बचित्तर नाटक में कृष्णावतार (दशम स्कंध पुराण पर आधारित) में राक्षस विदुरथ के वध के वर्णन का अंत।
बलराम की तीर्थयात्रा का वर्णन
चौपाई
बलराम तीर्थ यात्रा पर गये।
बलराम तीर्थ यात्रा हेतु नेमिषरण पहुंचे
वह वहाँ आया और स्नान किया
वहाँ आकर उन्होंने स्नान किया और अपने मन का शोक त्याग दिया।2382।
तोमर छंद
(मुनि) रोमहरख (रोमहर्ष) वहाँ नहीं थे। (बलराम का आगमन सुनकर) वे वहाँ दौड़े।
रोमहर्ष दौड़कर वहाँ पहुँचा, जहाँ बलराम मदिरा पी रहे थे।
वह मूर्ख वहाँ आकर खड़ा हो गया और उसे (बलराम को) छुआ तक नहीं।
वहाँ आकर वह सिर झुकाकर खड़ा हो गया और बलरामजी ने शीघ्रतापूर्वक आकर धनुष-बाण हाथ में लेकर अत्यन्त क्रोध में आकर उसे मार डाला।2383।
चौपाई
तब सभी ऋषिगण खड़े हो गये।
सभी का चिट का आनंद समाप्त हो गया है।
एक ऋषि थे, उन्होंने कहा,
सभी ऋषिगण अपनी शान्ति त्यागकर उठ खड़े हुए और उनमें से एक ने कहा, "हे बलराम! तुमने ब्राह्मण की हत्या करके बड़ा बुरा काम किया है।"
तब बलरामजी ने कहा,
(वह) बैठा रहा, उसे मुझसे डर क्यों नहीं लगा?
तब मेरे दिल में गुस्सा था
तब बलरामजी बोले - "मैं तो यहीं बैठा था, फिर भी वह मुझसे क्यों नहीं डरा? तब मैंने क्रोधित होकर धनुष-बाण उठाकर उसे मार डाला।"
स्वय्या
"मैं क्षत्रिय का पुत्र था और क्रोध से भरा हुआ था, इसलिए मैंने उसका नाश कर दिया
बलरामजी यह निवेदन करके खड़े हो गए और बोले, “मैं सच कहता हूँ कि यह मूर्ख मेरे पास व्यर्थ ही बैठा था।
क्षत्रियों के साथ ऐसा ही व्यवहार अपनाना चाहिए, जिससे वे संसार में रह सकें।
इसलिए मैंने उसे मार डाला, लेकिन अब इस चूक के लिए मुझे क्षमा करें।”2386.
बलराम को संबोधित करते हुए ऋषियों की वाणी:
चौपाई
सभी ऋषियों ने मिलकर बलराम से कहा।
(कवि) श्याम उस ब्रह्म की साखी कहते हैं।
क्रोध को त्यागकर उसकी सन्तान को (पिता के स्थान पर) स्थापित करो।
ब्राह्मण की हत्या की बात सुनकर सभी ऋषियों ने बलरामजी से कहा, "हे बालक! अब तुम अपना सारा क्रोध दूर करके सभी तीर्थों में स्नान के लिए जाओ।"
कवि का भाषण:
स्वय्या
उन्होंने (बलराम ने) उस ब्राह्मण के पुत्र को ऐसा वरदान दिया कि चारों वेद उसकी स्मृति में बने रहेंगे
उन्होंने पुराण आदि का इस प्रकार पाठ करना आरम्भ किया कि ऐसा प्रतीत होने लगा कि उनके पिता पुनर्जीवित हो गये हैं।
समस्त ऋषियों के मन को आनन्दित करने वाला (आनन्दित) कोई दूसरा नहीं था।
अब उसके समान आनन्दित कोई भी मनुष्य न था। इस प्रकार सिर झुकाकर उसे सान्त्वना देकर वीर बलरामजी ने तीर्थयात्रा आरम्भ की।।2388।।
बलराम ने सबसे पहले गंगा स्नान किया।
फिर त्रिवेणी में स्नान करते हुए वह हरिद्वार पहुंची।
वहां स्नान करके वे आराम से बद्री-केदारनाथ चले गए।
अब और क्या गिनाया जाये? वह सभी तीर्थस्थानों पर पहुंचा।2389।
चौपाई
(वह) फिर नेमख्वारन (नेमिषारण्य) आये,
फिर वह नेमिशरण के पास वापस आया और उसने सभी ऋषियों के सामने अपना सिर झुकाया
(उसने) कहा, मैंने सभी तीर्थों की यात्रा कर ली है।
फिर उन्होंने कहा, "जैसा आपने कहा था, मैंने शास्त्रविधि के अनुसार सभी तीर्थस्थानों पर स्नान किया है।"
बलराम का कथन: