'शराब पीकर हम नशे में धुत हो गये और अपना होश खो बैठे।(18)
शराब के नशे में
शराब के नशे में चूर राजा मेरे साथ प्यार करने के लिए आगे आया।
काम के अतिभोग के कारण
'कामदेव के वशीभूत होकर उसने अपना हाथ बढ़ाया और मेरी बांह पकड़ ली।(19)
सीढ़ियों पर फिसल गया.
'मैं सीढ़ियों पर फिसल गया और अत्यधिक नशे में होने के कारण मेरे बैंड से भी फिसल गया।
खंजर उछलकर उसकी छाती में जा लगा
'उसका खंजर खुल गया, उसे लगा और राजा की सांस रुक गई।(20)
दोहिरा
'राजा सीढ़ियों से ज़मीन पर गिर पड़े थे,
'और खंजर सीधे उसके पेट में जा लगा, जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई।'(21)
चौबीस:
चौपाई
उसने यह कहानी सबको सुनाई और खंजर उठाकर अपने हृदय में घोंप लिया।
उस स्त्री ने राजा की हत्या करके अपनी जान दे दी।
प्रमुख रानी ने राजा को मार डाला, फिर अपने प्राण त्याग दिए।(22)(1)
शुभ चरित्र का 113वाँ दृष्टान्त - राजा और मंत्री का वार्तालाप, आशीर्वाद सहित सम्पन्न। (113)(2205)
सवैय्या
एक जंगल में एक ऋषि रहते थे जिनके सिर पर सींग थे और उन्हें हॉर्नी के नाम से जाना जाता था।
कुछ लोगों का विचार था कि हॉर्नी के पिता बिभांडव ने उसे हिरणी के पेट से निकाला था।
विवेक की आयु प्राप्त करते ही वे ऋषि बन गये थे।
वे दिन-रात ध्यान में लगे रहते थे और कभी भी शहर में नहीं आते थे, यहाँ तक कि अनजाने में भी नहीं।(1)
जंगल में ध्यान लगाकर उन्हें आनंद की अनुभूति हुई।
प्रतिदिन स्नान के बाद वे नियमित रूप से वेदपाठ करते और ईश्वरीय चर्चाओं में आनंदित होते थे।
उन्होंने छह शास्त्रों का पालन किया, यद्यपि वे शरीर-तपस्या करते थे, परन्तु अपने मन को कभी विचलित नहीं होने देते थे।
जब उसे भूख और प्यास लगती तो वह फल उठाकर खा लेता।(2)
बहुत समय बीत गया था जब ऐसा सुना गया कि अकाल पड़ गया।
खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा और लोग एक-एक दाने के लिए भी तरसने लगे।
राजा ने सभी विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और पूछा,
'मुझे बताओ कि मैंने क्या पाप किया है कि मेरी प्रजा जीवित रहने में असमर्थ है।'(3)
राजा के पूछने पर सबने उत्तर दिया,
'तुमने विरासत के अनुसार शासन किया है, और कोई पाप नहीं किया है।
'सभी ब्राह्मण स्मृतियों और छह शास्त्रों का परामर्श करके इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
'हमने विचार किया है कि हॉर्नी रिखी को आपके घर आमंत्रित किया जाना चाहिए।(4)
'यदि माननीय माननीय, उचित समझें, किसी प्रकार, बिभाण्डव रिखी,
उन्हें शहर में घूमकर आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है।
'यह सच है, अगर वह इस देश में रहेगा, तो अकाल मिट जायेगा।
'यदि वह स्वयं नहीं आ सकता तो उससे अनुरोध किया जाए कि वह अपने पुत्र को भेजे,'(5)
सोरथा
अत्यंत दुःखी होकर राजा ने अपने मित्रों, पुत्रों तथा अन्य अनेक लोगों को भेजा।
वह स्वयं उनके चरणों पर गिर पड़ा, परन्तु ऋषि ने उसकी बात नहीं मानी।(6)
सवैय्या
तब सभी लोग इकट्ठे हुए और सोचने लगे, 'क्या किया जाए?'
राजा ने स्वयं बहुत प्रयास किया, परन्तु ऋषि की सहमति प्राप्त नहीं कर सके।
(उसने घोषणा की) जो कोई उसे आने के लिए राजी करेगा, मैं उसे अपना आधा राज्य दे दूंगा।'
(लोगों ने सोचा) 'राजा ने लज्जित होकर (समझाने में असमर्थ) अपने को घर में बन्द कर लिया है, अब हम सब लोग ऋषि को लाने का प्रयत्न करेंगे।'(७)
एक सुन्दर वेश्या रहती थी; वह राजा के महल में आयी।