योद्धा बड़बड़ाते हुए शहीद हो रहे थे और कवच पहने हुए वीर धूल में लोट रहे थे।120.
योद्धा भौंकने लगे,
वीर योद्धा गरजने लगे और इस्पात के कवच पहने योद्धा नशे में धुत होकर नाचने लगे।
भय की जंजीरों में जकड़ी घुरघुराहटें सुनाई दीं,
भयंकर तुरही बज उठी और भयंकर मूंछों वाले योद्धा युद्ध में लड़ने लगे।121.
घोड़े सरपट दौड़ते हुए (ऐसा प्रतीत होता है) कच्छ क्षेत्र से आये हैं।
योद्धा अपनी मूंछें मटकाते हुए एक दूसरे से लड़ रहे थे। काटने वाले नायक पंख वाले पहाड़ों की तरह उछल रहे थे।
भट लोग आपस में इकट्ठे हुए थे और भाले और बम चल रहे थे।
कवच पहने वीर सैनिक धरती पर लेटे हैं।122.
हाथियों पर लगी घंटियाँ बज रही थीं,
तुरही की ध्वनि दूर-दूर तक गूंजने लगी और घोड़े इधर-उधर दौड़ने लगे।
सारा आकाश हूरों के झुंड से भर गया,
स्वर्ग की युवतियाँ आकाश में घूमने लगीं और अपने को सजाकर तथा आँखों में काजल डालकर युद्ध देखने लगीं।।123।।
छोटी-छोटी आवाजें गूंज रही थीं।
युद्ध में गरजते हुए वाद्य बजाए जाते थे और वीर सैनिक दहाड़ते थे।
नाकें ऊपर उठाए (ऐसा लग रहा था) मानो जाट संत खड़े हों।
योद्धाओं ने अपने-अपने हाथों में भाले लेकर उन पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया, योद्धाओं के अस्त्र-शस्त्र प्रयोग में आने लगे।124.
अपने घावों से तंग आकर योद्धा नीचे गिर पड़े
घायल योद्धा गिर पड़े और उनके शरीर टुकड़े-टुकड़े हो गये।
सेनाएँ गरजीं, गड़गड़ाहट हुई
सेनाएँ गरजने लगीं और तुरही बजने लगी, युद्ध भूमि में बेचैन घोड़े हिनहिनाने लगे।125.
चारों तरफ से गिद्ध चिल्लाने लगे,
चारों ओर से गिद्ध चीखने लगे और उन्होंने पहले से कटे हुए शरीरों को टुकड़ों में काटना शुरू कर दिया।
ऊँचे (स्थान) पर बैठे हुए गिद्ध इस प्रकार बोलते थे॥
उस रणभूमि के जंगल में वे मांस के टुकड़ों से खेलने लगे और सिद्ध और योगीजन विजय की कामना करने लगे।।126।।
मानो वसंत में काजू खिल गए हों-
जिस प्रकार वसन्त ऋतु में फूल खिलते हैं, उसी प्रकार युद्ध में पराक्रमी योद्धा लड़ते हुए दिखाई देते हैं।
हाथियों की सूंडें खेत में पड़ी थीं
युद्धस्थल में हाथियों की सूंडें गिरने लगीं और सारी पृथ्वी कटे हुए सिरों से भर गई।127.
मधुर धुन छंद
राम ने (बाणों सहित) तरकश निकाला।
अपनी वासनाओं का परित्याग करने वाले परशुराम ने चारों दिशाओं में धूम मचा दी,
धैर्य और शक्ति
और वीर योद्धाओं की भाँति बाण छोड़ने लगे।128.
(परशुराम को देखकर) सम्पूर्ण दल की शक्ति,
उसके क्रोध को देखकर बुद्धिमान पुरुषों ने प्रभु का ध्यान किया,
हर कोई कांप रहा था
और भय से कांपते हुए प्रभु का नाम जपने लगे।129.
(योद्धा अपना) क्रोध पी रहे थे,
अत्यन्त क्रोध से व्यथित होकर बुद्धि नष्ट हो गई।
हाथों में तीर चल रहे थे।
उसके हाथों से बाणों की धारा बह निकली और उनके द्वारा विरोधियों के प्राण निकल गये।130.
(योद्धा ने अपने) हाथों से
अपने हाथों में तीर लिए हुए और गर्व से भरे हुए,
दुश्मन की छाती छू रही थी
योद्धा उन्हें शत्रुओं के हृदय में उसी प्रकार आरोपित कर रहे हैं, जैसे माली भूमि को कुदाल से खोदता है।131.
क्रोधी (शक्तिशाली परशुराम) के हाथों में।
योद्धाओं के क्रोध तथा युद्ध सम्बन्धी उनके कार्यों से सभी कांप उठते हैं।