जो प्राणी जीवन के उद्देश्य पर विचार करता है, वही परमात्मा का सच्चा भक्त होता है।
प्रभु सृष्टि के कण-कण में निवास करते हैं किन्तु उनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
यदि मनुष्य प्रभु का मूल्य जान भी ले, तो भी वह वर्णन नहीं कर सकता।
कुछ धार्मिक रस्में और नियमों के बारे में सोचते हैं,
लेकिन समझने के बिना, वे दूसरी तरफ कैसे पार कर सकते हैं?
जीवन के परम उद्देश्य को समझे बिना वह विकारों से मुक्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?
हे भाई, ईश्वर में सच्ची आस्था को प्रार्थना में नमन करो और मन को नाम-सिमरन में लगाने का जीवन-मनोरथ बनाओ ।
हे नानक ! प्राणी वही कर्म करता है, जो उसके पूर्व-जन्म के कर्म-फलानुसार है। अन्य कुछ नहीं किया जा सकता॥१॥
श्लोक महला ३ ॥
गुरु की संगति का सच्चा लाभ (शारीरिक रूप से) निकट अथवा दूर रहने से प्राप्त नहीं होता।
हे नानक ! भगवान् के नाम के अतिरिक्त कुछ भी अटल नहीं रह सकता। इसके अतिरिक्त अन्य पढ़-पढ़कर मनुष्य अंत में दुःखी ही होते हैं।
पउड़ी ॥
सृष्टि में सात द्वीप, सात समुद्र, नौ खण्ड, चार वेद एवं अठारह पुराण हैं।
प्रभु ! आप इन सभी में विद्यमान हो और सबको प्रिय हो।
हे ब्रह्मांड के परमेश्वर ! समस्त जीव-जन्तु सदैव आपका ही सिमरन करते हैं।
जो गुरमुख हरि की वंदना करते हैं एवं गुरु जी की शिक्षाओं का पालन करते हैं , मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ।
भगवान् की महिमा गाना श्रेष्ठ है, क्योंकि वह बिना पूछे ही सबकी कामनाएँ पूरी करता है ॥६॥
श्लोक महला ३ ॥
क़लम और स्याही मंगवाने की क्या आवश्यकता है? उस प्रभु का नाम अपने हृदय में ही लिखो।
हृदय में लिख लेने से तुम सदैव प्रभु के प्रेम में लीन रहोगे और कभी भी उस परमेश्वर से अलग नहीं होगे।
क़लम और स्याही द्वारा लिखित काग़ज़ नष्ट हो जाएगा।
हे नानक ! प्राणी वही कर्म करता है, जो उसके पूर्व-जन्म के कर्म-फलानुसार है। अन्य कुछ नहीं किया जा सकता॥१॥
महला ३ ॥
जो वस्तु दृश्यमान है, वह कभी अनंतकाल तक प्राणी का साथ नहीं देती। चाहे तुम परख कर देख सकते हो।
अतः सतगुरु ने दृढ़तापूर्वक सदैव इस सत्य की प्रेरणा दी है कि हमें सदैव शाश्वत ईश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए।
हे नानक ! भगवान् के नाम के अतिरिक्त कुछ भी अटल नहीं रह सकता। इसके अतिरिक्त अन्य पढ़-पढ़कर मनुष्य अंत में दुःखी ही होते हैं।
पउड़ी ॥
हे प्रभु ! अन्दर-बाहर अर्थात् समस्त सृष्टि में आप ही उपस्थित है। अतः इस रहस्य को आप ही जानते हो।
हे मेरे मन ! मनुष्य जो कुछ भी करता है, उसको परमात्मा जानता है। अतः तू सदा ईश्वर का चिन्तन कर।
जो प्राणी पाप करता है, केवल वही भय में रहता है। परन्तु धर्म करने वाला नित्य प्रसन्नचित्त रहता है।
हे भगवान् ! आप सत्य-स्वरूप हो, आपका न्याय भी सत्य है। अतः (प्रभु की शरण में) हमें किस बात का भय है।
भगवान् की महिमा गाना श्रेष्ठ है, क्योंकि वह बिना पूछे ही सबकी कामनाएँ पूरी करता है ॥६॥
श्लोक महला ३ ॥
स्याही सहित क़लम भी जल जाए, लिखा हुआ काग़ज़ भी जल जाए,
यहाँ तक कि स्वयं लिखने वाला वो लेखक भी जल कर मर सकताहै, जिसने द्वैत-भाव(माया) के प्रति प्रेम लिखा हो।
हे नानक ! प्राणी वही कर्म करता है, जो उसके पूर्व-जन्म के कर्म-फलानुसार है। अन्य कुछ नहीं किया जा सकता॥१॥
महला ३ ॥
भगवान् के नाम के प्रति प्रेम को छोड़कर अन्य कुछ पढ़ना एवं बोलना मिथ्या एवं व्यर्थ है। यह माया के लिए प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है।
हे नानक ! भगवान् के नाम के अतिरिक्त कुछ भी अटल नहीं रह सकता। इसके अतिरिक्त अन्य पढ़-पढ़कर मनुष्य अंत में दुःखी ही होते हैं।
पउड़ी ॥
भगवान् की महिमा महान् है और भगवान् का भजन करना ही जीव हेतु उत्तम कर्म है।
जिस ईश्वर का न्याय धर्म पर आधारित है, उसकी महिमा गाना मनुष्य के लिए सबसे श्रेष्ठ कर्म है।
भगवान् की महिमा महान् है, ईश्वर की महिमा का गुणगान करना सर्वोत्तम कर्म है, क्योंकि यही मनुष्य के जीवन का प्रतिफल व उद्देश्य है।
भगवान् की महिमा गाना अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि वह निंदक की बात नहीं सुनता।
भगवान् की महिमा गाना श्रेष्ठ है, क्योंकि वह बिना पूछे ही सबकी कामनाएँ पूरी करता है ॥६॥
श्लोक महला ३ ॥
वें सभी, जो अपनी सांसारिक संपत्ति के अहंकार में लिप्त रहते हैं, आध्यात्मिक पतन से गुजरते हैं क्योंकि सांसारिक संपत्ति मृत्यु के बाद किसी के साथ नहीं जाती है।