कहीं न कहीं आप विद्या और विज्ञान के माध्यम से शक्तियों की प्राप्ति के लिए अभ्यास कर रहे हैं!
कहीं न कहीं तुम शक्तियों और बुद्धि के रहस्यों की खोज कर रहे हो!
कहीं न कहीं तुम स्त्री के प्रति गहन प्रेम में दिखाई देते हो!
कहीं-कहीं तुम युद्ध के उत्साह में दिखाई देते हो! 17. 107
कहीं न कहीं तुम्हें धर्म-कर्म का निवास माना गया है!
कहीं-कहीं तो तू कर्मकाण्डीय अनुशासन को भ्रम मान लेता है!
कहीं तू महान् प्रयास करता है और कहीं तू चित्र के समान दिखता है!
कहीं आप दिव्य बुद्धि के स्वरूप हैं और कहीं आप सबके अधिपति हैं! 18. 108