कितना लोहा गिरा है, कितने गिर गये (या भाग गये)।
कितने लोग समूहों में युद्ध भूमि पर आये हैं।
गोलियों और तीरों का ऐसा प्रहार हुआ है
मानो आसू मास में बदलों की बरसात हो। 23।
बहुत कुछ टूट चुका है और बहुत सारा लोहा टकरा चुका है (अर्थात्, बहुत कुछ टूट चुका है)।
जिसे करके योद्धाओं के मन प्रसन्न हुए हैं।
कहीं भूत-प्रेत नाच रहे हैं, गा रहे हैं
और कहीं-कहीं जोगनें रक्त पीती नजर आती हैं। 24.
कहीं बांके बीर बैताल ठहरे हैं
और कहीं-कहीं योद्धा योद्धाओं को मार रहे हैं।
कहीं योद्धा धनुष-बाण चला रहे हैं
और कहीं योद्धाओं को मुकदमों द्वारा घसीटा जा रहा है। 25।
कहीं पार्वती मुंडों की माला चढ़ा रही है,
कहीं महारुद्र मारु राग गा रहे हैं।
कहीं-कहीं डाकिये गुस्से से चिल्ला रहे हैं।
कहीं-कहीं योद्धा बिना मारे ही मारे गए हैं। २६।
कहीं दुंदभी, ढोल और शहनाई बज रही है
और कितने ही योद्धा क्रोध से दहाड़ रहे हैं।
कितने ही नायक जाल में फँसकर मर गए
और शरीर त्यागकर स्वर्ग को चले गये हैं। 27.
देवताओं ने युद्ध के मैदान में कितने दिग्गजों को मार डाला है?
और कितने लोग अपना जीवन त्याग कर सुर-लोक में रह रहे हैं।
कितने सैनिक घायल होने के कारण मर रहे हैं। (ऐसा प्रतीत होता है)
मानो मलंग लोग भांग पीकर घूम रहे हों। 28.
शूरवीरों ने चिल्लाया 'मारो मारो'
अनेक अकारख छत्रधारी मारे गये।
वहां कई करोड़ 'पत्री' (पंखों वाले तीर) छोड़े गए हैं
और जल्द ही छातों के टुकड़े पत्रों की तरह उड़ गए हैं। 29.
श्याम जानता है, कितने नष्ट हो गए।
महान योद्धाओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया था तथा वे क्रोधित हो रहे थे।
(कई योद्धाओं ने) युद्ध में लड़कर पवित्र शहादत प्राप्त की है।
युद्ध में कुछ धर्मात्मा मर गये। (कवि) श्याम जानता है कितने ही योद्धा नष्ट हो गये।(३०)
चौपाई
जहाँ जाना चाहता है दशरथ का चित्त,
दशरथ जिस ओर देखते, कैकेयी तुरन्त वहाँ पहुंच जातीं।
(दशरथ को) कोई चोट नहीं लगी और (उन्होंने) रथ को इस प्रकार चलाया
उसने रथ को इस प्रकार चलाया कि राजा को कोई चोट नहीं लगी, और उसका एक बाल भी बाँका नहीं हुआ।(३१)
कैकई जिस किसी पर भी हाथ रखती,
राजा ने किसी भी बहादुर (शत्रु) की ओर हाथ बढ़ाया, उसने हत्या को बढ़ा दिया।
(उस) योद्धा ने ऐसा युद्ध किया
राजा इतनी वीरता से लड़ा कि उसकी वीरता की खबर रोम और शाम के देशों तक पहुंच गई।(32)
इस तरह, कई दुष्ट लोग मारे गए
इस प्रकार अनेक शत्रुओं का नाश हो गया तथा देवराज इन्द्र का सारा संदेह दूर हो गया।
(जिसने) उस टील को अपने दांतों में ले लिया, वह बच गया।
केवल वे ही बच गये जिन्होंने घास खायी (हार मान ली) अन्यथा किसी को नहीं छोड़ा गया।(३३)
दोहिरा
उसने रथ चलाकर और अपनी जान बचाकर प्रतिष्ठा बरकरार रखी।