चण्डी अत्यन्त क्रोध में, अपना चक्र उठाये, शत्रु सेना के भीतर
उसने योद्धाओं को आधे और चौथाई भागों में काट डाला।42.
स्वय्या
इतना भयानक युद्ध हुआ कि शिव का गहन चिंतन भंग हो गया।
तब चण्डी ने अपनी गदा उठाई और अपनी ऊँच बजाकर भयंकर ध्वनि निकाली।
शत्रुओं के सिर पर चक्र गिरा, वह चक्र उसके हाथ के बल से ऐसे चला
ऐसा प्रतीत होता था कि बच्चे बर्तन के टुकड़ों को पानी की सतह पर तैरने के लिए फेंक रहे थे।43.,
दोहरा,
महिषासुर की सेनाओं पर नज़र डालते हुए, देवी ने अपनी शक्ति बढ़ाई,
उसने सब कुछ नष्ट कर दिया, कुछ को अपने सिंह से तथा कुछ को अपने चक्र से मार डाला।44.,
राक्षसों में से एक राजा के पास दौड़ा और उसे सारी सेना के नष्ट हो जाने की बात बताई।
यह सुनकर महिषासुर क्रोधित हो गया और युद्धभूमि की ओर बढ़ गया।
स्वय्या,
युद्ध में अपनी सारी सेना के नष्ट हो जाने की बात जानकर महिषासुर ने अपनी तलवार उठा ली।
और वह भयंकर चण्डी के सामने जाकर भयंकर भालू के समान दहाड़ने लगा।
उसने अपना भारी गदा हाथ में लेकर देवी के शरीर पर बाण की तरह फेंका।
ऐसा प्रतीत हुआ कि हनुमान ने एक टीला उठाकर रावण की छाती पर फेंक दिया।४६.,
फिर उन्होंने हाथ में धनुष-बाण लेकर उन योद्धाओं को मार डाला, जो मरने से पहले पानी भी नहीं मांग सकते थे।
घायल योद्धा लंगड़े हाथियों की तरह मैदान में घूम रहे थे।
योद्धाओं के शरीर हिल रहे थे, उनके कवच जमीन पर जलकर बिखर गये थे।
मानो जंगल में आग लगी हो और साँप तेजी से चलने वाले कीड़ों पर झपटने के लिए दौड़ रहे हों।४७.,
चण्डी अत्यन्त क्रोधित होकर अपने सिंह के साथ युद्ध-क्षेत्र में घुस गयी।
हाथ में तलवार थामे उसने युद्ध के मैदान को ऐसे लाल रंग में रंग दिया जैसे जंगल में आग लगी हो।
जब दैत्यों ने देवी को चारों ओर से घेर लिया तो कवि के मन में ऐसा भाव उत्पन्न हुआ,