एक सर्वव्यापी सृष्टिकर्ता ईश्वर। सत्य ही नाम है। सृजनात्मक सत्ता का साकार रूप। कोई भय नहीं। कोई घृणा नहीं। अमर की छवि। जन्म से परे। स्वयं-अस्तित्ववान। गुरु की कृपा से:
राग जैजैवंती, नौवां मेहल:
प्रभु का स्मरण करते हुए ध्यान करो - प्रभु का ध्यान करो; केवल यही तुम्हारे काम आएगा।
माया का साथ छोड़ो और भगवान की शरण में जाओ।
याद रखो कि संसार के सुख झूठे हैं; यह सारा तमाशा मात्र एक भ्रम है। ||१||विराम||
तुम्हें समझना चाहिए कि यह धन-संपत्ति केवल एक स्वप्न है। तुम इतना अभिमान क्यों करते हो?
पृथ्वी के साम्राज्य रेत की दीवारों के समान हैं। ||१||
सेवक नानक सत्य कहते हैं: तुम्हारा शरीर नष्ट हो जाएगा और समाप्त हो जाएगा।
पल-पल, कल बीत गया। आज भी बीत रहा है। ||२||१||
जयजावंती, नौवीं मेहल:
प्रभु का ध्यान करो - प्रभु पर ध्यान लगाओ; तुम्हारा जीवन फिसल रहा है।
मैं तुम्हें बार-बार ये क्यों बता रहा हूँ? अरे मूर्ख - तुम समझते क्यों नहीं?
तुम्हारा शरीर ओलों के समान है; यह कुछ ही समय में पिघल जाता है। ||१||विराम||
इसलिए अपने सारे संदेह त्याग दो और भगवान का नाम लो।
अंतिम क्षण में, यह अकेला ही तुम्हारे साथ जायेगा। ||१||
भ्रष्टाचार के विषैले पापों को भूल जाओ, और परमेश्वर की स्तुति को अपने हृदय में स्थापित करो।
सेवक नानक कहते हैं कि यह अवसर हाथ से निकल रहा है। ||२||२||
जयजावंती, नौवीं मेहल:
हे मनुष्य! तेरी क्या दशा होगी?
इस संसार में तुमने भगवान का नाम नहीं सुना है।
तुम पूरी तरह से भ्रष्टाचार और पाप में लिप्त हो; तुमने अपना मन उनसे जरा भी नहीं हटाया है। ||१||विराम||
तुम्हें यह मानव जीवन तो मिला, परंतु तुमने एक क्षण के लिए भी ध्यान में भगवान का स्मरण नहीं किया।
सुख के लिए तू अपनी स्त्री के अधीन हो गया है, और अब तेरे पैर बँधे हुए हैं। ||१||
सेवक नानक कहते हैं कि इस संसार का विस्तार तो बस एक स्वप्न है।
प्रभु का ध्यान क्यों न करें? माया भी उनकी दासी है। ||२||३||
जयजावंती, नौवीं मेहल:
फिसल जाना - आपका जीवन व्यर्थ ही फिसल रहा है।
हे अज्ञानी मूर्ख! तू रात-दिन पुराणों को सुनता रहता है, परन्तु उन्हें समझता नहीं।
मौत आ गई, अब कहां भागोगे? ||१||विराम||