वे कहीं न कहीं चोटिल हैं,
(दूसरों के घाव) क्रोध से सहते हैं,
वे पिटाई के कारण गिर जाते हैं
वे प्रसन्नतापूर्वक प्रहार सह रहे हैं, योद्धा झूमते और गरजते हुए गिर रहे हैं।
कहीं (घायल योद्धा) भूखे हैं,
विवाह में सजी,
गिरे हुए लोग सचेत हैं
असंख्य भूतों से सम्पर्क करके योद्धा विलाप कर रहे हैं, मूर्छित होकर गिर रहे हैं, भूत-प्रेत नाच रहे हैं।।२६०।।
कहीं वे तीर चलाते हैं,
युवा पुरुष लड़ते हैं,
उनके सिरों पर प्रकाश है,
योद्धा बाण पकड़कर युद्ध कर रहे हैं, सबके मुखों पर शोभा चमक रही है और देवकन्याएँ योद्धाओं की ओर देख रही हैं।
कहीं हाथी पर चढ़कर लड़ते हैं,
(आस-पास के) साथी मारे गये,
(वे) योद्धा भाग गए हैं
योद्धा शत्रुओं को मारकर हाथियों से युद्ध कर रहे हैं, वे बाणों से घायल होकर भाग रहे हैं।
कहीं क्रोध से भरा हुआ,
चेतना त्याग दी गई है,
मामले खुले हैं,
योद्धा अचेत होकर पड़े हैं और क्रोध के कारण उनके बाल खुले हुए हैं तथा उनके वस्त्र नष्ट हो गए हैं।263.
कहीं वे हाथियों पर लड़ते हैं,
(उनके) साथी लड़ते हुए मारे गए,
घोड़े खुले हैं,
हाथियों से लड़ते हुए चिन्ता करने वाले नष्ट हो गये हैं, घोड़े खुलेआम घूम रहे हैं और चिन्ता करने वाले गरज रहे हैं। २६४।
कहीं हूरें घूम रही हैं,
(उनसे) पृथ्वी भर गयी है,
नायक मारे जा रहे हैं,
स्वर्ग की देवियाँ सम्पूर्ण पृथ्वी पर घूम रही हैं, बाणों से घायल होकर योद्धा वीरगति को प्राप्त हो रहे हैं।
कहीं तीर चले,
चारों दिशाएँ (तीर सहित) रुकी हुई हैं,
तलवारें चमकती हैं
बाणों के छूटने से दिशाएँ छिप गई हैं और तलवारें आकाश में चमक रही हैं।
कहीं-कहीं गोलियां चल रही हैं
(जैसे) ओले पड़ रहे हों,
योद्धा दहाड़ रहे हैं
भूतगण कब्रों से उठकर युद्धभूमि की ओर आ रहे हैं, योद्धा गरज रहे हैं और घोड़े दौड़ रहे हैं।
कहीं अंग काटे जा रहे हैं,
युद्ध के मैदान में गिर गए हैं,
सम्मान में संकल्प लिए गए हैं,
जिनके अंग कटे हुए हैं, वे योद्धा युद्धस्थल में गिर रहे हैं और मदोन्मत्त योद्धा मारे जा रहे हैं।।२६८।।
कहीं कहते हैं 'मार' 'मार',
चारों हैरान हैं,
हाथी ('धिथान') ढका हुआ है,
चारों दिशाओं में मारो-मारो की चीखें सुनाई दे रही हैं, योद्धा निकट आ रहे हैं और पीछे नहीं हट रहे हैं।
कहीं भाले चलते हैं,
बकरियां पुकारती हैं,
टेढ़ी मूंछें हैं,
वे चिल्लाते हुए अपने भालों से प्रहार कर रहे हैं, उन अहंकारियों की मूँछें भी मनमोहक हैं।।२७०।।