खड़गसिंह सुमेरु पर्वत की भाँति स्थिर रहा, जो पवन के झोंकों से आघात खाता है।
उन पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ा, परंतु यादवों की शक्ति क्षीण होने लगी।1422.
क्रोध में आकर खड़ग सिंह ने दोनों राजाओं की सेना का एक बड़ा हिस्सा नष्ट कर दिया।
उसने अनेक घोड़े, रथ आदि नष्ट कर दिये।
कवि श्याम ने उस छवि की उपमा का विचार करके मुख से (ऐसा) कहा है।
कवि कहते हैं कि युद्ध का मैदान युद्ध का मैदान न लगकर रुद्र (शिव) की क्रीड़ास्थली जैसा प्रतीत हो रहा था।1423.
(खड़गसिंह) धनुष-बाण लेकर युद्धभूमि में कूद पड़ा है और उसका क्रोध बहुत बढ़ गया है।
मन में क्रोध भरकर वह शत्रु की सेना में घुस गया और उधर से शत्रु की सेना बहुत ही प्रचण्ड हो गयी।
(उसने) एक ही वार में शत्रु सेना का नाश कर दिया है। उस छवि को कवि श्याम (अंग्रेजी) ने पढ़ा है,
खड़ग सिंह ने शत्रु सेना को नष्ट कर दिया और वह उसी प्रकार भाग गई जैसे सूर्य से डरकर अन्धकार भाग जाता है।1424.
तब झरझरसिंह ने क्रोधित होकर हाथ में ली हुई तेज तलवार से उस पर (खड़गसिंह पर) हमला कर दिया।
तब झरझरसिंह ने क्रोधित होकर अपनी तलवार हाथ में लेकर खड़गसिंह पर वार किया, जो उसके हाथ से छीन ली गई।
उसने वही तलवार शत्रु के शरीर पर मारी, जिससे उसका धड़ कटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।
कवि के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि शिव ने अत्यन्त क्रोध में आकर गणेश का सिर काटकर फेंक दिया था।1425.
जब यह योद्धा मारा गया, तब दूसरा (जुझानसिंह) मन में कुढ़ उठा
उसने अपना रथ हांक दिया और तुरन्त तलवार हाथ में लेकर उसकी ओर बढ़ा (खड़गसिंह)
तब राजा (खड़गसिंह) ने धनुष-बाण (हाथ में) लेकर शत्रु की तलवार मूठ सहित काट डाली,
तब राजा ने धनुष-बाण से उसका भी सिर काट डाला और वह ऐसा दिखाई देने लगा, मानो लोभ से जीभ हिलाता हुआ आगे बढ़ रहा हो, किन्तु जीभ कट जाने से उसकी स्वाद प्राप्ति की आशा समाप्त हो गई।।1426।।
कवि का भाषण:
स्वय्या
जब उसने हाथी के समान विशाल योद्धा को अपनी तलवार से काट डाला, तब वहां उपस्थित सभी योद्धा उस पर टूट पड़े
वे क्रोधित होकर अपने हथियार हाथ में ले चुके थे
कवि श्याम उन सभी सैनिकों की प्रशंसा इस प्रकार गाते हैं, जो (हथियार लेकर) खड़े हैं,
वे प्रशंसनीय योद्धा थे और ऐसा प्रतीत होता था जैसे अन्य राजा किसी राजा द्वारा आयोजित स्वयंवर समारोह में एकत्रित हुए हों।1427.