केशी को संबोधित कंस का भाषण:
स्वय्या
राजा (नारद) से मिलकर ऋषि घर चले गए तब कंस ने एक शक्तिशाली राक्षस को बुलाया।
जब नारद मुनि कंस से मिलकर चले गए, तब कंस ने केशी नामक महाबली राक्षस को बुलाकर कहा, "जाओ और यशोदा के पुत्र कृष्ण को मार डालो।"
दूसरी ओर, उसने अपनी बहन और उसके पति वासुदेव को अपने घर में जंजीरों से बंधवा दिया
कंस ने चन्द्रू को कुछ गुप्त बातें बताईं तथा कुवलयपीर (हाथी) भी मंगवाया।
कंस का अक्रूर को सम्बोधित भाषण:
स्वय्या
कंस ने अपने रक्षकों से कहा कि वे एक मंच बनाएं
उन्होंने चांदुर से कहा कि वह कुवल्यपीर (हाथी) को मंच के द्वार पर खड़ा कर दे
अक्रूर को बुलाया और कहा कि मेरा रथ लेकर गोकुल ('नंदपुरी') चलो।
उन्होंने अक्रूरजी को आदेश दिया कि वे अपने रथ पर सवार होकर नन्दपुरी (नन्द की नगरी) चलें और हमारे घर में यज्ञ के बहाने कृष्ण को यहाँ ले आएं।
कंस ने क्रोधित स्वर में अक्रूर से कहा कि वह ब्रज में जाकर
वहाँ घोषणा करो कि हमारे घर में यज्ञ हो रहा है, इस प्रकार कृष्ण यहाँ आने के लिए आकर्षित हो सकते हैं।
इस प्रकार कवि के मन में उस बिम्ब की सफलता का सर्वोत्तम एवं महान (उपमा) विचार उत्पन्न हुआ है।
कवि के अनुसार यह दृश्य ऐसा प्रतीत होता है जैसे सिंह को मारने से पहले उसे लुभाने के लिए हिरण को पहले ही भेजा जा रहा है।775.
कवि की वाणी: दोहरा
कंस ने कृष्ण की हत्या के लिए अक्रूर को घात लगाकर बैठाया
अब इसके साथ मैं केशी के वध की कथा कहता हूँ।
स्वय्या
केशी ने प्रातःकाल ही प्रस्थान किया और एक बड़े घोड़े का रूप धारण करके ब्रज में पहुंच गए।
उसे देखकर सूर्य और इन्द्र भयभीत हो गए।
उन्हें देखकर भयभीत गोपों ने भी कृष्ण के चरणों पर अपना सिर झुकाया
यह सब देखकर श्रीकृष्ण ने धैर्य धारण कर लिया और केशी की ओर से भयंकर युद्ध आरम्भ कर दिया।
जब शत्रु के मन में क्रोध उत्पन्न हुआ, तब उसने कृष्ण को लात मारी।
शत्रु केशी ने क्रोध में आकर कृष्ण पर पैरों से प्रहार किया, किन्तु कृष्ण ने उसे अपने शरीर को छूने नहीं दिया और स्वयं को बचा लिया।
तब श्रीकृष्ण ने केशी के पैर पकड़ लिये और उसे उठाकर दूर फेंक दिया।
जैसे ही लड़कों ने लकड़ी फेंकी, केहसी चार सौ कदम दूर जाकर गिर पड़ी।
पुनः अपने को स्थिर करके और अपना मुख फैलाकर केशी भगवान श्री कृष्ण पर टूट पड़ा।
स्वर्गीय प्राणियों को डराने के लिए उसने अपनी आँखें चौड़ी कर लीं और उन्हें आतंकित करना शुरू कर दिया।
कृष्ण ने अपना हाथ उसके मुंह में डाल दिया और ऐसा लगा कि कृष्ण ने मृत्यु का रूप धारण कर लिया है।
केशी के शरीर से प्राण-शक्ति का चुनाव कर रहा था।७७९।
उसने (केशी ने) कृष्ण की भुजा में अपने दांत गड़ाने की कोशिश की, लेकिन उसके दांत गिर गए
जिस उद्देश्य से वह आया था, वह विफल हो गया
वह अपने घर वापस नहीं जा सका और लड़ते-लड़ते धरती पर गिर पड़ा
वह कृष्ण के हाथों मारा गया और उसके सारे पाप नष्ट हो गये।780.
जिस विधि से राम ने रावण को मारा और जिस विधि से नरकासुर का वध हुआ,
प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान ने जिस विधि से हिरण्यकशिपु का वध किया
जिस प्रकार मधु और कैटभ का वध हुआ और भगवान ने दावानल को पी लिया,
इसी प्रकार मुनियों की रक्षा के लिए श्री कृष्ण ने अपने बल से केशी को उखाड़ फेंका।
महान शत्रु का वध करने के पश्चात् कृष्ण अपनी गायों के साथ वन में चले गए।
अपने मन से सारे दुख त्यागकर वह प्रसन्न मुद्रा में था
तब कवि श्याम के मन में उस छवि की एक बहुत ही सुंदर उपमा इस प्रकार पैदा हुई।
कवि के अनुसार वह दृश्य ऐसा लग रहा था मानो झुंड में से किसी बड़े हिरण को शेर ने मार डाला हो।782.
बछित्तर नाटक के कृष्णावतार में 'केशी का वध' नामक अध्याय का अंत।
अब कृष्ण से मिलने के लिए नारद के आगमन का विनाश शुरू होता है
अधिचोल
तब नारद जी योद्धा श्रीकिशन के पास गये।