इस प्रकार देवी ने उस राक्षस का वध कर दिया जो उनके सामने आकर लड़ने लगा था।
फिर वह शंख बजाकर शत्रुओं की सेना में घुस गई।35.
स्वय्या
शक्तिशाली चण्डिका ने क्रोध में आकर हाथ में धनुष लेकर यह कार्य किया।
उसने एक ही बार में शत्रु की सारी सेना पर नज़र डाली और भयंकर चिल्लाहट के साथ उसे नष्ट कर दिया।
बड़ी संख्या में कटे हुए और लहूलुहान राक्षसों को देखकर कवि के मन में यह भाव आता है
गरुड़ ने सर्पों को टुकड़े-टुकड़े करके इधर-उधर फेंक दिया था।36.
दोहरा
देवी ने अनेक राक्षसों का वध किया तथा बलवान राक्षसों को दुर्बल बना दिया।
हाथ में हथियार लेकर उसने शत्रु सेना को भागने पर मजबूर कर दिया।37.
महिषासुर की सेना भागकर अपने राजा की शरण में पहुंची।
भागने के बाद उसने बताया कि सेना के बीस पदम मारे गए हैं।38.
यह सुनकर मूर्ख महिषासुर अत्यंत क्रोधित हुआ।
उसने आदेश दिया कि देवी को घेर लिया जाये।39.
स्वय्या
अपने राजा की बातें सुनकर सभी योद्धाओं ने मिलकर यह निर्णय लिया।
मन में दृढ़ निश्चय करके देवी पर चारों दिशाओं से आक्रमण किया जाए।
हाथों में तलवारें लिए और 'मारो, मारो' का उच्च उद्घोष करते हुए राक्षसों की सेना चारों दिशाओं से आक्रमण करने लगी।
जैसे चन्द्रमा बादलों में घिरा हो, उसी प्रकार उन सबने चण्डी को चारों ओर से घेर लिया।
महिषासुर की सेना पर नजर डालते ही चंडिका ने अपना भयंकर धनुष पकड़ लिया।
क्रोध में भरकर उसने अपने असंख्य बाणों की वर्षा करके भयंकर युद्ध छेड़ दिया।
शत्रु की सेना को काटते-काटते बहुत अधिक मात्रा में रक्त जमीन पर गिर गया।
मानो प्रभु-ईश्वर ने पहले से ही सात समुद्रों की रचना करने के साथ-साथ आठवाँ समुद्र भी रच दिया हो।41.
दोहरा