यहाँ पर भाव इस लोक में तुझे मान-सम्मान प्राप्त होगा और प्रभु के दरबार में भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त होगा ॥३॥
अकाल पुरुष स्वयं ही करने-करवाने वाला है। परमेश्वर सर्व-कर्ता है, सब कुछ उसके अधीन है।
वह सर्वव्यापक प्रभु कण-कण में विद्यमान है, जो स्वयं ही मारने वाला तथा जीवन दाता है। अन्दर तथा बाहर वह प्राणी का साथी है।
हे नानक ! प्रभु समस्त जीवों का स्वामी है, अत : मैं उसकी शरण में आया हूँ ॥४॥१५॥८५॥
श्रीरागु महला ५ ॥
जब मेरा गुरु मुझ पर कृपालु हुआ तो मैं अपने प्रभु की शरण में आ गया।
सतिगुरु के उपदेश द्वारा मेरे समस्त बन्धन दूर हो गए हैं।
जब अन्तर्मन राम नाम के सिमरन में लीन हो गया तो मैं गुरु की कृपा से कृतार्थ हो गया।॥ १॥
हे मेरे मन ! सतगुरु की सेवा श्रेष्ठ है।
उस प्रभु को एक पल के लिए भी विस्मृत मत करना, तभी वह तुझ पर कृपा-दृष्टि करेगा ॥ रहाउ॥
हमें प्रतिदिन उस गोविन्द-प्रभु का यशगान करना चाहिए, जो मनुष्य के समस्त अवगुणों को निवृत्त करने वाला है।
अनेक व्यक्तियों ने माया के प्रपंच करके देख लिए हैं किन्तु हरि-नाम के अलावा सुख नहीं मिलता।
जो व्यक्ति भगवान की उपमा करने में मग्न रहते हैं, वे सहज ही भवसागर से पार हो जाते हैं ॥ २ ॥
लाखों तीर्थों के स्नान, लाखों व्रत रखने व इन्द्रियों को विषय-विकारों से रोकने का फल संतजनों की चरण-धूलि भाव उनके उपदेशों को अपने मन मस्तिष्क में धारण करने से या ग्रहण करने से ही प्राप्त हो जाता है।
हे भाई ! मानव किससे छिपकर पाप कमाता है, जबकि वह प्रभु सदैव समक्ष देख रहा है।
मेरा परिपूर्ण परमेश्वर सर्वत्र व्याप्त हो रहा है ॥३॥
सत्य परमेश्वर का साम्राज्य सत्य है, उसका आदेश भी सत्य है, उस सत्य परमेश्वर का स्थिर रहने वाला स्थान भी सत्य है।
उसने सत्य शक्ति धारण की हुई है और उसने सत्य-सृष्टि की रचना की हुई है।
हे नानक ! मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ, जो सत्यस्वरूप परमात्मा का नाम-सिमरन करता है ॥ ४ ॥ १६ ॥ ८६ ॥
श्रीरागु महला ५ ॥
हे भाग्यवान पुरुष ! परिश्रम करके हरि नाम सिमरन रूपी आत्म-धन एकत्र करो।
सत्संग में जाकर हरि नाम का सिमरन किया जाता है, जिससे जन्म-जन्म के पापों की मैल कट जाती है। १॥
हे मेरे मन ! राम-नाम रूपी जाप का सिमरन करो।
इससे तुझे मनोवांछित फल प्राप्त होंगे और तुम्हारे दु:ख तथा संताप सब नष्ट हो जाएँगे। ॥ रहाउ ॥
उस ईश्वर को हमेशा अपने साथ महसूस करके आपने उस उद्देश्य को प्राप्त कर लिया है जिस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आपने यह मनुष्य जन्म लिया था या यह शरीर धारण किया था।
वह परिपूर्ण प्रभु जल में, धरती में, गगन में सर्वत्र व्यापक है, वह सब प्राणियों को दया की दृष्टि से देखता है ॥२॥
सच्चे स्वामी प्रभु के साथ प्रीति लगाने से तन-मन सभी पवित्र हो जाते हैं।
जो प्राणी प्रभु के चरणों का ध्यान करता है, मानो उसने समस्त जप-तप (उपासना-तपस्या) कर लिए हैं।॥३॥
अमृत रूपी हरि का नाम हीरे-जवाहरात, रत्नों की भाँति अमूल्य है।
भाव उस जीव ने बड़ी सरलता से सुख, शांति और शिष्टता के सार को उस ईश्वर के गुणगान से पा लिया है । ॥४॥१७॥८७॥
श्रीरागु महला ५ ॥
वह धार्मिक शास्त्र उचित है और वही शगुन शुभ है जिसके द्वारा हरि-नाम का सिमरन किया जाए।
जिस मानव जीव को गुरु ने चरण कमल रूप धन दिया है उस आश्रयहीन व्यक्ति को आश्रय मिल गया।
आठ पहर भगवान के गुणों का गायन करना ही सत्य राशि है तथा सत्य संयम है।
भगवान स्वयं जिनको कृपा करके मिला है वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।॥१॥
हे मेरे मन ! तू सदैव एकाग्रचित होकर भगवान का भजन किया कर,
चूंकि भगवान तो प्रत्येक हृदय के अन्दर समाया हुआ है तथा जीव के साथ होकर सहायता करता है ॥१॥ रहाउ॥
जब प्रभु स्मरण किया तो इतने सुखों की उपलब्धि होती है कि उनकी गिनती नहीं हो सकती।
जिसने भी हरि रस को चखा है, वह तृप्त हो गया तथा उस रस को वही आत्मा जानती है।