तू ही सबके पालनहार है! 114
तू सबका नाश कर देता है!
कि तू सभी स्थानों पर जाता है!
कि तूने सारे वेश धारण कर रखे हैं!
तू ही सब कुछ देखता है! 115
तू ही सबके कारण है!
तू ही सबकी महिमा है!
तू सब कुछ सुखा देता है!
तू ही सब कुछ भर देता है! 116
आप ही सबकी शक्ति हैं!
कि तुम ही सबका जीवन हो!
तू ही सब देशों में विद्यमान है!
कि तू वेश में है! 117
आपकी पूजा सर्वत्र होती है!
हे प्रभु! आप ही सबके परम नियन्ता हैं!
कि तुम्हें हर जगह याद किया जाता है!
तू सर्वत्र प्रतिष्ठित है! 118
हे प्रभु! तू ही सब कुछ प्रकाशित करता है!
कि सभी लोग आपका आदर करें!
हे प्रभु! आप सबके इन्द्र (राजा) हैं!
तू ही सबका चन्द्रमा (प्रकाश) है! 119
हे प्रभु! आप सभी शक्तियों के स्वामी हैं!
हे प्रभु! तू परम बुद्धिमान है!
कि तुम सबसे बुद्धिमान और विद्वान हो!
कि तुम भाषाओं के स्वामी हो! 120
कि तुम सौन्दर्य की मूर्तरूप हो!
सब तेरी ओर देखते हैं!
कि तू सदा वास कर!
कि तेरी सदैव सन्तान बनी रहे! 121
हे प्रभु! ...
कि तुम दीन-दुखियों के रक्षक हो!
तेरा निवास सर्वोच्च है!
हे प्रभु! तू पृथ्वी और आकाश में व्याप्त है! 122
तू सबमें भेद करता है!
कि तुम सबसे अधिक विचारशील हो!
कि तुम सबसे महान मित्र हो!
हे प्रभु! तू ही अन्नदाता है! 123
हे सागर! तुममें असंख्य लहरें हैं!
कि आप अमर हैं और कोई भी आपके रहस्यों को नहीं जान सकता!
हे प्रभु! आप भक्तों की रक्षा करते हैं!
कि तू दुष्टों को दण्ड देता है! 124
कि तेरा अस्तित्व सूचकांकीय है!
तेरी महिमा तीनों गुणों से परे है!
वह आपकी सबसे शक्तिशाली चमक है!
तू सदैव सभी के साथ एक है! 125
हे प्रभु! ...
कि तुम अविभाजित और अद्वितीय हो!
तू ही सबके रचयिता है!
तू ही सदा सबका श्रृंगार है! 126
सब लोग तुम्हें नमस्कार करते हैं!
हे प्रभु, तू सदैव ही कामनारहित है!
कि तुम अजेय हो!
हे प्रभु! ...
तू ही ओम है, वह आदि सत्ता है!
कि तुम भी अनादि हो!
वह तू शरीरहीन और नामहीन है!
हे प्रभु! ...
हे प्रभु! आप तीनों देवताओं और गुणों के नाश करने वाले हैं!
कि तुम अमर और अभेद्य हो!
कि तुम्हारा भाग्य-लेख सभी के लिए है!
तू सबसे प्रेम करता है! 129
हे प्रभु! आप ही तीनों लोकों के भोक्ता हैं!
कि तुम अटूट और अछूते हो!
हे प्रभु! तू नरक का नाश करने वाला है!
हे प्रभु! ...
तेरी महिमा अवर्णनीय है!
कि तुम शाश्वत हो!
हे प्रभु! तू असंख्य रूपों में निवास करता है!
कि तू सभी के साथ अद्भुत रूप से एक है! 131
कि तुम सदैव अवर्णनीय हो!
तेरी महिमा विविध रूपों में प्रकट होती है!
तेरा स्वरूप अवर्णनीय है!
कि आप सभी के साथ अद्भुत रूप से एक हैं! 132
चचरी छंद
तुम अविनाशी हो!
तुम अंगहीन हो।
तुम निःस्वार्थ हो!
तू अवर्णनीय है। १३३।
तुम भ्रमरहित हो!
तुम कर्महीन हो।
तुम अनादि हो!
तू युगों के आदि से है। १३४।
तुम अजेय हो!
तुम अविनाशी हो।
तुम तत्वहीन हो!
तू निर्भय है। १३५।
तुम शाश्वत हो!
तुम अनासक्त हो।
तुम अविचलित हो!
तू असीम है। 136.