जिस प्रकार एक अभिनेता कभी योगी, कभी बैरागी तो कभी संन्यासी का वेश धारण कर लेता है।
कभी वह वायु पर निर्भर रहने वाला मनुष्य बन जाता है, कभी ध्यान में बैठा रहता है और कभी मदोन्मत्त होकर अनेक प्रकार के स्तुतिगान करता है।
कभी वह ब्रह्मचारी बन जाता है, कभी अपनी तत्परता दिखाता है और कभी लाठीधारी साधु बनकर लोगों को भ्रमित करता है।
वह तो वासनाओं के अधीन होकर नाचता है, फिर वह ज्ञान के बिना भगवान् के धाम में कैसे प्रवेश पा सकेगा?।12.82।।
यदि गीदड़ पाँच बार चिल्लाए तो या तो सर्दी आ जाएगी या अकाल पड़ेगा, किन्तु यदि हाथी बार-बार दहाड़े और गधा बार-बार रें तो कुछ नहीं होगा। (इसी प्रकार ज्ञानी के कर्म फलदायी होते हैं और अज्ञानी के कर्म व्यर्थ होते हैं।)
यदि कोई काशी में आरी से काटने की रस्म का पालन करता है, तो कुछ भी नहीं होगा, क्योंकि एक सरदार की हत्या कर दी जाती है और उसे कई बार कुल्हाड़ियों से काटा जाता है।
यदि किसी मूर्ख व्यक्ति को गले में फंदा डालकर गंगा की धारा में डुबो दिया जाए तो कुछ नहीं होगा, क्योंकि कई बार डाकू राहगीर के गले में फंदा डालकर उसे मार देते हैं।
मूर्ख लोग ज्ञान के विचार किए बिना ही नरक के प्रवाह में डूब गए हैं, क्योंकि श्रद्धाहीन मनुष्य ज्ञान की बातों को कैसे समझ सकता है?।13.83।।
यदि कष्टों को सहन करने से आनन्दमय भगवान की प्राप्ति होती है, तो घायल व्यक्ति अपने शरीर पर अनेक प्रकार के कष्ट सहता है।
यदि नाम जप से अविनाशी भगवान को प्राप्त किया जा सकता है, तो पुदाना नामक छोटा पक्षी भी हर समय 'तुहि, तुहि' (तू ही सब कुछ है) जपता रहता है।