स्वय्या
एक बार श्रीकृष्ण, उद्धव को साथ लेकर कुब्जा के घर आये।
कृष्ण को आते देख कुब्जा आगे बढ़ी और उनका स्वागत किया, जिससे उसे बहुत खुशी हुई
फिर उसने श्रीकृष्ण के दोनों चरणकमलों को अपने हाथों में लेकर अपना सिर उनके चरणों में रख दिया और उनसे लिपट गई।
वह श्रीकृष्ण के चरणों में झुककर मन में ऐसी प्रसन्न हुई, जैसे मोर बादलों को देखकर प्रसन्न होता है।
उनका निवास अत्यंत सुंदर है, जिसमें लाल रंग की चित्रकारी है
वहाँ चंदन, अगर, कदम्ब के वृक्ष और मिट्टी के दीये भी देखे गए।
वहाँ एक सुंदर सा सोफ़ा है, जिस पर एक फैंसी बिस्तर बिछा हुआ है
कुब्जा ने हाथ जोड़कर कृष्ण को नमस्कार किया और उन्हें पलंग पर बैठाया।
दोहरा
तब भक्ति अपनी भक्ति प्रकट करते हुए रत्नजड़ित एक पत्थर ले आई।
फिर वह रत्नजटित एक आसन ले आयी और उद्धव से उस पर बैठने का अनुरोध किया।
स्वय्या
उद्धव ने कुब्जा से कहा कि उन्होंने उसके अत्यन्त गहन प्रेम को देखा है।
उन्होंने कहा कि वह बहुत दीन और गरीब हैं और भगवान कृष्ण के सामने नहीं बैठ सकते।
तब (श्रीकृष्ण का तेज दिखाने के लिए) वह उसी समय उठ खड़ा हुआ और उसने पीढ़ियाँ दे दीं।
भगवान् श्रीकृष्ण की महिमा जानकर उन्होंने आसन हटा दिया और स्नेहपूर्वक उनके चरण-पादुको को हाथों में पकड़कर पृथ्वी पर बैठ गये।
जो चरण-कमल शेषनाग, साहेब, इन्द्र, सूर्य और चन्द्रमा नहीं पा सके।
जिन चरणों तक शेषनाग, शिव, सूर्य और चंद्रमा भी नहीं पहुंच सके तथा जिनकी महिमा वेद, पुराण आदि में वर्णित है।
वे चरण कमल जिनका अभ्यास सिद्ध पुरुष समाधि में करते हैं और मुनि मौन रहकर ध्यान करते हैं।
जिन चरणों का ध्यान करके महापुरुष समाधिस्थ होकर ध्यान करते हैं, उन्हीं चरणों को अब उद्धव बड़े प्रेम से दबा रहे हैं।
जो संत आध्यात्मिक स्तर पर अत्यंत उन्नत होते हैं, वे ही भगवान के चरणों की महिमा को सहन करते हैं।
वे चरण, जो अधीर योगी ध्यान में नहीं देखते हैं,
वे (चरण-कमल) ब्रह्मा आदि, शेषनाग, देवता आदि की खोज करके थक गए, परंतु कहीं अंत नहीं पा सके।
जिनके रहस्य को ब्रह्मा, इन्द्र, शेषनाग आदि भी नहीं समझ पाए हैं, उन चरणकमलों को अब उद्धव अपने हाथों से दबा रहे हैं।
इधर उद्धव कृष्ण के चरण दबा रहे हैं, उधर माली कुब्जा सज-धज कर तैयार है।
वह माणिक, रत्न आदि जैसे सुखदायक कीमती पत्थर पहनती थी।
और माथे पर टीका लगाकर और मांग में सिन्दूर लगाकर वह कृष्ण के पास जाकर बैठ गयी।
उसकी सुन्दरता और लावण्य देखकर कृष्ण मन में बहुत प्रसन्न हुए।
मलाणा अपने अंगों से सुशोभित तथा अत्यन्त सुन्दर होकर श्री कृष्ण के पास आयी।
अपने आप को सजाने के बाद, महिला माली कुब्जा कृष्ण के पास गई और चंद्रकला का दूसरा रूप प्रकट किया
कुब्जा के मन की व्यथा को महसूस कर कृष्ण ने उसे अपनी ओर खींच लिया।
कृष्ण के आलिंगन में बैठी हुई कुब्जा ने भी अपनी लज्जा त्याग दी और उसका सारा संकोच समाप्त हो गया।।९९३।।
जब कृष्ण ने कुब्जा की बांह पकड़ी तो उसे अत्यंत प्रसन्नता हुई।
वह ऊँची आवाज में बोली, "हे कृष्ण! तुम मुझे बहुत दिनों के बाद मिले हो।"
जिस प्रकार आज श्री कृष्ण ने तुम्हारे शरीर पर चंदन लगाकर मुझे प्रसन्न किया है।
हे यादववीर! मैंने आपकी प्रसन्नता के लिए अपने अंगों पर चन्दन घिसा है और अब आपसे मिलकर मैंने अपने मन का ध्येय प्राप्त कर लिया है।
बचित्तर नाटक में 'कुब्जा के घर जाने पर उसका उद्देश्य पूर्ण होना' का वर्णन समाप्त।
अब कृष्ण के अक्रूर के घर जाने का वर्णन शुरू होता है।
स्वय्या
मालन को बहुत-सी प्रसन्नता देकर वे फिर अक्रूरजी के घर गए। (कृष्ण का) आगमन सुनकर वे पैदल ही चल पड़े।
कुब्जा को सुख देकर जब श्रीकृष्ण अक्रूर के घर गए तो उनके आगमन की खबर सुनकर वे उनके चरणों में गिर पड़े॥
फिर उसने श्रीकृष्ण के चरण पकड़ लिए, (वह दृश्य) कवि ने इस प्रकार मुख से कहा है।
जब वह कृष्ण के चरणों में लेटा हुआ था, तब उन्हें देखकर उसने उद्धव से कहा, "इस प्रकार के संतों का प्रेम भी अत्यन्त गहरा होता है, मैंने इसका अनुभव किया है।"
कृष्ण की बात सुनकर उद्धव को अक्रूर का अपार प्रेम दिखाई दिया।
कृष्ण ने उद्धव से कहा, "अक्रूर का प्रेम देखकर मुझे कुब्जा का प्रेम भी ज्ञात हो गया है।"
मन ही मन विचार करने के बाद उन्होंने कृष्ण से ऐसा कहने को कहा।
यह देखकर और इस पर विचार करते हुए उद्धव बोले, "वह इतना प्रेम प्रदर्शित कर रहा है, जिसके सामने कुब्जा का प्रेम तुच्छ है।"