श्री गुरु ग्रंथ साहिब

पृष्ठ - 8


ਸਰਮ ਖੰਡ ਕੀ ਬਾਣੀ ਰੂਪੁ ॥
सरम खंड की बाणी रूपु ॥

(श्रम खंड में परमेश्वर की भक्ति को प्रमुख माना गया है) परमेश्वर की भक्ति करने का उद्यम करने वाले संतजनों की वाणी मधुर होती है।

ਤਿਥੈ ਘਾੜਤਿ ਘੜੀਐ ਬਹੁਤੁ ਅਨੂਪੁ ॥
तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥

इस अवस्था में (श्रम खण्ड में) प्रबुद्ध मन द्वारा अद्वितीय सुन्दरता वाले स्वरूप की रचना होती है।

ਤਾ ਕੀਆ ਗਲਾ ਕਥੀਆ ਨਾ ਜਾਹਿ ॥
ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥

इन बातों का वर्णन नहीं किया जा सकता।

ਜੇ ਕੋ ਕਹੈ ਪਿਛੈ ਪਛੁਤਾਇ ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥

जो इनके विषय में बोलने का प्रयास करेगा, उसे अपने प्रयास पर पछताना पड़ेगा।

ਤਿਥੈ ਘੜੀਐ ਸੁਰਤਿ ਮਤਿ ਮਨਿ ਬੁਧਿ ॥
तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥

वहाँ पर वेद-श्रुति, ज्ञान, मन और बुद्धि गढ़े जाते हैं।

ਤਿਥੈ ਘੜੀਐ ਸੁਰਾ ਸਿਧਾ ਕੀ ਸੁਧਿ ॥੩੬॥
तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥

वहाँ पर दिव्य बुद्धि वाले देवों व सिद्ध अवस्था की प्राप्ति वाली सूझ गढ़ी जाती है॥ ३६॥

ਕਰਮ ਖੰਡ ਕੀ ਬਾਣੀ ਜੋਰੁ ॥
करम खंड की बाणी जोरु ॥

जिन उपासकों पर परमेश्वर की कृपा हुई उनकी वाणी शक्तिवान हो जाती है।

ਤਿਥੈ ਹੋਰੁ ਨ ਕੋਈ ਹੋਰੁ ॥
तिथै होरु न कोई होरु ॥

जहाँ पर ये उपासक विद्यमान होते हैं वहाँ पर कोई और नहीं होता।

ਤਿਥੈ ਜੋਧ ਮਹਾਬਲ ਸੂਰ ॥
तिथै जोध महाबल सूर ॥

उन उपासकों में देह को जीतने वाले योद्धा, इन्द्रियों को जीतने वाला महाबली तथा शूरवीर होते हैं।

ਤਿਨ ਮਹਿ ਰਾਮੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰ ॥
तिन महि रामु रहिआ भरपूर ॥

उन में प्रभु राम परिपूर्ण रहते हैं।

ਤਿਥੈ ਸੀਤੋ ਸੀਤਾ ਮਹਿਮਾ ਮਾਹਿ ॥
तिथै सीतो सीता महिमा माहि ॥

ऐसी अवस्था में उपासक पूरी तरह से परमेश्वर की स्तुति में तल्लीन रहते हैं।

ਤਾ ਕੇ ਰੂਪ ਨ ਕਥਨੇ ਜਾਹਿ ॥
ता के रूप न कथने जाहि ॥

ऐसा स्वरूप प्राप्त करने वालों के गुण कथन नहीं किए जा सकते।

ਨਾ ਓਹਿ ਮਰਹਿ ਨ ਠਾਗੇ ਜਾਹਿ ॥
ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ॥

उन लोगों को न तो मृत्यु आती है, न ही धोखा,

ਜਿਨ ਕੈ ਰਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
जिन कै रामु वसै मन माहि ॥

जिनके मन में प्रभु वास करते हैं।

ਤਿਥੈ ਭਗਤ ਵਸਹਿ ਕੇ ਲੋਅ ॥
तिथै भगत वसहि के लोअ ॥

वहाँ कई लोकों के भक्त निवास करते हैं।

ਕਰਹਿ ਅਨੰਦੁ ਸਚਾ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥
करहि अनंदु सचा मनि सोइ ॥

जिनके हृदय में सत्यस्वरूप निरंकार वास करता है, वे आनंद प्राप्त करते हैं।

ਸਚ ਖੰਡਿ ਵਸੈ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
सच खंडि वसै निरंकारु ॥

सत्य धारण करने वालों के हृदय (सचखण्ड) में वह निरंकार निवास करता है; अर्थात् वैकुण्ठ लोक, जहाँ सद्गुणी व्यक्तियों का वास हैं), में वह सर्गुण स्वरूप परमात्मा रहता है।

ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲ ॥
करि करि वेखै नदरि निहाल ॥

यह सृजनहार परमात्मा अपनी सृजना को रच-रचकर कृपा-दृष्टि से देखता है अर्थात् उसका पोषण करता है।

ਤਿਥੈ ਖੰਡ ਮੰਡਲ ਵਰਭੰਡ ॥
तिथै खंड मंडल वरभंड ॥

उस सचखण्ड में अनन्त ही खण्ड, मण्डल व ब्रह्माण्ड है।

ਜੇ ਕੋ ਕਥੈ ਤ ਅੰਤ ਨ ਅੰਤ ॥
जे को कथै त अंत न अंत ॥

यदि कोई उसके अन्त को कथन करे तो अन्त नहीं पा सकता, क्योंकि वह असीम है।

ਤਿਥੈ ਲੋਅ ਲੋਅ ਆਕਾਰ ॥
तिथै लोअ लोअ आकार ॥

वहाँ अनेकानेक लोक विद्यमान है और उनमें रहने वालों के अस्तित्व भी अनेक हैं।

ਜਿਵ ਜਿਵ ਹੁਕਮੁ ਤਿਵੈ ਤਿਵ ਕਾਰ ॥
जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार ॥

फिर जिस तरह वह सर्वशक्तिमान परमात्मा आदेश करता है उसी तरह वे कार्य करते हैं।

ਵੇਖੈ ਵਿਗਸੈ ਕਰਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥
वेखै विगसै करि वीचारु ॥

अपने इस रचे हुए प्रपंच को देख कर व शुभाशुभ कर्मों को विचार कर वह प्रसन्न होता है।

ਨਾਨਕ ਕਥਨਾ ਕਰੜਾ ਸਾਰੁ ॥੩੭॥
नानक कथना करड़ा सारु ॥३७॥

गुरु नानक जी कहते हैं कि उस निरंकार के मूल-तत्व का जो मैंने उल्लेख किया है उसे कथन करना अत्यंत कठिन है ॥३७॥

ਜਤੁ ਪਾਹਾਰਾ ਧੀਰਜੁ ਸੁਨਿਆਰੁ ॥
जतु पाहारा धीरजु सुनिआरु ॥

इद्रिय-निग्रह रूपी भट्ठी हो, संयम रूपी सुनार हो।

ਅਹਰਣਿ ਮਤਿ ਵੇਦੁ ਹਥੀਆਰੁ ॥
अहरणि मति वेदु हथीआरु ॥

अचल बुद्धि रूपी अहरन हो, गुरु ज्ञान रूपी हथौड़ा हो।

ਭਉ ਖਲਾ ਅਗਨਿ ਤਪ ਤਾਉ ॥
भउ खला अगनि तप ताउ ॥

निरंकार के भय को धौंकनी तथा तपोमय जीवन को अग्नि ताप बनाओ।

ਭਾਂਡਾ ਭਾਉ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤਿਤੁ ਢਾਲਿ ॥
भांडा भाउ अंम्रितु तितु ढालि ॥

हृदय - प्रेम को बर्तन बनाकर उसमें नाम - अमृत को गलाया जाए।

ਘੜੀਐ ਸਬਦੁ ਸਚੀ ਟਕਸਾਲ ॥
घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥

इसी सच्ची टकसाल में नैतिक जीवन को रचा जाता है। अर्थात्-ऐसी टकसाल से ही सद्गुणी जीवन बनाया जा सकता है।

ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰਮੁ ਤਿਨ ਕਾਰ ॥
जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥

जिन पर अकाल पुरुष की कृपा-दृष्टि होती है, उन्हीं को ये कार्य करने को मिलते हैं।

ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲ ॥੩੮॥
नानक नदरी नदरि निहाल ॥३८॥

हे नानक ! ऐसे सद्गुणी जीव उस कृपासागर परमात्मा की कृपा-दृष्टि के कारण कृतार्थ होते हैं। ॥ ३८ ॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥

सलोकु ॥

ਪਵਣੁ ਗੁਰੂ ਪਾਣੀ ਪਿਤਾ ਮਾਤਾ ਧਰਤਿ ਮਹਤੁ ॥
पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥

समस्त सृष्टि का गुरु पवन है, पानी पिता है, और पृथ्वी बड़ी माता है।

ਦਿਵਸੁ ਰਾਤਿ ਦੁਇ ਦਾਈ ਦਾਇਆ ਖੇਲੈ ਸਗਲ ਜਗਤੁ ॥
दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु ॥

दिन और रात दोनों धाय एवं धीया (बच्चों को खिलाने वाले) के समान हैं तथा सम्पूर्ण जगत् इन दोनों की गोद में खेल रहा है।

ਚੰਗਿਆਈਆ ਬੁਰਿਆਈਆ ਵਾਚੈ ਧਰਮੁ ਹਦੂਰਿ ॥
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि ॥

शुभ व अशुभ कर्मों का विवेचन उस अकाल-पुरुष के दरबार में होगा।

ਕਰਮੀ ਆਪੋ ਆਪਣੀ ਕੇ ਨੇੜੈ ਕੇ ਦੂਰਿ ॥
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि ॥

अपने शुभाशुभ कर्मों के फलस्वरूप ही जीव परमात्मा के निकट अथवा दूर होता है।

ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਗਏ ਮਸਕਤਿ ਘਾਲਿ ॥
जिनी नामु धिआइआ गए मसकति घालि ॥

जिन्होंने प्रभु का नाम सिमरन किया है, वे जप-तप आदि की गई मेहनत को सफल कर गए हैं।

ਨਾਨਕ ਤੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਕੇਤੀ ਛੁਟੀ ਨਾਲਿ ॥੧॥
नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि ॥१॥

गुरु नानक देव जी कथन करते हैं कि ऐसे सद्प्राणियों के मुख उज्ज्वल हुए हैं और कितने ही जीव उनके साथ, अर्थात् उनका अनुसरण करके, आवागमन के चक्र से मुक्त हो गए हैं।॥ १॥

ਸੋ ਦਰੁ ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सो दरु रागु आसा महला १ ॥

राग आसा में गुरु नानक की बानी 'सो-दार'।

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਸੋ ਦਰੁ ਤੇਰਾ ਕੇਹਾ ਸੋ ਘਰੁ ਕੇਹਾ ਜਿਤੁ ਬਹਿ ਸਰਬ ਸਮਾਲੇ ॥
सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥

हे निरंकार ! तेरा वह (अकथनीय) द्वार कैसा है, वह निवास-स्थान कैसा है, जहाँ पर विराजमान होकर तुम सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिपालन करते हो ? (इसके बारे में कैसे कथन करूं)।

ਵਾਜੇ ਤੇਰੇ ਨਾਦ ਅਨੇਕ ਅਸੰਖਾ ਕੇਤੇ ਤੇਰੇ ਵਾਵਣਹਾਰੇ ॥
वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥

हे अनन्त स्वरूप ! तुम्हारे द्वार पर अनगिनत दिव्य नाद गूँज रहे हैं, कितने ही वहाँ पर नादिन् हैं।

ਕੇਤੇ ਤੇਰੇ ਰਾਗ ਪਰੀ ਸਿਉ ਕਹੀਅਹਿ ਕੇਤੇ ਤੇਰੇ ਗਾਵਣਹਾਰੇ ॥
केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥

तुम्हारे द्वार पर कितने ही रागिनियों के संग राग कहते हैं और कितने ही वहीं पर उन रागों व रागिनियों को गाने वाले हैं।

ਗਾਵਨਿ ਤੁਧਨੋ ਪਵਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਗਾਵੈ ਰਾਜਾ ਧਰਮੁ ਦੁਆਰੇ ॥
गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥

(आगे गाने वालों का वर्णन करते हैं) हे अकाल पुरख ! तुझे पवन, जल व अग्नि देव आदि गाते हैं और धर्मराज भी तुम्हारे द्वार पर तुम्हारा यश गाता है।

ਗਾਵਨਿ ਤੁਧਨੋ ਚਿਤੁ ਗੁਪਤੁ ਲਿਖਿ ਜਾਣਨਿ ਲਿਖਿ ਲਿਖਿ ਧਰਮੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥
गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥

जीवों के शुभाशुभ कर्म लिखने वाले चित्र-गुप्त तुम्हारा ही यशोगान करते है तथा लिख कर शुभ व अशुभ कर्मों का विचार करते हैं।

ਗਾਵਨਿ ਤੁਧਨੋ ਈਸਰੁ ਬ੍ਰਹਮਾ ਦੇਵੀ ਸੋਹਨਿ ਤੇਰੇ ਸਦਾ ਸਵਾਰੇ ॥
गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥

शिव व ब्रह्मा अपनी दैवी-शक्तियों सहित तुम्हारा गुणगान कर रहे हैं, जो तुम्हारे संवारे हुए सदैव शोभा पा रहे हैं।

ਗਾਵਨਿ ਤੁਧਨੋ ਇੰਦ੍ਰ ਇੰਦ੍ਰਾਸਣਿ ਬੈਠੇ ਦੇਵਤਿਆ ਦਰਿ ਨਾਲੇ ॥
गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥

देवताओं के संग अपने सिंहासन पर बैठा इन्द्र भी तुम्हारी महिमा को गा रहा है।


सूचकांक (1 - 1430)
जप पृष्ठ: 1 - 8
सो दर पृष्ठ: 8 - 10
सो पुरख पृष्ठ: 10 - 12
सोहला पृष्ठ: 12 - 13
सिरी राग पृष्ठ: 14 - 93
राग माझ पृष्ठ: 94 - 150
राग गउड़ी पृष्ठ: 151 - 346
राग आसा पृष्ठ: 347 - 488
राग गूजरी पृष्ठ: 489 - 526
राग देवगणधारी पृष्ठ: 527 - 536
राग बिहागड़ा पृष्ठ: 537 - 556
राग वढ़हंस पृष्ठ: 557 - 594
राग सोरठ पृष्ठ: 595 - 659
राग धनसारी पृष्ठ: 660 - 695
राग जैतसरी पृष्ठ: 696 - 710
राग तोडी पृष्ठ: 711 - 718
राग बैराडी पृष्ठ: 719 - 720
राग तिलंग पृष्ठ: 721 - 727
राग सूही पृष्ठ: 728 - 794
राग बिलावल पृष्ठ: 795 - 858
राग गोंड पृष्ठ: 859 - 875
राग रामकली पृष्ठ: 876 - 974
राग नट नारायण पृष्ठ: 975 - 983
राग माली पृष्ठ: 984 - 988
राग मारू पृष्ठ: 989 - 1106
राग तुखारी पृष्ठ: 1107 - 1117
राग केदारा पृष्ठ: 1118 - 1124
राग भैरौ पृष्ठ: 1125 - 1167
राग वसंत पृष्ठ: 1168 - 1196
राग सारंगस पृष्ठ: 1197 - 1253
राग मलार पृष्ठ: 1254 - 1293
राग कानडा पृष्ठ: 1294 - 1318
राग कल्याण पृष्ठ: 1319 - 1326
राग प्रभाती पृष्ठ: 1327 - 1351
राग जयवंती पृष्ठ: 1352 - 1359
सलोक सहस्रकृति पृष्ठ: 1353 - 1360
गाथा महला 5 पृष्ठ: 1360 - 1361
फुनहे महला 5 पृष्ठ: 1361 - 1663
चौबोले महला 5 पृष्ठ: 1363 - 1364
सलोक भगत कबीर जिओ के पृष्ठ: 1364 - 1377
सलोक सेख फरीद के पृष्ठ: 1377 - 1385
सवईए स्री मुखबाक महला 5 पृष्ठ: 1385 - 1389
सवईए महले पहिले के पृष्ठ: 1389 - 1390
सवईए महले दूजे के पृष्ठ: 1391 - 1392
सवईए महले तीजे के पृष्ठ: 1392 - 1396
सवईए महले चौथे के पृष्ठ: 1396 - 1406
सवईए महले पंजवे के पृष्ठ: 1406 - 1409
सलोक वारा ते वधीक पृष्ठ: 1410 - 1426
सलोक महला 9 पृष्ठ: 1426 - 1429
मुंदावणी महला 5 पृष्ठ: 1429 - 1429
रागमाला पृष्ठ: 1430 - 1430
Flag Counter