वह बलरामजी की ओर परामर्श लेने दौड़ा, किन्तु उन्होंने भी यही बात कही कि कृष्ण गुफा में चले गए, फिर लौटकर नहीं आए।।२०५४।।
बलराम का कथन:
स्वय्या
या तो किसी शत्रु (श्रीकृष्ण) से युद्ध करके अपने शरीर को यमलोक भेज दिया।
या तो कृष्ण शत्रु के हाथों मारे गये हैं या इस मूर्ख सत्राजित की मणि की खोज में पाताल लोक चले गये हैं।
अथवा उसके भाई के प्राण और मणि को यमराज ने छीन लिया है, और उन्हें लेने (वहां) गए हैं।
अथवा वह अपने भाई की प्राणशक्ति (आत्मा) को यम से वापस लाने गया है अथवा इस मूर्ख मनुष्य के वचनों से लज्जित होकर वापस नहीं लौटा है।।2055।
जब राजा उग्रसेन रोते हुए बलराम के पास से गुजरे तो उन्होंने कहा,
जब बलरामजी ने रोते हुए राजा से यह सब कहा, तब सब यादवों ने मिलकर सत्राजित् को टांगों और मुट्ठियों से पीटा॥
उसकी पगड़ी उतार दी गई और हाथ-पैर बांधकर उसे कुएं में फेंक दिया गया
किसी ने भी उसकी रिहाई की सलाह नहीं दी और उसे मार डालने पर विचार किया।2056.
जब श्री कृष्ण की ये बातें उनकी सभी पत्नियों ने सुनीं,
जब स्त्रियों ने कृष्ण के विषय में ये बातें सुनीं, तो वे रोती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ीं और उनमें से कुछ ने विलाप किया
बहुत से लोग कहते हैं, पति ने तो प्राण त्याग दिए, हे माता! अब हमारा क्या होगा?
किसी ने कहा कि उसके पति ने अंतिम सांस ली है, तब उसकी क्या दशा होगी, रुक्मणी ने ब्राह्मणों को दान दिया तथा सती होने (पति की चिता पर मर जाने) का विचार किया।2057.
दोहरा
बसुदेव और देवकी के मन में संदेह बढ़ गया।
वसुदेव और देवकी ने अत्यन्त चिन्तित होकर भगवान की अप्राप्य इच्छा का विचार करके रुक्मणी को सती होने से रोक दिया।2058.
स्वय्या
देवकी ने अपनी पुत्रवधू को इस प्रकार उपदेश दिया
यदि कृष्ण युद्ध में मारे गए होते, तो उनका सती होना उचित था, किन्तु यदि वे सत्राजित मणि की खोज में बहुत दूर चले गए होते, तो उनका सती होना उचित नहीं है।
इसलिए उसकी खोज अभी भी जारी रह सकती है
ऐसा कहकर उन्होंने रुक्मणी के चरणों पर सिर नवाया और विनयपूर्वक उनकी स्वीकृति ले ली।
इस प्रकार बहु को समझाकर वह (देवकी) जाकर भवानी (दुर्गा) का पूजन करने लगी।