जिस मोह-माया के साथ तुमने लगन लगा रखी है, वह मिथ्या है, मृत्यु के बाद यह तुम्हारे साथ नहीं जा सकता, तुमने स्वयं को मिथ्या प्रेम में बाँध लिया है।
तुम्हारी सम्पूर्ण जीवन रात्रि अज्ञानता के अंधेरे में बीत गई है, अब तो सतगुरु की शिक्षाओं का अनुसरण कर लो तकि तेरे अंतर्मन में ज्ञान का प्रकाश उदय हो जाए।
हे नानक ! जीवन रूपी रात्रि के चतुर्थ पहर (वृद्धावस्था) में मृत्यु-काल निकट आ रह है जब तुम्हें इस संसार से प्रस्थान करना होगा ॥४॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! जब भगवान् का सन्देश आ जाता है तो प्राणी जीवन-काल में किए कर्मों का लेखा-जोखा अपने साथ लेकर इस संसार से उस परमेश्वर के दरबार की ओर प्रस्थान कर जाता है।
हे मेरे वणजारे मित्र ! यमदूत नश्वर प्राणी को कठोर हाथों से पकड़कर ले जाते हैं और वह एक क्षण की भी देरी नहीं करने देते।
प्रभु का लिखित आदेश मिलते ही प्राणी को यमदूत इस संसार से जाते हैं। ऐसे में मनमुखी प्राणी सदा कष्ट सहन करते हैं।
किंतु जो प्राणी सच्चे सतगुरु की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं, वे परमात्मा के दरबार में सदैव सुखी रहते हैं।
हे मेरे व्यापारी मित्र, मानव जीवन में यह शरीर कर्म भूमि के समान है, इस शरीर रूपी धरती में मनुष्य जो जैसा कर्म रूपी बीज बोता है, वह उसका वही फल प्राप्त करता है। (उसे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है)।
हे नानक ! भगवान् के भक्त उसके दरबार में शोभायमान होते हैं और मनमुखी हमेशा ही जन्म-मरण के चक्र में भटकते रहते हैं ॥५॥१॥४॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति इस जीवन में आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी रहता है तो वह अपने स्वामी-प्रभु की कृपादृष्टि का अनुभव कैसे कर सकती है?
जब भगवान् अपनी कृपा करते हैं तो वह अज्ञानी व्यक्ति गुरु की शिक्षाओं का अनुसरण करता है और उन कर्मों को सीखता है जो उसे भगवान् के नाम से जोड़ते हैं।
गुरु का अनुसरण करने वाली जीव-आत्मा उन कार्यों को सीखती है, जिनकी सहायता से वह ईश्वर को प्राप्त कर सकती है, वे कार्य हैं हमेशा भगवान् के नाम का ध्यान करना।
वह व्यक्ति गुरु के अनुयायी मित्रों के संग प्रसन्नतापूर्वक रहता है और बिना किसी चिंता के प्रसन्नता सहित भगवान् के पास पहुँच जाता है।
हरि-परमेश्वर के नाम का सदा श्रद्धापूर्वक उच्चारण करके वह धर्मराज के समीप अपने कर्मों का शेष हिसाब पूरा कर देता है।
इस तरह ज्ञानहीन मनुष्य गुरु की शिक्षाओं का अनुसरण करके पति-परमेश्वर के साक्षात् दर्शन कर लेता है॥१॥
हे मेरे पिता, मेरा विवाह (ईश्वर के साथ आध्यात्मिक मिलन) संपन्न हो चुका है; गुरु के उपदेश द्वारा मैंने पति-परमेश्वर को पा लिया है।
मेरी आध्यात्मिक अज्ञानता का अंधकार मिट गया है, क्योंकि गुरु द्वारा प्रदत ज्ञान ने मुझे अत्यंत तीव्र दिव्य प्रकाश से आलोकित कर दिया है।
गुरु का प्रदान किया हुआ ज्ञान का प्रकाश होने पर अँधेरा नष्ट हो गया है और उस आलोक में हरि के नाम का अमूल्य रत्न-पदार्थ मिल गया है।
गुरु के उपदेश द्वारा मेरे अहंकार का नाश हो गया है और मेरा दुःख मिट गया है। आत्म-साक्षात्कार होने से अपने अहंकार को मैंने स्वयं ही निगल लिया है।
मैंने अमर और अविनाशी (अकाल मूर्ति) का अनुभव कर लिया है। वह अनश्वर है और इसलिए वह जन्म और मरण से सदा ऊपर है।
हे मेरे बाबुल ! अब मेरा विवाह हो गया है और गुरु के उपदेश अनुसार पति-परमेश्वर हरि को प्राप्त कर लिया है ॥२॥
हे मेरे बाबुल ! मेरा हरि-परमेश्वर शाश्वत सत्यस्वरूप है; मुझे उसके साथ एकजुट होने में मदद करने के लिए, भगवान् के भक्त मिलकर उपस्थित होते हैं जैसे कि यह एक सुंदर शादी का समारोह हो।
भगवान् का नाम जपकर मनुष्य इस लोक में सुखपूर्वक रहता है। और परलोक में शोभा प्राप्त करता है।
जिन्होंने इस जन्म में प्रभु का नाम-सिमरन किया होता है, वह निश्चित रूप से परलोक में शोभायमान होते हैं।
उनका समूचा जीवन सफल हो जाता है, जिन्होंने अपने मन को नियंत्रित कर लिया है और गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से जीवन का खेल सावधानीपूर्वक खेला है।
ईश्वर के सन्तजनों से भेंट करके मेरा विवाह (भगवान के साथ मिलन) कार्य सफल हुआ है और आनन्द के स्वरूप प्रभु को मैंने प्राप्त कर लिया है जो सर्वोच्च आनंद का स्रोत है।
हे मेरे पिता, प्रभु सत्यों में भी सत्य हैं। प्रभु के विनम्र सेवकों के साथ मिलकर, बारात सुशोभित हुई है। ||३||
हे मेरे पिता, मुझे मेरे शादी के उपहार और दहेज के रूप में भगवान प्रभु का नाम देते हैं।