हे गुरुदेव ! आपकी प्रसन्नता से ही साधु-संगति एवं नाम-सिमरन का कठिन परिश्रम किया जा सकता है।
सृष्टि के समस्त कार्य सच्चे पातशाह के अधीन हैं, वह स्वयं ही सब कुछ करने एवं करवाने वाला है।
मैं उस सतगुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जो सभी की कामनाएँ पूर्ण करने वाला है॥ ३॥
हे मेरे मित्र। मुझे वह परमात्मा ही मात्र अपना सज्जन दिखाई देता है और केवल एक ही मेरा भ्राता तथा मित्र है।
समूचे ब्रह्माण्ड की सारी सामग्री एक परमेश्वर की ही है और केवल उस हरि ने ही प्रत्येक वस्तु को नियमबद्ध किया है।
एक परमेश्वर में ही मेरा मन लीन हो गया, तभी मेरा मन निश्चल हुआ है।
हे नानक ! सत्य नाम ही उसके मन का आहार है, सत्य नाम उसकी पोशाक और सत्य नाम को ही उसने अपना आश्रय बनाया है ॥ ४ ॥ ५॥ ७५ ॥
श्रीरागु महला ५ ॥
एक परमेश्वर की प्राप्ति से जीवन की समस्त वस्तुएँ (आनंद-उल्लास) प्राप्त हो जाती हैं।
यदि प्रभु का नाम-स्मरण किया जाए तो अमूल्य मनुष्य जीवन भी फलदायक हो जाता है।
जिसके मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य लिखा हुआ हो, वह गुरु की कृपा-दृष्टि से परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है॥१॥
हे मेरे मन ! एक प्रभु के स्मरण में अपना चित्त लगा।
एक परमात्मा के अलावा अन्य कर्म-धर्म समस्त विपदा ही हैं। धन-दौलत की लालसा समस्त मिथ्या है॥ १॥ रहाउ॥
यदि सतगुरु की कृपा-दृष्टि हो जाए तो लाखों साम्राज्य (उच्च पद) एवं ऐश्वर्य-वैभव के आनंद चरणों में बिखर जाएँ।
यदि सतगुरु एक क्षण-मात्र के लिए भी मुझे परमेश्वर के नाम की अनुकंपा (कृपा) कर दें तो मेरी आत्मा एवं देहि शीतल हो जाएँगे।
जिस प्राणी के भाग्य में पूर्व-कर्मों का भाग्य-फल लिखा हुआ हो, वही सतगुरु के चरणों की शरण लेता है॥२॥
वह मुहूर्त एवं घड़ी भी फलदायक है, जब सत्य स्वरूप परमेश्वर से प्रेम किया जाता है।
जिस प्राणी को ईश्वर के नाम का आधार प्राप्त है, उसे कोई भी दुःख-दर्द उत्पन्न नहीं होता।
जिस प्राणी को गुरु ने भुजा से पकड़कर उबारा है, वह भवसागर से पार हो जाता है॥३॥
वह स्थान बहुत पावन एवं शोभायमान है, जहाँ प्रभु के नाम का यशगान (सत्संग) होता है।
उस व्यक्ति को ही प्रभु के दरबार का आश्रय मिलता है, जिसको पूर्ण गुरुदेव की प्राप्ति हो गई है।
हे नानक ! गुरुमुख प्राणी ने अपना घर वहाँ बनाया है, जहाँ न मृत्यु है, न जन्म है और न ही बुढ़ापा है ॥४॥६॥७६॥
श्रीरागु महला ५ ॥
हे जीव ! उस भगवान का ध्यान कर, जो राजाओं और महाराजाओं का भी बादशाह है।
उस भगवान की मन में आशा रख, जिस पर सब को भरोसा है।
अपनी समस्त चालाकियाँ त्याग कर गुरु के चरणों में शरण प्राप्त कर ॥१॥
हे मेरे मन ! सुख और शांति से प्रभु के नाम का अभ्यास कर।
आठों पहर प्रभु का ध्यान करो तथा गोविन्द-हरि की महिमा नित्य ही गायन करो ॥१॥ रहाउ॥
हे मेरे मन ! जिस परमात्मा के स्वरूप जितना बड़ा अन्य कोई नहीं है, तुम उस परमात्मा की शरण में रहो।
उसकी आराधना करने से बहुत आत्मिक सुख मिलता है तथा पीड़ा एवं दुःख का बिल्कुल नाश हो जाता है।
इसलिए तू सदैव उस परब्रह्म की सेवा अर्थात् यशोगान में रत रहा कर॥२॥
साधु-संतों की संगति करने से मन पवित्र हो जाता है और मृत्यु का फँदा कट जाता है।
वह परमात्मा सुखों का दाता तथा भय नाश करने वाला है, इसलिए उसके समक्ष वंदना करो।
वह कृपालु तथा दयालु परमात्मा जिस पर अपनी कृपा-दृष्टि करता है, उसके समस्त कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।॥३॥
उस प्रभु को विशाल से भी विशाल कहा जाता है और उसका निवास ऊँचे से भी ऊँचा सर्वोच्च है।
वह वर्ण-भेद जाति-चिन्ह आदि से रहित है और मैं उसके मूल्य का वर्णन नहीं कर सकता।
हे सत्य परमेश्वर ! नानक पर अपनी दया-दृष्टि करके उसे अपना सत्य-स्वरूप नाम प्रदान करो ॥ ४॥ ७ ॥ ७७ ॥
श्रीरागु महला ५ ॥
जो व्यक्ति प्रभु का नाम-सिमरन करता है, वह इहलोक में सुखी रहता है तथा उसका मुख प्रभु की सभा में उज्ज्वल होता है
किन्तु प्रभु का नाम पूर्ण गुरु द्वारा ही प्राप्त होता है, वह समस्त लोकों में प्रसिद्ध हो जाता है।
वह सत्य परमेश्वर साध संगत के गृह में निवास करता है॥ १॥