सभी लोग आ रहे थे और लड़ रहे थे और कई लोग भाग रहे थे।
कहीं-कहीं त्रिशूल और घोड़ों के साथ युद्ध खेल खेले जा रहे थे।
कहीं-कहीं तो दर्रा (फांसी) और कुल्हाड़ी के सहारे कदम आगे बढ़ाये जा रहे थे। 179.
कहीं घोड़ों पर काठी लगाकर और
कहीं-कहीं सुन्दर वेशभूषा में योद्धा ताज़ियों पर चढ़ रहे थे।
कहीं-कहीं मस्तूल लगे हाथियों पर (सैनिक) बैठे थे,
मानो इन्द्र अरावत हाथी ('बरनेसा') पर आरूढ़ होकर उसे ले जा रहे हों। 180.
कहीं-कहीं खच्चरों पर सवार दुश्मन बैठे थे।
कहीं-कहीं गधों पर सवार योद्धा दहाड़ रहे थे।
कहीं भारी दैत्य राक्षसों पर सवार थे
और वे चारों दिशाओं में चिल्ला रहे थे। 181.
कहीं-कहीं तो विशालकाय लोग चट्टानों पर चढ़ रहे थे।
कहीं सूअरों पर सवार होकर (दैत्य) आते थे।
कहीं भारी दैत्य राक्षसों पर सवार थे
और वे चारों ओर से 'मारो मारो' चिल्ला रहे थे। 182.
कहीं दुष्ट (शत्रु) साँपों पर सवार होकर
और कहीं-कहीं वे भेड़ियों पर सवार होकर आये।
कहीं क्रोधित तेंदुओं पर चढ़कर
और वे चीतलों (मृगनों) पर सवार होकर कहीं पहुंचे थे।183.
कहीं चच्चुंदर कौओं पर चल रहा था
और कितने ही सैनिक रथों पर सवार थे।
कहीं-कहीं प्रमुख योद्धा बड़े-बड़े गधों पर सवार थे।
(ऐसा प्रतीत हो रहा था) मानो वे शुद्ध समाधि से अपने को सजा रहे हों।184.
हट्टी योद्धा गोपा और उंगलियों को ढकने वाले लोहे के दस्ताने ('गुलित्रान') पहनते थे।
वे बहुत ही कठोर, कटु, जिद्दी और निडर थे।
वे महान युद्ध का महिमामंडन कर रहे थे और बहुत गुस्से में थे
(योद्धा) चारों ओर से दौड़ रहे थे। 185.
बड़े-बड़े दांत निकालकर और बहुत गुस्सा करके
वे अपने हाथों में पर्वत और पतरी पकड़े हुए थे।
कहीं-कहीं वे त्रिशूल, साठी और भाले ('सुई') पकड़े हुए थे।
और अत्यन्त क्रोधित होकर उसने भयंकर युद्ध खड़ा कर दिया था।186.
जिद्दी योद्धा हिनहिना कर घोड़ों को उत्तेजित कर रहे थे
और बांके महाबीर लड़ने के लिए तैयार हो रहा था।
अनेक भाले, शंख और अस्त्र धारण किये हुए
छत्री योद्धा क्रोधित होकर युद्ध भूमि में आ गये।187.
कहीं-कहीं बख्तरबंद योद्धा योद्धाओं से लड़ रहे थे।
ऐसा लग रहा था जैसे योद्धा नाच रहे हों।
सांगों में वीरों को इसी प्रकार जाना जाता था
बांसुरी बजाने वालों की तरह, नवयुवक बांस पर चढ़े हुए हैं। 188.
कुछ हिस्से टूट गये हैं और कुछ हथियार और कवच गिर गये हैं।
कहीं-कहीं योद्धाओं और घोड़ों के कवच और कवच (पड़े हुए थे)।
कहीं-कहीं हेलमेट (और माथे पर लगी पट्टियाँ) टूटकर नीचे गिर गईं।
और कहीं न कहीं, नायक बिखर गये। 189.
चौबीस:
उस तरह का समय
वहां भयानक युद्ध शुरू हो गया।
तब महाकाल बड़े क्रोध में आये
और अपने पांव ज़मीन पर मजबूती से जमाए। 190.