जब मैं अपने मन में प्रभु का चिंतन करता हूँ, तब मेरे समस्त दुःख निवृत हो जाते हैं।
मेरी चिंता का रोग व अहंकार का दर्द दूर हो गए हैं, क्योंकि प्रभु स्वयं ही मेरा पालन-पोषण करते हैं ॥२॥
बालक की भाँति मैं भगवान् से सबकुछ माँगता रहता हूँ।
मुझे जो चाहिए वह देने से भगवान् के अथाह भण्डार कम नहीं पड़ते।
भगवान् विनम्र लोगों के प्रति दयालु हैं और इस संसार के पालनकर्ता हैं, मैं हमेशा उनकी कृपा की भीख मांगने के लिए आदरपूर्वक उनके सामने झुकता हूँ।॥३॥
मैं अपने पूर्ण सतगुरु पर बलिहारी जाता हूँ,
जिसने मेरे माया के समस्त बन्धनों को काट दिया हैं।
हे नानक, जिनके हृदय में गुरु ने प्रभु का नाम बसाकर शुद्ध किया है; वें ईश्वर के प्रेम से ओतप्रोत होकर आध्यात्मिक आनंद से सराबोर हो जाते हैं। ॥४॥८॥१५॥
माझ महला, पांचवे गुरु ५ ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु! हे जगत् के पालनकर्ता! हे दयालु! हे आनंद के स्रोत!
हे मेरे गोविन्द ! हे अत्यंत गहन! हे पृथ्वी के अनंत स्वामी!
हे सर्वोच्च और अनंत प्रभु! मैं आध्यात्मिक रूप से केवल आपके नाम का सदैव श्रद्धापूर्वक स्मरण करके ही जीवित रहता हूँ।॥१॥
हे दुःखहर्ता ! हे अमूल्य गुणों का भण्डार!
तू निर्भय, निर्वैर, असीम एवं अतुलनीय है।
हे अकाल मूर्ति ! आप अयोनि एवं स्वयंभू है, और मन में आपका सिमरन करने से बड़ी शांति प्राप्त होती है।॥२॥
वह जगत् का पालनहार एवं आनंद का स्रोत भगवान् सदैव अपने जीवों के साथ रहता है।
ईश्वर उच्च स्तरीय एवं निम्न स्तरीय सभी प्राणियों का पालन-पोषण करता है।
नाम का अमृत मन को माया से तृप्त करता है, मैं गुरु की शिक्षाओं का पालन करके नाम के अमृत का सेवन करता रहता हूँ। ॥३॥
हे प्रियतम प्रभु ! मैं दुःख और सुख में आपका ही प्रेमपूर्वक स्मरण करता हूँ।
यह उत्कृष्ट बुद्धि मैंने अपने गुरु से प्राप्त की है।
हे ठाकुर जी ! आप ही नानक का सहारा हो। मैं हरि के प्रेम में मग्न होकर भवसागर से पार हो जाऊँगा ॥४॥९॥१६॥
माझ महला, पांचवे गुरु ५ ॥
वह समय बड़ा शुभ है, जब मुझे मेरे सतगुरु मिले।
गुरु से मिलना इतना फलदायी रहा कि उन्हें अपनी आँखों से देखते ही मुझे ऐसा लगा मानो मैं संसार रूपी भवसागर से पार हो गया हूँ।
धन्य हैं वह मुहूर्त, पल और घड़ी एवं वह संयोग भी शुभ है, जिसमें मेरा सतगुरु से मिलन हुआ है॥ १॥
भगवान् को स्मरण करने का प्रयास करते-करते मेरा मन विकारों से पवित्र हो गया है।
हरिप्रभु के मार्ग पर चलते हुए धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करने से मेरे सारे भ्रम दूर हो गए हैं।
सतगुरु ने मुझे भगवान् का नाम, गुणों का खजाना बताया है, और उनका प्रेमपूर्वक स्मरण करने से मेरे सभी कष्ट दूर हो गए हैं।॥२॥
हे प्रभु ! मैं सर्वत्र आपकी स्तुति के दिव्य वचन सुन रहा हूँ।
आप स्वयं अपनी रचना के माध्यम से दिव्य शब्दों का उच्चारण और व्याख्या कर रहे हैं।
गुरु ने कहा है कि समस्त स्थानों पर एक प्रभु ही है और एक प्रभु ही होगा और प्रभु जैसा जगत् में अन्य कोई नहीं होगा।॥ ३॥
मैंने हरि-रस रूपी अमृत गुरु से पान किया है।
मैं भगवान् के नाम के स्मरण में इतना लीन हूँ मानो यह मेरा भोजन और वस्त्र बन गया हो।
हे नानक ! नाम में मग्न रहना ही मेरे लिए आनंद, खेल एवं मनोरंजन है और हाँ, भगवान् के नाम में लीन रहना मेरे जीवन का एकमात्र आनंद बन गया है।॥४॥१०॥१७॥
माझ महला, पांचवे गुरु ५ ॥
मैं समस्त संतजनों से मात्र एक ही वस्तु माँगता हूँ, यह कुछ और नहीं केवल आपका नाम है।
मैं उनसे प्रार्थना करता हूँ ताकि मैं अपने अहंकार का त्याग कर सकूँ।
हे प्रभु ! मैं अपने आप को सदैव आपके संतों को समर्पित करता हूँ, कृपया मुझे संतों की चरण-धूलि(संतों की सबसे विनम्र सेवा) प्रदान कीजिए॥१॥
हे प्रभु ! आप सभी प्राणियों के निर्माता हैं, आप सभी में व्याप्त हैं और आप सभी के लिए कल्याणकारी हैं।
आप सर्वशक्तिमान हो और आप ही सदैव सुख देने वाले हो।
हे प्रभु ! सभी जीव तुझसे ही मनोकामनाएँ प्राप्त करते हैं। मैं भी आपसे विनती करता हूँ, कृपया मुझे अपने नाम से आशीर्वाद दें और मेरे मानव जीवन को सार्थक बनाएं।॥२॥
हे प्रभु ! जिन लोगों ने आपकी कृपा दृष्टि से अपनी ज्ञानेन्द्रियों को विकारों से शुद्ध कर लिया है।
उन्होंने मन रूपी अजेय किले पर विजय प्राप्त की है।
हे प्रभु, आप सभी प्राणियों के निर्माता हैं, आप सभी में व्याप्त हैं और आप सभी के लिए कल्याणकारी हैं, और कोई भी आपके जैसा अन्य कोई शूरवीर नहीं। ॥३॥