ ४ ॥ १॥
सिरीरागु महला १ ॥
हे निरंकार ! निःसंदेह मेरी आयु करोड़ों युगों तक हो जाए (समस्त पदार्थों को छोड़कर) पवन ही मेरा खाना-पीना हो।
जहाँ पर चंद्रमा व सूर्य दोनों का प्रवेश न हो, ऐसी गुफा में बैठ कर मैं तुम्हारा चिन्तन करूँ और स्वप्न में भी निद्रा का स्थान न हो।
(ऐसी कठिन तपस्या करने के उपरान्त भी) मैं तेरा मूल्यांकन नहीं कर सकता, तेरे नाम का मैं कितना महान् कथन करूं। अर्थात् तेरे नाम की महिमा का व्याख्यान करना कठिन है ॥ १ ॥
सत्यस्वरूप निरंकार सदा अपनी महिमा में ही स्थित है।
शास्त्रों से अध्ययन करके ही कोई उसके गुणों को कथन करता है, किन्तु जिस पर निरंकार की कृपा होती है उसी में (उसके गुण श्रवण व कथन करने की) जिज्ञासा उत्पन्न होती है॥ १॥ रहाउ॥
यदि मैं पुनः पुनः कष्ट देकर काट दिया जाऊँ तथा चक्की में डाल कर पीस दिया जाऊँ।
अग्नि में मेरे शरीर को जला दिया जाए अथवा शरीर को भस्म लगा कर रखूँ
तो भी मैं तेरा मूल्यांकन नहीं कर सकता, तेरे नाम का मैं कितना महान् कथन करूँ, अर्थात् तेरे नाम की महिमा का व्याख्यान करना कठिन है ॥ २॥
(सिद्धियों के बल पर) मैं पक्षी बनकर आकाश में भ्रमण करूं और इतना ऊँचा चला जाऊँ कि सैंकड़ों ही आसमान छू लूं।
ऐसा सूक्ष्म हो जाऊँ कि किसी की दृष्टि में न आऊं और न कुछ पीऊं न कुछ खाऊं।
तो भी मैं तेरा मूल्यांकन नहीं कर सकता, तेरे नाम को मैं कितना महान् कथन करूँ, अर्थात् तेरे नाम की महिमा का व्याख्यान करना कठिन है ॥ ३॥
-फिर भी, मैं आपका मूल्य नहीं आंक सका। मैं आपके नाम की महानता का वर्णन कैसे करूँ? ||४||२||
सिरीरागु महला १ ॥